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महाधिवक्‍ता ने सरयू राय काे बताया अभिवावक, कहा-पद पर बने रहने में उनकी सहमति

हाल के दिनों में राज्य के महाधिवक्ता अजीत कुमार राजनीतिक दलों के निशाने पर हैं। सरकार के मंत्री और भाजपा के वरिष्‍ठ नेता सरयू राय ने भी उन्‍हें हटाने के लिए सीएम को चिट्ठी लिखी है।

By Edited By: Published: Mon, 12 Nov 2018 06:42 AM (IST)Updated: Mon, 12 Nov 2018 11:42 AM (IST)
महाधिवक्‍ता ने सरयू राय काे बताया अभिवावक, कहा-पद पर बने रहने में उनकी सहमति
महाधिवक्‍ता ने सरयू राय काे बताया अभिवावक, कहा-पद पर बने रहने में उनकी सहमति

रांची, राज्‍य ब्‍यूरो। हाल के दिनों में राज्य के महाधिवक्ता अजीत कुमार को लेकर राजनीतिक दलों ने सवाल उठाए हैं और राजनीति से प्रेरित होने के आरोप भी लगाए हैं। सभी मसलों पर उनसे बात की संवाददाता मनोज सिंह ने। पेश है बातचीत का विस्तृत अंश...

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सवाल: ऐसा आम तौर पर नहीं होता है कि महाधिवक्ता पर सवाल उठे। आपके कार्यकाल में राजनीतिक दलों ने आपको घेरने की कोशिश की है। क्या कहेंगे?

जवाब: महाधिवक्ता का पद एक संवैधानिक पद होता है और महाधिवक्ता पर आमतौर पर सवाल नहीं उठाएं जाते हैं। इस पद पर आसीन व्यक्ति न्यायालयों के समक्ष सरकार का पक्ष अपने विवेक एवं सरकारी हित एवं आम जनता के हित को ध्यान में रखकर रखता है। कोर्ट का आदेश अथवा एजी की सलाह आम हित में हो तो सरकार वैसा ही निर्णय लेती है।

ऐसा कहना गलत होगा कि मेरे कार्यकाल में राजनीतिक दलों ने मुझे घेरने की कोशिश की है। हालाकि कुछ मामलों में मेरे निर्णय अथवा मुझसे संबंधित मामलों में हुए न्यायालय के आदेशों पर प्रश्न जरूर उठाया गया है, जो कि एक स्वस्थ परंपरा नहीं है। न्यायालय में लंबित मामले, जबकि संबंधित आदेश अंतरिम किस्म के हों, तो सारा विषय न्यायालय में ही उठाने की परंपरा है।

किसी पार्टी को यदि कोई आदेश अनुचित प्रतीत होता है, तो वह अपना विषय न्यायालय के समक्ष रखे, यही न्यायसंगत है। राजनीतिक दलों द्वारा उठाए गए विषयों के संबंध में मेरे पास स्पष्ट जवाब है कि मेरे द्वारा लिया गया निर्णय अथवा कार्य राज्य हितकारी है और मैं उसे हर तरीके से व्यक्त एवं स्पष्ट कर सकता हूं।

सवाल : मंत्री सरयू राय आपके खिलाफ मुखर हैं और आपको हटाने के लिए सीएम से भी पत्राचार कर रहे हैं।

जवाब : मंत्री सरयू राय मेरे लिए अभिभावक समान हैं एवं उनकी सहमति के बगैर मैं महाधिवक्ता बन गया, ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता है। फिर भी उनके द्वारा उठाए गए विषय के बारे में मुझे यह कहना है कि उन्हें संपूर्ण विषय की जानकारी नहीं दी गई होगी। अधूरे विषय की जानकारी के आधार पर उन्हें ऐसा बताया गया होगा कि मैंने कोई सरकारी अहित कर दिया हो, इसलिए उन्होंने ऐसा विषय उठाया है।

मैं मंत्री सरयू राय जी को व्यक्तिगत तौर पर जानता हूं और उनको कई बार कहा है कि जब भी उन्हें किसी विषय पर पूरी जानकारी व स्पष्टीकरण प्राप्त करना हो तो वे मुझे बुलाकर भी विषय की जानकारी ले सकते हैं। आपके माध्यम से मैं मंत्री महोदय को आश्वस्त करना चाहता हूं कि मेरे द्वारा लिए गए निर्णय एवं संबंधित न्यायालयीय आदेश सर्वथा राज्यहितकारी है।

सवाल : शाह ब्रदर्स का मामला क्या है। क्यों कंपनी के खिलाफ स्वर बुलंद हो रहा है?

