बीएयू के वैज्ञानिकों ने किया मशरूम स्पॉन रन बैग से कंपोस्ट बनाने की तकनीक का विकास
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के कृषि विभाग में मशरूम उत्पादन यूनिट पर शोध किया है।
जागरण संवाददाता, रांची : बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के कृषि विभाग में मशरूम उत्पादन यूनिट का वर्षो से संचालन किया जा रहा है। इस यूनिट के विज्ञानिकों ने मशरूम उत्पादन में प्रयुक्त होने वाले स्पॉन रन बैग के अवशेष का कंपोस्ट के रूप में प्रयोग करने की तकनीक विकसित की है। पौधा रोग विभाग के अध्यक्ष एवं यूनिट प्रभारी डॉ. नरेंद्र कुदादा ने बताया कि मशरूम की खेती में स्पॉन बीज को स्पॉन रन पॉलिथीन बैग में भरकर विभिन्न प्रक्रियाओं से मशरूम का उत्पादन किया जाता है।
डॉ. कुदादा ने बताया कि इस बैग से 20 से 22 दिनों के बाद मशरूम प्राप्त होने लगता है। हरेक बैग से 60 दिनों तक विभिन्न अंतराल पर मशरूम को तोड़ा जाता है। 60 दिनों के बाद बैग में पड़े अवशेष को अनुपयोगी समझकर फेंक दिया जाता है। हालांकि, कुछ लोग इस अवशेष का मछली के चारे के रूप में तालाब में प्रयोग करते हैं, लेकिन इससे अब हम बेहतरीन कंपोस्ट तैयार करेंगे। ओल एवं अदरक की खेती करने की बनी है योजना
बीएयू द्वारा इसके अवशेष से ओल एवं अदरक की खेती करने की योजना बनाई गई है। इसके तहत स्पॉन रन के अवशेष को अगले 30-40 दिनों के लिए पूरी तरह सड़ने के लिए छोड़ दिया गया। इसके बाद इस कंपोस्ट से शोध प्रक्षेत्र में ओल एवं अदरक की खेती की गई। इसे लेकर पिछले तीन सालों से शोध किए जा रहे थे। तीनों साल के परिणाम काफी अच्छे रहे हैं। डॉ. नरेंद्र कुदादा ने कहा कि इस तकनीक से सालोभर कंपोस्ट का उत्पादन किया जा सकता है। डीन एग्रीकल्चर डॉ. एमएस यादव ने बताया कि इस सड़े अवशेष से अति आम्लिक, बंजर एवं पथरीली भूमि की उर्वरता में सुधार की जा सकती है। सब्जी फसलों एवं फलदार वृक्षों की सफलता पूर्वक खेती की जा सकती है।
-------------
पांच प्रकार के मशरूम का उत्पादन :
बीएयू की इस मशरूम इकाई द्वारा साल भर में पांच प्रकार के मशरूम का उत्पादन किया जाता है। गर्मी में धान पुआल मशरूम व सफेद दुधिया मशरूम, बरसात में वायस्टर मशरूम (गुलाबी, सफेद एवं नीला) व ढिगरी मशरूम तथा जाड़े में सफेद बटन मशरूम का उत्पादन एवं तकनीकी प्रशिक्षण दिया जाता है।