लालू यादव के सेवकों के जेल जाने में बड़ी साजिश, मकसद पर सवाल
जेल जाने के लिए तत्पर राजद नेता मदन यादव के सगे भतीजे सुमित यादव की मदद ली गई।
रांची, जागरण संवाददाता। चारा घोटाले में होटवार जेल में बंद राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के जेल जाने से ठीक पहले उनके दो नजदीकी मदन यादव और लक्ष्मण कुमार के जेल जाने की घटना से हड़कंप मच गया है। पुलिस ने दोनों के खिलाफ एफआइआर दर्ज करने में जैसी तेजी दिखाई थी, वैसी ही तेजी शिकायतों को फर्जी करार देने में दिखाई। पुलिस ने इस मामले में शाम में अदालत में अंतिम प्रतिवेदन सौंप दिया है। इससे लालू के दोनों नजदीकी को जेल से बाहर करने का रास्ता भी साफ हो गया है। इसके साथ ही पुलिस झूठा केस दर्ज कराने वाले सुमित यादव के खिलाफ अदालत से केस चलाने का अनुरोध करेगी।
23 दिसंबर, 2017 को जब लालू को सीबीआइ की विशेष अदालत में दोषी करार देने की तैयारी चल रही थी, उसी दौरान लालू के दो नजदीकी के खिलाफ फर्जी केस का ताना-बाना बुनकर उन्हें अपने नेता के साथ जेल में रखने की तैयारी चल रही थी। इसके लिए जेल जाने के लिए तत्पर राजद नेता मदन यादव के सगे भतीजे सुमित यादव की मदद ली गई। सुमित अपने रईस चाचा मदन और उनके सहयोगी लक्ष्मण कुमार के खिलाफ मारपीट और छिनतई की शिकायत लेकर डोरंडा थाने पहुंचे।
सतर्क थाना प्रभारी ने इसमें साजिश को भांप कर उन्हें भगा दिया तो वे एफआइआर दर्ज कराने पूरी तैयारी से लोअर बाजार थाना पहुंचे। उनके लिए न्यायिक क्षेत्र से जुड़े एक प्रभावशाली व्यक्ति ने थाना प्रभारी को केस दर्ज करने के लिए सिफारिश की। इसके बाद पुलिस ने आंख मूंद कर एफआइआर दर्ज कर लिया। आननफानन में एफआइआर की कॉपी अदालत पहुंच गई। केस दर्ज करने में पूरी सावधानी बरती गई और छिनतई को चोरी की गैरजमानतीय धारा 379 में दर्ज कर दोनों को जेल भेजने का रास्ता साफ कर दिया गया।
इसके बाद दोनों ने अदालत में आत्मसमर्पण किया और उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। घटना के पर्दाफाश के बाद से दोनों के खिलाफ मारपीट और छिनतई जैसी मामूली धाराओं में एफआइआर दर्ज करवाने वाले सुमित यादव पहले तो भूमिगत हो गए। उनके घर पुलिस और मीडिया के लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। शुरू में उनकी मां ने पूरे मामले से अनभिज्ञता जताई फिर कुछ देर बाद दरवाजे पर ताला लटका नजर आया।
इस प्रकरण में संदेह के घेरे में आए पुलिस और जेल अधिकारी मंगलवार को दिन भर खुद को पाक-साफ साबित करने की कोशिश में जुटे रहे। इसी क्रम में सिटी डीएसपी आरके मेहता ने दिन भर में ही मामले की जांच कर लालू के दोनों नजदीकी के खिलाफ दर्ज शिकायत को फर्जी करार देकर अदालत में अंतिम प्रतिवेदन देने की घोषणा कर दी। दूसरी ओर जेल आइजी हर्ष मंगला ने पूरे प्रकरण की गहन समीक्षा की। उन्होंने कहा कि भले ही मदन और लक्ष्मण जेल में आ गए हों, लेकिन उनका राजद प्रमुख की अपर डिवीजन सेल के पास भी पहुंच पाना संभव नहीं है। राजद प्रमुख जब पिछली बार जेल गए थे तो मदन यादव भी गए और वहां उनकी सेवा भी की थी।
जेल जाने के मकसद पर सवाल
इसमें कोई शक नहीं कि लालू से कुछ देर पहले जेल जाने वाले दोनों सेवक उनके नजदीकी हैं। मदन तो राजद के पुराने नेता और बिहार-झारखंड के स्थापित ठेकेदार हैं। लक्ष्मण लालू के पुराने रसोइया रहे हैं। दोनों ने जिस शातिराना तरीके से अपने नेता के जेल जाने से ठीक पहले खुद भी उसी जेल में प्रवेश का रास्ता बना लिया, उसका मकसद क्या था, उसे लेकर संदेह अवश्य होता है। सिटी डीएसपी आरके मेहता लाख सफाई दें, लेकिन उनके लिए इस सवाल का जवाब देना आसान नहीं है कि मामूली शिकायत में गैरजमानतीय धारा कैसे लगा दी गई।
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