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कला ने दी पहचान, अब कर रहे आर्ट डायरेक्शन

इलाका किशोरगंज और दिलेश््वर लोहरा का नाम एक-दूसरे से जुड़ा है। इलाका किशोरगंज का आर्ट डायरेक्शन किया है दिलेश््वर ने। दिलेश््वर जाने-माने मूर्तिकार हैं। हालांकि इस फिल्म से उन्हें पहचान मिली है। पिछले शुक्रवार को यह फिल्म रिलीज हुई थी।

By JagranEdited By: Published: Sat, 03 Nov 2018 06:09 AM (IST)Updated: Sat, 03 Nov 2018 06:09 AM (IST)
कला ने दी पहचान, अब कर रहे आर्ट डायरेक्शन
कला ने दी पहचान, अब कर रहे आर्ट डायरेक्शन

जागरण संवाददाता, रांची

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इलाका किशोरगंज शुक्रवार को पर्दे पर आई। इस फिल्म में कला निर्देशन का काम दिलेश्वर लोहरा ने किया। दिलेश्वर वैसे तो जाने-माने मूर्तिकार हैं। आदिवासी हैं। पटना आर्ट कॉलेज से बीएफए किया है। वहां से कला की डिग्री लेने के बाद फिर अपना काम शुरू किया। कला के क्षेत्र में दो दशक का अनुभव है। अभी-अभी बाबा कार्तिक उरांव की कई प्रतिमाएं उन्होंने बनाई हैं। कला निर्देशन के साथ-साथ प्रतिमा निर्माण और पेंटिंग का काम भी होता है।

बनारस की संस्कृति से रूबरू

दिलेश्वर कहते हैं कि पटना का आर्ट कॉलेज देश के चुनिंदा कॉलेजों में से एक है। यहां से कई नामी कलाकार निकले हैं। यहां बहुत कुछ सीखने का मौका मिला। इसके बाद एक साल तक बनारस में रहा। बनारस की संस्कृति से रूबरू होने का मौका मिला। यह ऐसा शहर लगा, जो हमेशा जागता ही रहता है। इसलिए देश ही नहीं, विदेश के लोग भी इस शहर की संस्कृति और मस्ती देखने आते हैं। महीनों यहां रहते हैं। तो, एक संस्कार यहां से भी मिला।

फिल्मों में कला निर्देशन का काम

इसके बाद अपनी धरती लौट आए। सोचा, यहां कुछ काम किया जाए। इसके बाद काम शुरू हुआ। प्रतिमाओं का निर्माण तो हो रहा है। फिल्म नीति के बाद यहां फिल्मों का निर्माण शुरू हुआ तो यहां काम के अवसर भी मिलने लगे। इलाका किशोरगंज से पहले पंजाब की टीम के लिए काम किया। वह रांची में शूटिंग करने आई थी। फिल्म का नाम भी रूपिंदर गांधी। इसके बाद डाकुआ द मुंडा भी पंजाबी फिल्म है। इसकी शूटिंग भी रांची में ही इसी साल हुई। इसकी शूटिंग रांची के पुरानी जेल में भी हुई। वहां सेट बनाया गया था। इसके बाद कला बाजारी का अंत में भी कला निर्देशन का काम किया। अभी और भी फिल्में हैं।

शिविर में सहभागी

दिलेश्वर ने बताया कि 2009 में बुंडू रांची में पलाश नामक शिविर का आयोजन किया। इसके बाद 2010 में बोधगया में ललित कला अकादमी के कला शिविर में भाग लिया। भुवनेश्वर में आयोजित कला शिविर में भी ललित कला अकादमी का सहयोगी रहा।

मिल चुके हैं कई अवार्ड

दिलेश्वर की झोली में कई अवार्ड भी हैं। 1991 में कॉलेज आफ आर्ट एंड क्राफ्ट, स्टील अथॉरिटी आफ इंडिया लि व 2000 में फाइन सोसायटी पटना मेडिकल कॉलेज ने भी सम्मानित किया।

कई प्रतिमाओं का निर्माण

2004 में भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा बनाई। यह लापुंग में लगी है। 2006 में वीर बुधु भगत की। यह लोहरदगा में लगी है। 2009 में बुधन सिंह, शिव शंकर राम आदि की प्रतिमाएं बनाई। 2015 में प्लांट स्कल्पचर ताल कटोरा स्टेडियम दिल्ली के लिए बनाई। अभी कार्तिक उरांव की प्रतिमाएं बनाई हैं।


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