जवाब :  मेसर्स शाह ब्रदर्स का मामले में भी अन्य मामलों के समान वर्ष 2013 में अवैध खनन करने पर लगभग 1243 करोड़ रुपये राशि की माग की गई थी। यह राशि जस्टिस शाह कमीशन की रिपोर्ट के आधार न सिर्फ शाह ब्रदर्स बल्कि अन्य खनन पट्टाधारियों से भी माग की गई थी। शाह ब्रदर्स एवं अन्य खनन पट्टाधारियों ने उक्त माग के विरुद्ध रिवीजन अथॉरिटी (खनन न्यायधीकरण), नई दिल्ली में आवेदन दिए थे।

2013 में ही अंतरिम आदेश के तहत संपूर्ण मांग पर पूर्ण स्थगन आदेश पारित कर दिया गया। न्यायाधीकरण ने खनन पट्टाधारियों के विरुद्ध की उत्पीड़क कार्रवाई न करने व माइनिंग चालान आदि न रोकने के संबंध में आदेश पारित किया गया। खनन न्यायाधीकरण ने 2013 में ही अपने अंतिम आदेश में सरकार की मांग को खारिज कर दिया था एवं सरकार को पुनर्गणना करने का आदेश दिया था। 2014 में राज्य सरकार ने नया मांग पत्र जारी किया, लेकिन पुन: खनन न्यायाधीकरण ने उस पर स्थगन आदेश पारित किया और अपने अंतिम आदेश से पुन: मांग को खारिज कर दिया।

इस तरह सरकार द्वारा मांग पत्र जारी किए जाते थे और खनन न्यायाधीकरण के द्वारा उन माग पत्रों पर स्थगन आदेश अथवा निरस्त करने का आदेश पारित किया गया। ऐसा वर्ष 2017 तक चलता रहा। आपको बता दूं कि मैं संबंधित मामलों में सरकार का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहा था बल्कि खनन विभाग के अधिकारी स्वयं इन मामलों में सरकार का प्रतिनिधित्व करते थे।

सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार संपूर्ण भुगतान 21 दिसंबर 2017 तक किया जाना था एवं खनन न्यायाधीकरण ने भी सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार माग पत्र में सुधार कर संशोधित करने का आदेश पारित किया था। मेरी जानकारी ओडिशा के बाद झारखंड ऐसा राज्य है जहा कामन कॉज के मामले के आदेश के आधार पर सितंबर 2017 में अवैध खनन के मामले में खनन पट्टाधारियों से संशोधित राशि की मांग की गई थी।

यह भी बताना चाहूंगा कि जनवरी-फरवरी 2018 में ¨हडालको के मामले में हाई कोर्ट ने स्थगन आदेश पारित किया था। यद्यपि सरकार द्वारा दायर अपील के मामले में उक्त कंपनी के द्वारा 300 करोड़ के माग के विरुद्ध 90 करोड़ का आशिक भुगतान किया गया। शाह ब्रदर्स का मामला अन्य कंपनियों के मामले के बाद हाई कोर्ट में आया था। चूंकि पूर्व के मामलों में आशिक भुगतान के आधार पर स्थगन आदेश पारित थे। इसलिए इस मामले में अपील की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट से शत-प्रतिशत भुगतान कराने की आग्रह किया गया था।

