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झारखंड के प्राथमिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्रों में चिकित्‍सकों की भारी कमी, आधे से अधिक में महज एक डॉक्‍टर

Jharkhand. केंद्र की रिपोर्ट से चिकित्सकों की भारी कमी की पोल खुली है। इस हालात में आम जनता को कैसे मिले 24 घंटे स्वास्थ्य सुविधा।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Thu, 30 Jan 2020 06:00 AM (IST)Updated: Thu, 30 Jan 2020 06:00 AM (IST)
झारखंड के प्राथमिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्रों में चिकित्‍सकों की भारी कमी, आधे से अधिक में महज एक डॉक्‍टर
झारखंड के प्राथमिक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्रों में चिकित्‍सकों की भारी कमी, आधे से अधिक में महज एक डॉक्‍टर

रांची, [नीरज अम्बष्ठ]। राज्य के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) में सातों दिन और चौबीस घंटे की व्यवस्था लागू है। इसके तहत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में चौबीस घंटे स्वास्थ्य सुविधाएं मरीजों को उपलब्ध कराना है, लेकिन यह संभव नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इन स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सकों की भारी कमी है। स्थिति यह है कि राज्य के आधे से अधिक पीएचसी महज एक चिकित्सक के भरोसे हैं।

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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी 'रूरल हेल्थ स्टैटिक्स' रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। राज्य में कुल 203 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र संचालित हैंं। इनमें से आधे से अधिक अर्थात 140 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में महज एक-एक चिकित्सक कार्यरत हैं। रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में कोई ऐसा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं है, जहां चार या इससे अधिक चिकित्सक कार्यरत हों।

तीन चिकित्सकों वाले ऐसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या महज 14 है, जबकि 42 ऐसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है जहां दो-दो चिकित्सक कार्यरत हैं। दूसरी तरफ, सात प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ऐसे हैं, जहां एक भी चिकित्सक कार्यरत नहीं हैं। वहीं, सौ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बिना लैब तकनीशियन, 117 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बिना  फार्मासिस्ट तथा 55 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बिना महिला चिकित्सक के संचालित हैं।

आदिवासी बहुल क्षेत्रों के सीएचसी में 98 सर्जन की जरूरत, हैं एक भी नहीं :

रिपोर्ट के अनुसार, आदिवासी बहुल क्षेत्रों के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) में 98 सर्जन की जरूरत है, लेकिन सभी पद रिक्त हैं। वहीं, इन क्षेत्रों के सीएचसी में 98 स्त्री रोग विशेषज्ञ चिकित्सकों की आवश्यकता है, लेकिन महज 15 कार्यरत हैं। फीजिशियन की बात करें, तो इन क्षेत्रों में 98 फीजिशियन की जरूरत है, जबकि कार्यरत महज पांच हैं।

98 शिशु रोग विशेषज्ञों की आवश्यकता है, जबकि कार्यरत महज दस हैं। इस तरह कुल विशेषज्ञ चिकित्सकों की बात करें, तो जरूरत 392 की है जबकि कार्यरत महज तीस हैं। कुल सृजित 211 पदों के विरुद्ध 181 पद रिक्त हैं।  रेडियोग्राफर के 104 पद सृजित हैं, जबकि कार्यरत महज 60 हैं।

192 फार्मासिस्ट की जरूरत, कार्यरत महज दस

रिपोर्ट के अनुसार आदिवासी बहुल क्षेत्रों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में 192 फार्मासिस्ट की आवश्यकता है। इसके विरुद्ध 160 पद सृजित हैं, जबकि कार्यरत महज दस हैं। यही स्थिति नर्सिंग स्टाफ की भी है। इन प्राथमिक स्वस्थ्य केंद्रों में नर्सिंग स्टाफ के 160 पद सृजित हैं जबकि कार्यरत महज 21 हैं। इस तरह 139 पद रिक्त हैं। सीएचसी की बात करें, तो आदिवासी बहुल क्षेत्रों में जरूरत 686 नर्सिंग स्टाफ की है, जबकि कार्यरत महज 380 हैं। इस तरह, 306 नर्सिंग स्टाफ की कमी है।

128 विशेषज्ञ चिकित्सकों ने नौकरी के बाद नहीं दिया योगदान

राज्य में वर्ष 2015 से 2018 के बीच नियुक्त विशेषज्ञ चिकित्सकों में 128 चिकित्सकों ने नियुक्ति के बाद भी योगदान नहीं दिया। चार अलग-अलग समय में इनकी नियुक्ति हुई थी। लंबे समय तक इनका योगदान नहीं देने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने पिछले वर्ष 25 नवंबर को इनकी नियुक्ति रद कर दी थी।


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