वर्दी वाले साहब का नशा उतर गया है... पढ़ें पुलिस महकमे की अंदरुनी खबर DIAL 100
Jharkhand Police News. साहब कोयला नगरी से राजधानी की परिक्रमा लगा रहे हैं अपने किए पर शर्मिंदा भी हैं। अब पछताए होत क्या जब चिडिय़ा चुग गई खेत।
रांची, [दिलीप कुमार]। वर्दी का नशा जल्द नहीं उतरता लेकिन जब उतरता है तो पानी उतार देता है। साहब का भी उतर गया है, किस्सा आम हो चला है कि चिलम काम नहीं कर पाई। साहब का शौक ही ऐसा था, कोयले से भरी चिलम सिर चढ़ कर बोल रही थी। चिरंजीव को नशे की झोंक में निपटा दिया, काले सोने के कारोबार में अड़ंगा जो लगा रहा था। लेकिन सांच को आंच क्या। भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं। ऊपर वालों ने सुन ही ली। पाल्टा ने पलट दी बाजी। खुल चुकी है फाइल, अब याद कर रहे हैं भोले बाबा को। उनके अनुयायियों को उनकी बूटी का नाम लेकर सताएंगे तो वासुदेव की कोठरी में पहुंच जाएंगे। साहब कोयला नगरी से राजधानी की परिक्रमा लगा रहे हैं, अपने किए पर शर्मिंदा भी हैं। अब पछताए होत क्या जब चिडिय़ा चुग गई खेत। वर्दी का नशा काफूर हो चला है।
सफाई देते फिर रहे
खाकी वाले एक साहब का सितारा कभी बुलंदियों पर था। एक समय था जब साहब का सरकार में सिक्का चलता था। साहब के सीनियर भी उन्हेंं कुछ बोलने से पहले सौ बार सोचते थे। साहब भी बड़े ख्वाब देखने लगे थे। उन्हेंं विश्वास हो चला था कि सरकार रिपीट की तो वे खाकी वाले विभाग के मुखिया बन जाएंगे पर ऐसा हो ना सका और सरकार भी बदल गई। सरकार क्या बदली साहब के सारे ख्वाब भी ध्वस्त हो गए। उल्टा चक्र चलना शुरू हो गया। एक के बाद एक उनके सारे काले कारनामे उजागर होते जा रहे हैं। अब तो यह दिन आ गया है कि साहब को सफाई देनी पड़ रही है। जो दूसरे से सफाई मांगते थे वह खुद सफाई देते फिर रहे हैं। सारा सुख-चैन छिन गया है। रात में भी नींद के लिए गोलियां खानी पड़ रही है।
हम हैं जरा हट के
खाकी वाले विभाग के कप्तान साहब जरा हटके हैं। वे पूरे महकमे को भी जरा हटके बनाने की कोशिश में जुटे हैं। उनका एक ही सिद्धांत है, कर भला तो हो भला। कहते हैं, जब तक रहेंगे, खाकी को आम आदमी का दोस्त बनाकर ही छोड़ेंगे। यही संदेश उन्होंने विभाग के टॉप टू बॉटम तक भिजवा दिया है। कहते हैं, कानून के डंडे से सबको न्याय नहीं मिल सकता है, कुछ मामलों में भावनाओं से भी काम लेना पड़ता है। बिहार-झारखंड के कई घाट का पानी पी चुके ये साहब हर एक व्यक्ति की नब्ज को बेहद करीब से टटोलते हैं। कहते हैं, आम जनता तो सबसे कमजोर होती है और लोग उसका इस्तेमाल करते हैं। हमें इसी आम जनता का साथ देना है, इस्तेमाल करने वालों का नहीं। कुछ दिनों के बाद खाकी दुर्भावना से ऊपर उठकर काम करेगी, ऐसा उन्हें विश्वास है।
नहीं चढ़ा सुरूर
झारखंड का मनमिजाज ही कुछ ऐसा है। कोरोना संकट काल में मय के शौकीनों ने लंबा लाकडाउन काटा। एक-एक दिन ऐसा कटा कि पूछो मत। बस एक ही मन्नत थी कि किसी तरह एक बार खुल जाए दुकान। वैसे शासन को इस बात का डर था कि हालात दिल्ली और बंगलुरू वाला न हो जाए इसलिए खाकी वाले डरे थे, माहौल भी बना रहे थे। लेकिन यह क्या, यहां दुकानें खुलने के बाद लोग फटक ही नहीं रहे आसपास। कहां सोचा था कि भीड़ उमड़ेगी भोर से और भरेगा खजाना, लेकिन यहां तो घर से ही आटा गीला करने की नौबत आ गई है। कारोबारियों ने गुहार लगाई है कि बचा लीजिए हुजूर। यहां तो मूल धन पर ही आफत दिख रही है। कमाई के आसार भी नजर नहीं आ रहे दूर-दूर तक तो रोज सामने वाले को पव्वा कहां से दें भला।