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Asteroid Day 2020: तब हजारीबाग में आसमान से गिरा था आग का धधकता गोला, यहां 1200 वर्ग किमी क्षेत्र में आज भी नहीं उगते पेड़-पौधे

Asteroid Day 2020. 100 वर्ष पहले हजारीबाग के पास के जंगल में आदिवासियों ने आकाश से आग के एक छोटे गोले को गिरते देखा था। हालांकि तब उन्होंने इसे अपने देवता का प्रकोप समझा।

By Alok ShahiEdited By: Published: Mon, 29 Jun 2020 09:50 PM (IST)Updated: Wed, 01 Jul 2020 07:13 AM (IST)
Asteroid Day 2020: तब हजारीबाग में आसमान से गिरा था आग का धधकता गोला, यहां 1200 वर्ग किमी क्षेत्र में आज भी नहीं उगते पेड़-पौधे
Asteroid Day 2020: तब हजारीबाग में आसमान से गिरा था आग का धधकता गोला, यहां 1200 वर्ग किमी क्षेत्र में आज भी नहीं उगते पेड़-पौधे

रांची, [मधुरेश नारायण]। Asteroid Day 2020 यहां 1200 वर्ग किमी क्षेत्र में आज भी पेड़-पौधे नहीं उगते। यह जगह सौ साल से बंजर पड़ा है। करीब 100 वर्ष पहले हजारीबाग के पास के जंगल में आदिवासियों ने आकाश से आग के एक छोटे गोले को गिरते देखा था। हालांकि तब उन्होंने इसे अपने देवता का प्रकोप समझा। अनिष्‍ट-अनहोनी की आशंका से इसके बाद कई दिनों तक पूजा-पाठ चला। उस वक्त हजारीबाग का जंगल काफी घना था। आकाश से गिरे पिंड छोटा होने के कारण खोजा नहीं जा सका। उस वक्त देश में अंग्रेजी हुकूमत थी।

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संभवत: इसलिए इस विषय का उल्लेख न के बराबर मिलता है। हालांकि आदिवासी समाज में आज भी इसके बारे में बातें होती हैं। इस घटना का कोई लिखित प्रमाण नहीं होने के कारण हम इसे एकदंत कथा भी कह सकते हैं। ये रोचक बातें रांची विवि के सीसीडीसी डॉ जीएसएन साहदेव ने एस्टेरॉइड डे पर आम जनों की जिज्ञासा शांत करते हुए बताईं। एस्टेरॉइड को आम बोलचाल की भाषा में उल्का पिंड कहते हैं। एस्टेरॉइड डे मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को अंतरिक्ष और उल्का पिंडों के बारे में जागरूक करना है। 

उन्होंने बताया कि 30 जून को एस्टेरॉइड डे विश्व के 200 देशों में मनाया जाता है। रूस में तुन्गुस्का नदी के किनारे घने वन क्षेत्र में 30 जून 1908 की सुबह अंतरिक्ष से जलता हुआ उल्कापिंड गिरा था। तब से अब तक वैज्ञानिक उसका रहस्य पता नहीं कर पाए हैं। यह पता नहीं लग पाया है कि वह घटना कैसे हुई थी। आज भी वैज्ञानिक उस घटना को अध्ययन में शामिल करते हैं।

साइबेरिया के क्षेत्र में गिरे इस उल्कापिंड का आकार इतना बड़ा था कि उसके वहां गिरते ही 1200 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र प्रभावित हुआ था। जिस स्थान पर वह गिरा था, वहां पहले घने वृक्ष थे। लेकिन इस घटना के बाद से आज तक वहां कोई भी वृक्ष नहीं उगा है। यहां की धरती पर इस उल्का पिंड के आज भी निशान मौजूद थे। 

युवाओं में अंतरिक्ष के बारे में जागरूकता बढ़ाने की है जरूरत

रांची विवि के साथ अन्य संस्थाओं में भी युवाओं को अंतरिक्ष के बारे में जानकारी देने के लिए खगोलशास्त्र की पढ़ाई नहीं होती। हालांकि पिछले वर्ष राज्य का पहला तारामंडल विज्ञान केंद्र में खुला। मगर युवाओं में अंतरिक्ष के विषय में रूचि जगाने के लिए हमारे द्वारा किया गया ये प्रयास काफी नहीं है। मगर अंतरिक्ष जैसे महत्वपूर्ण विषय में तब तक अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कर सकते जब तक युवाओं की भागीदारी न हो। इसके साथ ही उनके लिए संसाधनों के विकास की भी जरूरत है। 

क्या है उल्कापिंड

अंतरिक्ष में कई बड़े पिंड आकाश में बड़े वेग से आते जाते रहते हैं। इन्हें उल्का कहते हैं। कभी-कभी ये पृथ्वी के नजदीक आ जाते हैं। पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण वो धरती पर गिरने लगते हैं। ये पृथ्वी पर गिरते हुए तेजी जलते हैं। जलकर बचे हुए भाग को उल्कापिंड कहते हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से इनका महत्व बहुत अधिक है क्योंकि एक तो ये अति दुर्लभ होते हैं!

दूसरे आकाश में विचरते हुए विभिन्न ग्रहों इत्यादि के संगठन और संरचना के ज्ञान के प्रत्यक्ष स्रोत केवल ये ही पिंड हैं। इनके अध्ययन से ये भी पता चलता है कि भूमंडलीय वातावरण में आकाश से आए हुए पदार्थ पर क्या-क्या प्रतिक्रियाएं होती हैं। इस प्रकार ये पिंड ब्रह्माण्डविद्या और भूविज्ञान के बीच संपर्क स्थापित करते हैं।


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