पुलिस ने बंद की फर्जी नक्सली सरेंडर मामले की फाइल, ऐसे हुआ खुलासा
इस मामले में जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों को बचाने की कोशिश शुरू हो गई है।
जागरण संवाददाता, रांची। वर्ष 2014 में दिग्दर्शन इंस्टीट्यूट के तथाकथित 514 छात्रों को फर्जी नक्सली बताकर सरेंडर कराए जाने के मामले की रांची पुलिस ने फाइल बंद कर दी है। इसके साथ ही यह चर्चा सरगर्म है कि इस मामले में जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों को बचाने की कोशिश शुरू हो गई है। मामले के अनुसंधानकर्ता लोअर बाजार इंस्पेक्टर सुमन कुमार सिन्हा अपनी जांच रिपोर्ट सौंप चुके हैं। इनमें केवल पांच नामजद को ही दोषी बताया गया है। ये पांचों दिग्दर्शन संस्थान से ही जुड़े हैं। फर्जी नक्सली बता कर सरेंडर करने वाले युवक रांची, खूंटी, सिमडेगा, लोहरदगा और गुमला जिले के निवासी हैं।
गौरतलब है कि सरेंडर करने वाले युवकों में 128 का पुलिस ने बयान लिया था। इनमें अधिकांश के पते का पुलिस या तो सत्यापन ही नहीं कर पाई अथवा वे उक्त पते पर नहीं मिले। इसके बाद सिटी एसपी अमन कुमार के आदेश पर इस मामले की जांच बंद कर दी गई है। चर्चा है कि जांच बंद होने के पीछे राज्य के कई बड़े अफसरों की भूमिका है। दरअसल, इस प्रकरण में पुलिसिया कार्रवाई ही बता रही है कि मामले में पुलिस ने गुडवर्क दिखाने के लिए कुछ हेराफेरी की है। पुलिस ने भले ही फाइल बंद कर दी हो लेकिन यह मामला अभी हाई कोर्ट में चल रहा है। एक हफ्ता पूर्व इस मामले से जुड़े एक अधिकारी शपथ पत्र सौंपने के लिए रांची आए थे।
ऐसे हुआ था फर्जी नक्सली सरेंडर के खेल का खुलासा
सरेंडर करने के बाद युवकों को जेल रोड स्थित पुरानी जेल में कोबरा बटालियन की सुरक्षा में रखा गया था। उनके भोजन पर हुए खर्च का भुगतान रांची पुलिस ने किया था। इस दौरान युवकों को पुलिस में सिपाही के पद पर नियुक्ति दिलाने का सब्जबाग दिखाया गया था। इसके एवज में उनसे एक लाख से ढाई लाख रुपये तक वसूले गए थे। उसी दौरान सीआरपीएफ के तत्कालीन आइजी एमवी राव ने युवकों को पुरानी जेल में रखे जाने को संदेहास्पद बताते हुए तत्कालीन डीजीपी जीएस रथ को पत्र लिखा था। इसके बाद यह खुलासा हुआ था कि यह मामला फर्जी सरेंडर का है। इस खुलासे के बाद लोअर बाजार थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
कर्मचारियों की कमी के कारण नहीं हुई सीबीआइ जांच
इस फर्जी सरेंडर मामले की सीबीआइ जांच के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अनुशंसा की थी। गृह मंत्रालय को इससे संबंधित पत्राचार भी किया गया था। गृह मंत्रालय ने सीबीआइ जांच की मंजूरी दे दी थी। लेकिन, सीबीआइ ने जांच करने के लिए अफसरों की कमी बताते हुए झारखंड सरकार से पुलिस अफसरों की मांग की थी। पुलिस मुख्यालय ने सीबीआइ को अफसर देने से इन्कार कर दिया था जिससे मामले की सीबीआइ जांच शुरू नहीं हो सकी। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी इस मामले की जांच की थी। आयोग ने अपनी जांच में घटना के वक्त पुलिस व सीआरपीएफ के उच्च पदस्थ अधिकारियों की भूमिका को संदिग्ध बताया था।
इन्हें दोषी माना गया
-पी दिनेश उर्फ निदेश प्रजापति, डायरेक्टर-सहयोगी जेरेलिना
-सहयोगी मसी केरकेट्टा
-बोदरा उर्फ बारला
-जोसेफ डिपोर्ट लकड़ा (सभी दिग्दर्शन संस्थान के)
उपलब्ध रिकॉर्ड के आधार पर अनुसंधान को अभी बंद कर दिया गया है। इस मामले में चार्जशीट सबमिट की गई है। कोर्ट में सुनवाई चल रही है।
- अमन कुमार, सिटी एसपी, रांची।