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AERB ने रिम्स का लाइसेंस रोका, मरीजों को भुगतना पड़ सकता है खामियाजा Ranchi News

रिम्‍स में 5 साल पहले कैंसर चिकित्सा की पहल हुई थी वह कायदे से जमीन पर नहीं उतर रही है। अगर लाइसेंस समय पर नहीं मिला तो इसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ेगा।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Tue, 15 Oct 2019 11:02 AM (IST)Updated: Tue, 15 Oct 2019 11:25 AM (IST)
AERB ने रिम्स का लाइसेंस रोका, मरीजों को भुगतना पड़ सकता है खामियाजा Ranchi News
AERB ने रिम्स का लाइसेंस रोका, मरीजों को भुगतना पड़ सकता है खामियाजा Ranchi News

रांची, [शक्ति सिंह] । रिम्स प्रबंधन और कैंसर जांच उपकरण मुहैया करनेवाली कंपनी की लापरवाही के कारण रांची में बेहतर तकनीक के साथ कैंसर जांच का काम नहीं हो पा रहा है। यह सिर्फ लापरवाही का मामला है या नहीं, अब जांच के बाद ही पता चल सकेगा। बहरहाल एटोमिक एनर्जी रिसर्च रेगुलेटरी बोर्ड (एईआरबी) ने रिम्स के लाइसेंस के आवेदन को होल्ड पर रखा है। रेडियोथेरेपी विभाग में वी-मैट प्रोग्रामर (रेडिएशन उपकरण) से जुड़ीं कमियां और कैथलैब में लेड फ्लैब्स की व्यवस्था नहीं होने पर एईआरबी ने अपनी आपत्ति जताई है। इन कमियों को दूर करने के बाद ही रिम्स में आ रही एक और नई लीनियर एक्सलेटर मशीन के संचालन की अनुमति दी जाएगी। 

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स्पष्ट है कि इससे करोड़ों रुपये के कैंसर रेडिएशन उपकरण के संचालन का मामला पूरी तरह खटाई में चला जाएगा। ऑडिट ऑब्जेक्शन का जवाब नहीं दिया गया है। नतीजा है कि पांच साल पहले कैंसर चिकित्सा की पहल हुई थी, वह कायदे से जमीन पर नहीं उतर रही है। अगर लाइसेंस समय पर नहीं मिला, तो इसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ेगा। क्योंकि दूसरे लीनियर एक्सलेरेटर की सुविधा शुरू होने से मरीजों को सहूलियत होगी।  

कार्डियोलॉजी के कैथ लैब की व्यवस्था पर भी सवाल 

एईआरबी ने कार्डियोलॉजी विभाग के कैथलैब पर भी सवाल उठाया है। कैथलैब में ओटी टेबल में लेड फ्लैब्स लगाने को कहा है, ताकि मरीजों पर प्रत्यक्ष तौर पर रेडिएशन का असर न पड़े। लेकिन, अब तक इस समस्या का निदान नहीं निकाला जा सका है। कई महीने बीत जाने के बाद भी व्यवस्था जस की तस है। 

कंपनी ने रोक रखे हैं सात करोड़ रुपये  

पहली एक्सलेरेटर मशीन को लगाए हुए पांच वर्ष हो गए हैं। लेकिन, इन पांच वर्षों में रिम्स द्वारा कंपनी को सात करोड़ रुपये का भुगतान नहीं किया गया है। लीनियर एक्सलेरेटर और वी मैट प्रोग्रामर की कीमत करीब 20 करोड़ रुपये थे। इलेक्टा कंपनी ने  इसकी सुविधा उपलब्ध कराई गई थी। 

वी-मैट प्रोग्रामर से बढ़ जाती है रेडिएशन की जांच की गुणवत्ता  

वी-मैट प्रोग्रामर इंस्टॉल होने से रेडिएशन जांच की गुणवत्ता और बेहतर हो जाती है। शरीर के विशेष भाग में रेडिएशन देने के लिए इस प्रोग्रामर की महत्ता बढ़ जाती है। सीटी स्कैन की मदद से प्लानिंग में मदद मिलती है। 

'एईआरबी ने रेडिएशन को लेकर रिम्स के लाइसेंस को होल्ड पर रखा है। इस संबंध में कंपनी और एईआरबी के साथ पत्राचार किया गया है, ताकि एईआरबी द्वारा जिन बिंदुओं पर आपत्ति जताई गई है, उसका समाधान तत्काल निकाला जा सके। डॉ.डीके सिंह, निदेशक,रिम्स


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