ऐतिहासिक है भवानी शंकर का मंदिर, हर मुरादें होती है पूरी
ठाकुरगाव स्थित ऐतिहासिक भवानी शकर मंदिर में नवरात्रि की रौनक
राजू चौबे, बुढ़मू : सोमवार को कलश स्थापना के साथ ठाकुरगाव स्थित ऐतिहासिक भवानी शकर मंदिर में दुर्गा पूजा का शुभारंभ किया गया। भक्ति एवं आस्था का प्रतीक भवानी शकर मंदिर भक्तों के लिए एक धरोहर है। प्रतिदिन यहा भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है। खासकर मंगलवार व शनिवार को अपेक्षाकृत अधिक भीड़ होती है। क्षेत्र के लोगों का मानना है कि श्रद्धा एवं विश्वास के साथ माता के दरबार में सच्चे मन से आनेवाले हर भक्तों की मुराद पूरी होती है। मंदिर के प्रागण में हर अशात एवं चंचल मन को आलौकिक शाति व सुकून की अनुभूति होती है।
मंदिर के पुजारी पंडित शिव कुमार शर्मा बताते हैं कि दुर्गा पूजा में कंसर्ट धातु से निमित्त भवानी शकर की युगल मूर्ति की पूजा यहा तात्रिक विधि से होती है। दुर्गा पूजा में ही पुजारी के द्बारा आख में पटी बाध कर युगल मुरली का वस्त्र बदला जाता है। मान्यता है कि खुली आख से मूर्ति को देखने से आख की रोशनी चली जाती है। इस बहुमूल्य मूर्ति को सिद्ध पुरुष महात्मा चेतनाथ के द्वारा संवत 1600 के आसपास अर्थात् 1543 ई में प्रदान की गयी है। मंदिर संचालक ठाकुर विजय नाथ , अब स्वर्गीय, बताया करते थे कि छोटानागपुर के 50वें महाराजा के भाई कुंवर गुकुल नाथ शाहदेव के पुत्र कमल नाथ शाहदेव खरपोश लेकर नवरलगढ़ सिसई गुमला से गिलो लौट आये थे। साथ में इस बहुमूल्य मूर्ति को भी अपने साथ लेते आये थे। इसके बाद से ही इस गाव का नाम गिलो ठाकुरगाव के नाम से जाना जाने लगा। वर्तमान मंदिर को ठाकुर चंद्रमोहन नाथ शाहदेव ने नया स्वरूप दिया है। नागवंशी राजाओं के इतिहास में इन तथ्यों का भी उल्लेख मिलता है। जो काफी पुराना है।
विदित हो कि 20 अक्टूबर 1965 को मंदिर से चोरों द्वारा युगल मूर्ति की चोरी कर ली गई थी। सड़क निर्माण के दौरान रातू के संडे बजाय के समीप 23 अक्टूबर 1991 को मूर्ति पाई गई थी। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अंतत: न्यायालय द्बारा ठाकुर गाव वासियों को मूर्ति सौंपी गई थी। उस समय गाव में एक साथ होली व दिवाली मनाई गई थी। नवमी को मंदिर में सैंकड़ों बकरे व भैस की बलि दी जाती है।