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देखते-देखते कारसेवकों की भीड़ ढंाचे की ओर बढ़ चली

वर्तमान में आरएसएस झारखंड के सह प्रांत बौद्धिक प्रमुख हरिनारायण ने उस समय के संस्मरण सुनाते हुए कहा कि अचानक कारसेवकों की भीड़ ढांचे की ओर बढ़ चली।

By JagranEdited By: Published: Thu, 01 Oct 2020 02:01 AM (IST)Updated: Thu, 01 Oct 2020 05:06 AM (IST)
देखते-देखते कारसेवकों की भीड़ ढंाचे की ओर बढ़ चली
देखते-देखते कारसेवकों की भीड़ ढंाचे की ओर बढ़ चली

जागरण संवाददाता, रांची : वर्तमान में आरएसएस झारखंड के सह प्रांत बौद्धिक प्रमुख हरिनारायण ने उस समय का संस्मरण सुनाते हुए कहा कि विश्व हिंदू परिषद के आह्वान पर छह दिसंबर को अयोध्या चलो नारा को लेकर पूरे देशभर में माहौल बन गया था। गाव-गाव से लोग अयोध्या जाने को तैयार थे। महीने पूर्व से ही अयोध्या जाने के लिए धन संग्रह किया जा रहा था। स्पष्ट निर्देश था कि बिना टिकट अयोध्या नहीं आना है। हर ओर पाबंदी। समाचार पत्र, दूरदर्शन पर भ्रामक खबरे प्रसारित की जा रही थी। सरकार द्वारा यह बताया जा रहा था कि वहा तक किसी को पहुंचने नहीं दिया जाएगा। दंगा फैल जाएगा आदि, आदि। वहीं, उस समय हिंदुओं खासकर युवाओं में भारी उत्साह था। अब नहीं तो कभी नहीं की स्थिति थी। कार सेवक एक दिसंबर 1992 से ही अयोध्या की ओर कूच करने लगे। तैयारी चल ही रही थी कि उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने घोषणा कर दी कि अयोध्या में प्रतीकात्मक कार सेवा होगी। उनकी इस घोषणा से काफी निराशा हुई। हमलोग भी सुस्त हो गए लेकिन संघ के कार्यकर्ताओं ने समझाया कि नहीं चलना ही है। इस पर तैयार तो हो गए, लेकिन जाने का मन नहीं था। खैर, 8-10 कारसेवक अयोध्या पहुंचे। वहा का पूरा नजारा राममय बना हुआ था। हर ओर श्रीराम के जयकारे गूंज रहे थे। चारों ओर महावीरी पताका लहरा रहा था। ऐसा नजारा मानो श्रीराम खुद अयोध्या में कारसेवकों की आगवानी कर रहे हों। पाच दिसंबर को दिनभर भाषण चला। सभी नेता यही अपील कर रहे थे कि प्रतीकात्मक पूजा के बाद सभी अपने घर लौट जायें, लेकिन कारसेवक तो मन बना चुके थे। प्राय: सभी नेताओं ने यही कहा कि छह दिसंबर को सरयू में स्नान के बाद एक मुट्ठी बालू लाकर मंदिर परिसर में रखना है। छह दिसंबर को 11 बजे तक सबकुछ ठीक चल रहा था। कार सेवक बारी बारी से मंदिर परिसर में बालू रखकर जा रहे थे। इसी दौरान अचानक कारसेवक बाबरी ढाचा की ओर बढ़ने लगे। फिर तो कुछ लोग आगे बढ़े और उसके पीछे हजारों की भीड़ बढ़ने लगी। मंचस्थ नेता अपील करते रहे लेकिन सब बेकार।

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