जस्टिस शाह देव की पुण्यतिथि पर भाजपा नेताओं ने दी श्रद्धांजलि
जस्टिस एपी शाह देव के परिवार के सदस्यों के साथ भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी सांसद संजय सेठ पूर्व मंत्री और विधायक सीपी सिंह रांची नगर निगम के डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय सहित कई गणमान्य लोगों ने जस्टिस की प्रतिमा पर श्रद्धा के पुष्प अर्पित किए।
रांची, जासं । जस्टिस एल पी एन शाहदेव की 9वीं पुण्यतिथि पर रांची में कार्यक्रम का आयोजन हुआ। जस्टिस एपी शाह देव के परिवार के सदस्यों के साथ भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी, सांसद संजय सेठ, पूर्व मंत्री और विधायक सीपी सिंह, रांची नगर निगम के डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय सहित कई गणमान्य लोगों ने जस्टिस की प्रतिमा पर श्रद्धा के पुष्प अर्पित किए। वक्ताओं ने अपने संबोधन में कहा कि झारखंड आंदोलन में इनका अहम योगदान था।
जस्टिस शाहदेव झारखंड के पहले भूमि पुत्र थे जिन्हें उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनने का गौरव प्राप्त हुआ था। रिटायरमेंट के बाद वो खुलकर अलग राज्य के आंदोलन से जुड़ गए। इनका हरमू आवास आंदोलनकारियों नेताओं का अड्डा होता था। आंदोलन की रूपरेखा से लेकर स्वरूप तक पर व्यापक चर्चा होती थी।जब जब केंद्र सरकार ने आंदोलन को संवैधानिक भूलभुलैया में फंसाने की कोशिश की तो न्यायमूर्ति शाह देव कानून विशेषज्ञ के रूप में सामने आए थे।
1998 में तो इन्होंने सर्वदलीय अलग राज्य निर्माण समिति के संयोजक के रूप में आंदोलन की कमान भी संभाल ली थी।यह वह दौर था जब झारखंड में भाजपा ,झारखंड मुक्ति मोर्चा, आजसू, वामदल ,जदयू सहित विभिन्न विचारधारा के दल अलग राज्य के गठन के लिए एक मंच पर आए थे। आंदोलन के इसी दौर में 21 सितम्बर को बंद के दौरान जुलूस का नेतृत्व करते हुए न्यायमूर्ति शाह देव को पुलिस ने गिरफ्तार भी किया था। इनकी गिरफ्तारी से पूरे देश में हड़कंप मच गया था। क्योंकि पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था कि उच्च न्यायालय का कोई न्यायधीश को आंदोलन के क्रम में गिरफ्तार किया गया हो। कोतवाली थाने में पूरा प्रोटोकोल का पालन हुआ।
सबों की मेडिकल जांच हुई और समय पर सारे आंदोलनकारियों को भोजन उपलब्ध कराया गया। यह वह दौर था जब बिहार सरकार का दमन चरम पर था।बिहार सरकार अलग राज्य नहीं देना चाहती थी और आंदोलनकारी अलग राज्य के लिए मर मिटने को तैयार थे। आंदोलन के इस दौर में न्यायमूर्ति शाहदेव ने एक नई ऊर्जा का संचार किया था।सदनों का एक बड़ा वर्ग जो इस आंदोलन को शंका से देखता था वह भी इस आंदोलन से पूरे तरीके से जुड़ गया था। उसके बाद केंद्र भी झारखंड आंदोलन की व्यापकता के कारण इसे नजरअंदाज नहीं कर पाया।
न्यायमूर्ति शाह देव ऐसे तो राजपरिवार से संबंध रखते थे।लेकिन उनका आचरण और रहने की शैली पूरे तरीके से आम जनों जैसी थी। लातेहार के चंदवा प्रखंड के रोल गांव से में उनका जन्म हुआ था। गांव के स्कूल में से उन्होंने उच्च न्यायालय तक के न्यायाधीश का लंबा सफर तय किया था।आज भी उनके विचार प्रासंगिक है।