Weekly News Roundup Ranchi: बदली सत्ता अब हाकिम की बारी... पढ़ें हफ्तेभर की प्रशासनिक हलचल
Weekly News Roundup Ranchi झारखंड में सत्ता बदलते ही हाकिमों के बीच सुगबुगाहट शुरू हो गई है। नए मुखिया की टेढ़ी नजरों से बचने के लिए सब व्यवस्था को कसने में जुट गए हैं।
रांची, [शक्ति सिंह]। झारखंड में सत्ता का हाल बदलते ही प्रशासनिक अधिकारी भी रेस हो गए हैं। नए मुखिया के सामने अपना दुरुस्त चेहरा दिखाने की खातिर अफसर व्यवस्था को कसने की जद्दोजहद में लग गए हैं। फाइलों को भी ससमय निपटाने का कार्य तेजी से चल रहा है। जिला स्तर के अधिकारी कहीं भी कोई चूक रहने नहीं देना चाहते हैं। सब के सब पूरी मुस्तैदी से अपने काम में जुट गए हैं। आइए जानते हैं प्रशासनिक गतिविधियों की हलचल...
हाकिमों को याद आई ड्यूटी
राज्य में राजनीतिक हवा का रुख बदला। नए मुखिया ने सत्ता संभाल ली। बदले माहौल में जिला प्रशासन के पदाधिकारी जोर-शोर से अपनी सक्रियता दिखाने में जुटे हैं। अपना-अपना नंबर बढ़ाने की होड़ है। नए निजाम की नजर टेढ़ी होने पर हाकिम इधर से उधर फेंके जा सकते हैं। कई हाकिमों को इस बात की चिंता सता रही है कि उनका मनचाहा पद छीन न लिया जाए।
दूसरी ओर मलाईदार और मनपसंद तैनाती के लिए बैठे लोग बड़े साहब की नजर में आकर बहती गंगा में हाथ धोने को आतुर हैं। ऐसे वक्त में गलती से भी गलती नहीं करना चाहते है। एक के बाद एक बैठकों का दौर शुरू हो गया है। साहबों से मिलना तक आसान नहीं रहा। फुर्सत रहे तब न। एक फाइल निपटने पर दूसरी फाइल सामने पेश हो जाती है। हाकिम के घर वाले भी परेशान हैं कि आखिर इतना बदलाव कैसे आ गया है।
देर कर दी जनाब आते-आते
कटाई का मौसम डेढ़ महीने गुजरने के बाद अब सरकार को धान खरीद की याद आई है। बारिश ने किसानों का आधा धान खलिहान में खराब कर दिया। बाकी बची फसल औने-पौने दाम में बेचकर किसानों ने किसी तरह अपना कर्ज उतारा। अब जब सही मूल्य मिलने का मौका आया है, उनके पास बेचने को कुछ नहीं बचा। साल भर के गाढ़े पसीने से उपजा खजाना, काफी हद तक बर्बाद हो चुका है।
सपनों पर फिर से बट्टा लग गया। नया तनाव आपूर्ति विभाग के लिए पैदा हो गया है। धान की खरीद का लक्ष्य शायद ही पूरा हो। हालात को समझते ही पदाधिकारियों ने तो अपनी ताकत झोंक दी है, लेकिन जब किसान के पास धान ही नहीं बचा, तो प्रखंडों के गोदाम कैसे भरेंगे। टारगेट पूरा करना बड़ी चुनौती बन गया है। अधिकारी परेशान हैं। एक महीने बाद ही तस्वीर पूरी तरह से स्पष्ट हो पाएगी।
नया दौर और बीमारी पुरानी
चुनाव के चक्कर में हेलमेट व सीट बेल्ट के बिना तीन महीने मौज काट चुके लोग, अब धीरे-धीरे सिग्नल और कैमरे की टेढ़ी नजर के शिकार होने लगे हैं। जिनका चालान कटा, समझिए वह दोहरी मुसीबत में फंसे। जेब तो ढीली होगी ही दिनभर लाइन में लगना होगा अलग से। ऑनलाइन के जमाने में नया ट्रैफिक नियम और फाइन की नई दर लागू हो चुकी है। ट्रैफिक पुलिस के कार्यालय के बाहर चालान जमा करने के लिए लोगों को घंटों लाइन में खड़ा होकर सत्यापन कराना पड़ रहा है।
तकनीकी के नए दौर में भी व्यवस्था की पुरानी बीमारी कायम है। इससे निजात पाए बिना न शहर स्मार्ट हो सकता है और न व्यवस्था दुरुस्त हो सकती है। नए निजाम में आला अधिकारी फूंक-फूंककर चालान काट और कटवा रहे हैं, ताकि जोर का झटका लोगों को धीरे लगे। रूल लागू भी हो जाए और लोग ज्यादा नाराज भी न हों।
सुस्ती के बाद अचानक रेस
सरकार ने तीन माह की मोहलत दी थी, तो लोग सुस्त हो गए थे। जब मोहलत खत्म हो गई तो, लोगों की भागदौड़ शुरू हो गई। जिला परिवहन कार्यालय में लंबी-लंबी कतार दिख रही है। कार्यालय खुलने के पहले ही लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है। सुस्ती और लापरवाही हमलोगों की आदत में शुमार है। तीन महीने पहले मिली मोहलत के दौरान ड्राइविंग लाइसेंस नहीं बनवाए। अब सुबह बंद कार्यालय के सामने हेलमेट और ईंट रख कतार में खड़े होने की कसरत कर रहे हैं।
कार्यालय के कर्मी भी परेशान हैं। सांस लेने तक की फुर्सत नहीं हैं। कुछ शॉर्टकट के चक्कर में पैरवी के लिए माथापच्ची भिड़ाते हैं। व्यवस्था पूरी तरह ऑनलाइन है। इसके बावजूद दलाल किस्म के लोग बाज नहीं आ रहे। आम आदमी भी इनके चक्कर में जाने-अनजाने फंस ही जा रहा है। उसकी तो बस यही चाहत है कि किसी तरह बस लाइसेंस बन जाए।