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बकोरिया कांड में सीबीआइ ने पकड़ा पुलिस का झूठ, उग्रवादियों ने मारा था 12 लोगों को; पुलिस लूट रही थी वाहवाही

Bakoria Encounter Case Palamu सीबीआइ की प्रारंभिक पूछताछ व छानबीन में यह तथ्य सामने आए हैं। पुलिस ने खुद ही मुठभेड़ का श्रेय लिया था। डीजीपी ने जवानों को सम्मानित किया था।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Sat, 19 Sep 2020 08:22 PM (IST)Updated: Sun, 20 Sep 2020 08:57 AM (IST)
बकोरिया कांड में सीबीआइ ने पकड़ा पुलिस का झूठ, उग्रवादियों ने मारा था 12 लोगों को; पुलिस लूट रही थी वाहवाही
बकोरिया कांड में सीबीआइ ने पकड़ा पुलिस का झूठ, उग्रवादियों ने मारा था 12 लोगों को; पुलिस लूट रही थी वाहवाही

रांची, राज्य ब्यूरो। Bakoria Encounter Case Palamu पलामू के बहुचर्चित बकोरिया मुठभेड़ कांड की जांच कर रही सीबीआइ धीरे-धीरे इस मामले की तह तक पहुंच रही है। अभी तक की जांच में नक्सलियों को मारने का दावा करने वाली पुलिस के झूठ और फर्जीवाड़े की पुष्टि हो चुकी है। जांच में यह बात सामने आई है कि जिन 12 लोगों को नक्सली बता पुलिस द्वारा मुठभेड़ में मारे जाने की बात कह पुलिस अपनी पीठ थपथपा रही थी, उन्हें पुलिस ने नहीं, बल्कि प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन जेजेएमपी (झारखंड जन मुक्ति परिषद) के उग्रवादियों ने मारा था।

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अभी सीबीआइ की जांच में जो तथ्य सामने आए हैं उसके अनुसार जेजेएमपी के कमांडर पप्पू लोहरा के दस्ते ने इस घटना को अंजाम दिया था। पलामू जिले के सतबरवा ओपी क्षेत्र के बकोरिया में 8 जून 2015 को पांच नाबालिगों सहित 12 लोगों को नक्सली करार देकर मार गिराए जाने की घटना के बाद पुलिस ने खुद इसका श्रेय लेते हुए वाहवाही बटोरी थी। तत्कालीन डीजीपी डीके पांंडेय ने मुठभेड़ में शामिल पुलिसकर्मियों को सम्मानित भी किया था।

मारे गए लोगों में एक व्यक्ति के कुख्यात नक्सली होने के सबूत भी मिले थे, लेकिन अन्य 11 लोगों को लेकर ग्रामीणों ने सवाल उठाने शुरू कर दिए। पुलिस पर निर्दोष ग्रामीणों को मारने के आरोप लगे। वहीं, कुछ ग्रामीणों ने कहा कि पुलिस की बजाय उग्रवादी संगठन जेजेएमपी के लोगों ने सभी 12 लोगों को मारा और बाद में पुलिस इसका श्रेय लेने के लिए आगे आ गई। कुछ ग्रामीणों ने यह भी बताया कि घरों से उठाकर इन लोगों को ले जाकर मारा गया था। अब हाई कोर्ट के आदेश पर 2018 से इसी मामले की जांच सीबीआइ कर रही है।

अपनी ही थ्योरी बनी पुलिस के गले की फांस

खास बात यह है कि मुठभेड़ को सही साबित करने के लिए पुलिस ने हाई कोर्ट में अपनी थ्योरी फाइल की थी, जिसे संदेहास्पद मानते हुए हाई कोर्ट ने ही पूरे मामले का अनुसंधान सीबीआइ से कराने का आदेश दिया था। मुठभेड़ की बात स्वीकारने की पुलिस की यही भूल अब उसके गले की फांस बन गई है, जो उसकी मुश्किलें बढ़ाती दिख रही हैं।

फोरेंसिक विशेषज्ञों ने भी खड़े किए थे सवाल

जांच के दौरान फोरेंसिक विशेषज्ञों ने भी क्राइम सीन रीक्रिएट कर इस मुठभेड़ पर सवाल खड़े किए थे। इतना ही नहीं, तत्कालीन पलामू डीआइजी, तत्कालीन एसपी लातेहार सहित कई पुलिस अधिकारियों को भी इस मुठभेड़ की जानकारी नहीं थी। उन्हें तत्कालीन डीजीपी डीके पांडेय ने मुठभेड़ की जानकारी दी थी। मारे गए लोगों में नक्सली कमांडर डॉ. अनुराग, पारा टीचर उदय यादव, एजाज अहमद, योगेश यादव व अन्य शामिल थे। मृतकों में पांच नाबालिग भी थे।

घर से उठाकर ले गए थे उग्रवादी, आवाज दबाने के लिए 20 लाख रुपये की पेशकश

मुठभेड़ में मारे गए पारा टीचर उदय यादव के पिता जवाहर यादव ने पुलिस के इस मुठभेड़ को फर्जी बताया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि उनके बेटे उदय यादव व एक रिश्तेदार नीरज यादव को कुछ लोग जबरन घर से उठाकर ले गए थे। बाद में दोनों की हत्या की जानकारी मिली। अन्य मृतकों के मामले में भी पुलिस की थ्योरी झूठी मिली थी। इसके बाद हाई कोर्ट ने 22 अक्टूबर 2018 को इस मुठभेड़ के मामले की जांच सीबीआइ से कराने का आदेश दिया था।

जवाहर यादव ने सीबीआइ को भी अपने बयान में कहा है कि पुलिस ने प्रतिबंधित झारखंड जन मुक्ति परिषद् (जेजेएमपी) के साथ मिलकर निर्दोष लोगों की हत्या करवाई और अपनी पीठ थपथपाने के लिए उसे पुलिस मुठभेड़ बता दिया। जब पुलिस की गर्दन फंसने लगी तो पुलिस अधिकारी ने परोक्ष रूप से किसी न किसी माध्यम से पीडि़त परिवार को धमकाया। चार दिसंबर 2017 को केस मैनेज करने के नाम पर 20 लाख रुपये देने का भी ऑफर किया था।


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