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झारखंड हाई कोर्ट की तल्‍ख टिप्‍पणी, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के संचालन में बाधा डाल रही नौकरशाही

Jharkhand Hindi News हाई कोर्ट ने कहा कि इसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अधिकारी कोर्ट को हल्के में न लें। संस्थान की बेहतरी के लिए अदालत किसी भी हद तक जा सकती है। अगली हर सुनवाई में मुख्य सचिव व अफसरों को हाजिर होने का निर्देश दिया।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Thu, 25 Feb 2021 08:31 PM (IST)Updated: Thu, 25 Feb 2021 08:33 PM (IST)
झारखंड हाई कोर्ट की तल्‍ख टिप्‍पणी, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के संचालन में बाधा डाल रही नौकरशाही
Jharkhand News Today हाई कोर्ट ने अगली हर सुनवाई में मुख्य सचिव व अफसरों को हाजिर होने का निर्देश दिया।

रांची, राज्य ब्यूरो। Jharkhand News Today झारखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डॉ. रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की अदालत ने नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी को सरकार की ओर से फंड नहीं दिए जाने के मामले में सुनवाई करते हुए काफी नाराजगी जाहिर की। तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि नौकरशाही मामले को फंसा रही है। इसे लटकाने का प्रयास किया जा रहा है। अदालत इसे कतई बर्दाश्त नहीं करेगी। अधिकारी पूरे मामले को हल्के में ले रहे हैं, लेकिन कोर्ट इसे लेकर काफी गंभीर है और संस्थान के बेहतर संचालन के लिए कोर्ट किसी भी हद तक जा सकती है।

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अदालत ने सरकार के शपथपत्र को खारिज करते हुए चार सप्ताह में नया शपथपत्र दाखिल करने का निर्देश दिया। साथ ही अदालत ने अगली बार से इस मामले की प्रत्येक सुनवाई के दौरान राज्य के मुख्य सचिव, भवन निर्माण सचिव, वित्त सचिव, उच्च शिक्षा सचिव और संबंधित अन्य विभागों के सचिवों को ऑनलाइन हाजिर रहने का निर्देश दिया। गुरुवार को सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से कहा गया कि एनएलयू के कुलपति ने आधारभूत संरचना और अन्य सुविधाओं को लेकर राज्य सरकार को पत्र लिखा है। इस पर सरकार की ओर उनसे कई जानकारी मांगी गई है।

पत्र में कहा गया है कि आधारभूत संरचना बढ़ाए जाने का प्रस्ताव किस सक्षम प्राधिकार की मंजूरी के बाद भेजा गया है। 600 बेड का छात्रावास होने के बाद 300 बेड के नए छात्रावास के निर्माण की क्या जरूरत है। इसके अलावा लाइब्रेरी बनाने पर होने वाले खर्च पर भी सवाल उठाया गया है। इस पर अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि यूनिवर्सिटी के कुलपति ने जब जरूरतों का प्रस्ताव भेजा है तो उनके अलावा दूसरा प्राधिकार कौन हो सकता है। भवन निर्माण और अन्य निर्माण का आकलन यूनिवर्सिटी कैसे कर सकती है।

इसका आकलन करना सरकार का काम है। इससे प्रतीत होता है कि सरकार इस मामले को लटकाना चाहती है और अधिकारी इस पर तरह-तरह के ऑबजेक्शन लगा कर मामले को टाल रहे हैं। इस तरह की आपत्ति से सरकार की मंशा साफ झलक रही है। इस यूनिवर्सिटी का गठन जनहित याचिका के माध्यम से हुआ है, इस कारण भी सरकार को नियमित फंड देना जरूरी है। सरकार के अधिकारियों ने यूनिवर्सिटी के कुलपति के साथ देश के कई नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी का दौरा किया है।

ऐसे में सरकार को इसको बेहतर बनाने के लिए योजना तैयार करनी चाहिए। अदालत ने कहा कि किसी भी राज्य के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का बेहतर होना जरूरी है। कोर्ट यूनिवर्सिटी के संचालन के मामले में कोई समझौता नहीं कर सकती। यदि राज्य सरकार चाहे तो इस मामले में सुप्रीम कोर्ट जा सकती है। इस संस्थान में झारखंड के छात्रों के लिए 50 फीसदी सीटें भी आरक्षित हैं। लेकिन सरकार इसके संचालन में सहयोग नहीं कर रही है। यह बहुत ही दुखद है। सुनवाई के दौरान अदालत में उच्च शिक्षा सचिव वीसी के जरिए हाजिर हुए थे।


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