मड़ुआ के बिस्किट से पोषक तत्वों की कमी होगी पूरी, 100 ग्राम मडुआ में 344 मिलीग्राम कैल्शियम
Jharkhand. मोटे अनाजों की फसल पर जलवायु परिवर्तन का असर नहीं होता है। हाल के दिनों में पौष्टिकता को देखते हुए पूरी दुनिया एक बार फिर से मोटे अनाज की तरफ मुड़ रही है।
रांची, [मधुरेश नारायण]। बिहार-झारखंड की पारंपरिक फसल मडुआ के पोषक और औषधीय गुणों को देखते हुए बीएयू (बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी) के वैज्ञानिकों ने इसे कुपोषण के खिलाफ जंग का हथियार बनाने की राह दिखाई है। रांची स्थित बीएयू में इन दिनों मोटे अनाजों के उत्पादन और उससे जुड़े व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए छात्रों को मड़ुआ के व्यावसायिक उपयोग की जानकारी दी जा रही है। इसके तहत गृह विज्ञान के छात्रों को फूड प्रोसेसिंग के माध्यम से मड़ुआ समेत अन्य मोटे अनाज से बिस्किट, ब्रेड आदि बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
विश्वविद्यालय के वैज्ञनिकों ने बताया कि मोटे अनाज पौष्टिकता से भरपूर होते हैं। इससे महिलाओं और बच्चों समेत सभी लोगों में पोषक तत्वों की कमी दूर होगी। जानकार बताते हैं कि पहले झारखंड ज्वार, बाजरा और रागी जैसे मोटे अनाज खाने की परंपरा थी। 60 के दशक में आई हरित क्रांति के दौरान गेहूं और चावल को लोगों की थाली में सजा लिया गया और मोटे अनाज दूर होते चले गए। हाल के दिनों में पौष्टिकता को देखते हुए पूरी दुनिया एक बार फिर से मोटे अनाज की तरफ मुड़ रही है।
पोषण से भरपूर मड़ुआ का हेल्थ ड्रिंक
मड़ुआ का हेल्थ ड्रिंक हर्बल होने के कारण लोगों को काफी आकर्षित कर रहा है। इसके अलावा मड़ुआ का चिल्ला, इडली, टोस्ट, मल्टीग्र्रेन आटा और ब्रेड आदि को भी काफी पसंद किया जा रहा है। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में कई फूड प्रोसेसिंग यूनिट हैं, जहां हजारों टन मड़ुआ की मांग है। इसके अलावा बेबी फूड में पिछले कुछ सालों में मड़ुआ का इस्तेमाल बढ़ा है। रांची में बीएयू के अलावा रामकृष्ण मिशन और कई ऐसे संस्थान हैं जो फूड मैटर के लिए मड़ुआ का व्यापारिक इस्तेमाल कर रहे हैं।
कम पानी में उगाया जा सकता है मोटा अनाज
मोटे अनाज को उगाने के लिए बहुत मेहनत की जरूरत नहीं होती। धान के मुकाबले 30 फीसद कम पानी में इसे उगाया जा सकता है। वहीं इसमें खाद का भी प्रयोग कम करना पड़ता है। मोटे अनाज किसी भी मिïट्टी में उगाया जा सकता हैं और जलवायु परिवर्तन का भी बहुत असर नहीं होता है।
कहते हैं विशेषज्ञ
बीएयू के मड़ुआ विकास के डॉ. जेड ए हैदर ने बताया कि किसानों ने मोटे अनाज की खपत कम होने से इसे उगाना कम कर दिया, मगर बाजार में इसकी मांग है। सरकार द्वारा मड़ुआ का समर्थन मूल्य धान और गेहूं से दोगुना है। इससे इसकी जरूरत और मांग का अंदाजा लगाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि प्रति 100 ग्राम मड़ुआ में 344 मिलीग्राम कैल्शियम होता है। वहीं इसके साथ आयरन, फॉस्फोरस, जिंक आदि भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
क्या कहती हैं डायटीशियन
सदर अस्पताल की डायटीशियन कुमारी ममता ने बताया कि मड़ुआ डायबिटीज के रोगियों के लिए फायदेमंद होता है। उसी तरह से बाजरा में प्रोटीन की प्रचुर मात्रा होती है। प्रति 100 ग्राम बाजरे में 11.6 ग्राम प्रोटीन, 67.5 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 8 मिलीग्राम लौह तत्व और 132 मिलीग्राम कैरोटीन होता है। मोटे अनाज उनके लिए काफी अच्छा है जिनका पाचन तंत्र कमजोर है।