साथ ही सरकार द्वारा दायर शपथ पत्र में स्पष्ट था कि शाह ब्रदर्स का मामला अन्य मामलों के सामान है। इसलिए जब शाह ब्रदर्स की ओर से शत-प्रतिशत भुगतान का प्रस्ताव दिया गया तो मैंने महाधिवक्ता के रूप में अपने विवेक का प्रयोग करते हुए इस प्रस्ताव पर अपनी सहमति दी। यह कहना गलत है कि किसी व्यक्ति, विभाग एवं सरकार के कारण ऐसा हुआ है।

जबकि वास्तविकता यह है कि छह वर्ष के समय में मामले हाई कोर्ट में लंबित रहे और वर्तमान सरकार एवं मेरे अथक प्रयास से खनन विभाग ने उक्त राशि प्राप्त की है। मुझे लगता है कि शाह ब्रदर्स के मामले में बेवजह ही विवाद उठाया गया है, यदि मामले को समझा जाए तो मैंने व राज्य सरकार ने राज्यहित में ही कार्य किया है।

सवाल : जमशेदपुर में सर्किट हाउस के निकट सरकारी जमीन के मामले में भी आपको निशाने पर लिया जा रहा है। मामला क्या है?

जवाब : जमशेदपुर के सर्किट हाउस के पास अवस्थित जिस जमीन के विषय में प्रश्न किया जा रहा है मैं उसे उस तरह से नहीं देखता। वास्तव में यह मामला अल्मुनी कुम्हारीन की तथाकथित जमीन से संबंधित है। इस मामले में मैंने स्पष्टता और सच्चाई से सरकार का पक्ष हाई कोर्ट के समक्ष रखने का प्रयास किया है।

सवाल : आपके कार्यकाल में कितने महत्वपूर्ण अथवा चर्चित लंबित मामलों को निष्पादित किया गया है।

जवाब : मेरे कार्यकाल में हाई कोर्ट में कई महत्वपूर्ण लंबित मामलों को निष्पादित किया गया है। राजस्व के हिसाब से मैं कह सकता हूं कि मेरा कार्यकाल सफल रहा। उदाहरण के तौर पर खनन कंपनियों के मामले में लंबे अर्से से सरकारी भुगतान लंबित था। टाटा स्टील के रायल्टी का मामला भी निष्पादित हुआ है। इसी तरह अवमानना के मामले को भी सुगमता से निष्पादित किया गया है।

अब तो सरकारी महकमों में स्पष्ट हो चुका है कि यदि हाई कोर्ट के आदेशों पर अपील का निर्णय नहीं लिया गया है, तो उस आदेश का त्वरित पालन कर दिया जाए। आप देख रहे होंगे कि अवमानना, पेंशन आदि के भुगतान के मामले में कमी आई है और लोक अदालत में भी सरकारी विभाग बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं।

सवाल : चर्चा है कि आप राजनीतिक रूप से सक्रिय होने वाले हैं। क्या चुनाव की तैयारी हो रही है?

जवाब :  मैं आश्चर्यचकित हूं कि ऐसा क्यों कहा जा रहा है कि मैं राजनीतिक रूप से सक्रिय हो रहा हूं या मैं चुनाव लड़ने वाला हूं। वैसे भी मैं राज्य के बीस हजार अधिवक्ताओं का मुखिया हूं और झारखंड राज्य बार काउंसिल का चेयरमैन होने के साथ-साथ राज्य का महाधिवक्ता भी हूं। यह सौभाग्य है कि मुझे अपने पद पर स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करने का मौका मिला है, चाहे पूर्व की सरकारें हो या वर्तमान सरकार।

मुझे सभी का स्नेह एवं प्यार मिलता रहा है। यह भी सही है कि मैं सरकारी अथवा सामाजिक दायित्वों में पूर्ण रूप से सक्रिय रहता हूं एवं सभी लोग किसी न किसी रूप में चर्चा में रखते हैं। शायद इसी कारण मुझे भी लगता है कि भविष्य में मुझे वास्तव में राजनीतिक रूप से सक्रिय हो जाना चाहिए। यदि बड़ों का आशीर्वाद मिले तो मुझे राजनीति में उतर कर जरूर अपना योगदान देना चाहिए।


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