वीडियों कॉफ्रेंसिंग से चावल पर हुए शोध के बारे में कृषि वैज्ञानिकों ने रखी राय
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आइसीएआर) नई दिल्ली के द्वारा देश के 60 कृषि वैज्ञानिकों ने चावल पर शोध किए गए विषयों पर वेबिनार के माध्यम से अपनी बात रखी।
जागरण संवाददाता, राची : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आइसीएआर), नई दिल्ली के द्वारा देश के 60 राज्य कृषि विश्वविद्यालयों एवं आइसीएआर शोध संस्थानों में कार्यरत अखिल भारतीय समन्वित चावल शोध परियोजना के तहत वेबिनार के जरिये राष्ट्रीय वाíषक चावल समूह का आयोजन किया गया। इस बैठक में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के चावल परियोजना अन्वेंषक डॉ कृष्णा प्रसाद के साथ सह परियोजना अन्वेंषक डॉ पीबी साहा, डॉ रविंद्र प्रसाद, डॉ अशोक कुमार सिंह, डॉ एमके वर्णवाल एवं डॉ वर्षा रानी सहित देश के 100 चावल शोध वैज्ञानिक शामिल हुए। बैठक में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के चावल शोध परियोजना के अधीन मुख्यालय एवं तीन क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्रों दुमका, दारीसाई (पूर्वी सिंहभूम) व चियाकी (पलामू) में चलाए जा रहे वर्ष 2019-20 की शोध गतिविधियां प्रस्तुत किया और चर्चा में भाग लिया। बीएयू के वैज्ञानिकों ने आनुवाशिकी व पौधा प्रजनन, शस्य, मृदा विज्ञान, पौधा रोग, कीट एवं पौधा दैहिकी विज्ञान विषयों में चावल पर हो रहे शोध गतिविधियां एवं उपलब्धियों से अवगत कराया।
परियोजना अन्वेंषक डॉ कृष्णा प्रसाद बताया कि झारखंड के 18 लाख हेक्टेयर भूमि में धान की खेती होती है। पूरे राज्य में धान की खेती का रकबा 70 प्रतिशत है और यह प्रदेश का भी मुख्य फसल है। प्रदेश की धान उत्पादकता 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जबकि राष्ट्रीय औसत 26 - 27 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। सर्वाधिक उत्पादकता पंजाब का 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा दूसरे स्थान पर हरियाणा का 37 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। बैठक में बीएयू द्वारा वर्ष 2019-20 में आनुवाशिकी व पौधा प्रजनन के 18, शस्य के 6, मृदा विज्ञान के 1, पौधा रोग के 8, कीट के 8 एवं पौधा दैहिकी के 3 विषयों से संबंधित शोध प्रायोगिक प्रक्षेत्रों को प्रस्तुत किया गया।