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कोल प्रोजेक्ट से कंपनी बांधने लगी बोरिया-बिस्तर

भू-रैयत अब भी मुआवजे और नौकरी की मांग पर अड़े हुए हैं। उन्होंने साफ कर दिया है कि जब तक भूमि का मुआवजा व नौकरी नहीं मिलेगी तब तक ओवर बर्डन रखने के लिए एक इंच भी जमीन नहीं देंगे।

By Edited By: Published: Mon, 24 Feb 2020 01:13 AM (IST)Updated: Mon, 24 Feb 2020 02:27 AM (IST)
कोल प्रोजेक्ट से कंपनी बांधने लगी बोरिया-बिस्तर
कोल प्रोजेक्ट से कंपनी बांधने लगी बोरिया-बिस्तर

वीरेंद्र साहू, रांची, टंडवा (चतरा) : सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (सीसीएल) की एशिया की सबसे बड़ी कोयला परियोजना 'मगध कोल प्रोजेक्ट' में रैयतों द्वारा ओवर बर्डन (पत्थर, मिट्टी आदि जैसे अपशिष्ट) के लिए जमीन देने से इन्कार करने के कारण लगातार 11वें दिन खनन कार्य ठप रहा। इस कारण ओबी हटाने वाली आउटसोर्सिग कंपनी वीपीआर ने अपना बोरिया-बिस्तर समेटना शुरू कर दिया है। दूसरी ओर, भू-रैयत अब भी मुआवजे और नौकरी की मांग पर अड़े हुए हैं। उन्होंने साफ कर दिया है कि जब तक भूमि का मुआवजा व नौकरी नहीं मिलेगी, तब तक ओवर बर्डन रखने के लिए एक इंच भी जमीन नहीं देंगे। इधर, जारी गतिरोध को देखते हुए ओवर बर्डन (ओबी) हटाने वाली आउटसोर्सिग कंपनी वीपीआर ने रविवार को छह मशीन और 16 हाइवा को कोयले की खदानों से हटाते हुए दूसरे स्थान पर भेज दिया। कंपनी का कहना है कि यहां पर काम बंद होने से उसे रोज 50 लाख रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है। काम बंदी के बाद से अब तक कंपनी को पांच करोड़ का नुकसान हो चुका है। बता दें कि मगध कोल प्रोजेक्ट में प्रतिदिन 35-40 हजार टन कोयले का खनन होता है। लेकिन, टंडवा में काम बंद होने से केवल लातेहार जिले के आरा और चपातू क्षेत्र से प्रतिदिन औसतन 15 हजार टन ही कोयला निकल पा रहा है। ज्ञात हो कि मगध कोल प्रोजेक्ट 2016 में चतरा जिले के टंडवा में शुरू किया गया था। यह प्रोजेक्ट लातेहार जिले के आरा और चपातू क्षेत्र तक फैला हुआ है। मगध कोल प्रोजेक्ट में खुली खदान (ओपन कास्ट माइंस) से कोयला निकाला जाता है और इस कारण भारी मात्रा में ओवर बर्डन निकलता है। बिना ओवर बर्डन हटाए खुली खदान में खनन संभव नहीं है और इस कारण ओबी रखने के लिए जमीन आवश्यक है। ओवर बर्डन रखने के लिए जबतक जमीन नहीं मिलेगी, तबतक ओबी हटाने वाली कंपनी काम ही नहीं कर पाएगी। इधर, रैयतों का कहना है कि सीसीएल अधिकारियों पर विश्वास नहीं किया जा सकता। पूर्व में भी जमीन को लेकर खनन कार्य कई बार प्रभावित हुआ, लेकिन हर बार सीसीएल अधिकारी झूठा आश्वासन देकर जमीन ले लेते थे, फिर अपना वायदा भूल जाते थे। लेकिन, इस बार लड़ाई आर-पार की है। बता दें कि प्रोजेक्ट का ओबी रखने के लिए सीसीएल के पास जमीन नहीं है। सीसीएल की नजर देवलगड़ा की जमीन पर है, लेकिन रैयत पहले नौकरी व मुआवजा मांग रहे हैं।

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एशिया के सबसे बड़े और प्रसिद्ध मगध कोल प्रोजेक्ट से प्रति वर्ष सीसीएल को अरबों रुपये की कमाई हो रही है। लेकिन, मुआवजा और नौकरी देने के नाम पर अधिकारी मुंह मोड़ रहे हैं। - गुरुदयाल साव, सचिव, रैयत विस्थापित मोर्चा

ओवर बर्डन हटाने वाली कंपनी मनमानी कर रही है। सरकार को उसकी भूमिका की जांच करानी चाहिए। - बहादुर उरांव, झामुमो नेता। 

भू-रैयतों से बातचीत की जा रही है। बहुत जल्द कुछ न कुछ समाधान निकल आएगा। - अवनीश कुमार, परियोजना पदाधिकारी, मगध कोल प्रोजेक्ट।

कंपनी को प्रतिदिन 50 लाख रुपये का नुकसान हो रहा है। अब तक पांच करोड़ से अधिक का नुकसान हो चुका है। अधिक नुकसान को बर्दाश्त करना संभव नहीं है। यही कारण है कि मशीन और वाहनों को यहां से हटाया जा रहा है। - निवास रेड्डी, प्रबंधक, वीपीआर कंपनी।

अभी तक किसी पक्ष ने किसी भी प्रकार की मदद के लिए सरकार का दरवाजा नहीं खटखटाया है। ऐसे में कंपनी की आवश्यकताओं की हमें कोई जानकारी नहीं है। अगर वे हमारे पास आते हैं, तो नियमानुसार मदद मिलेगी ही। - अबु बकर सिद्दीख पी., सचिव, खान विभाग, झारखंड।


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