आदि दर्शन में जनजातीय समुदाय की जीवनशैली पर चर्चा Ranchi News
Jharkhand. राज्यपाल ने आदिवासियों की संस्कृति की जानकारी देते हुए कहा कि वे कभी झूठ नहीं बोलते। झूठ नहीं बोलते इसलिए व्यापार नहीं करते।
रांची, राज्य ब्यूरो। आदि दर्शन पर तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार की शुरुआत शुक्रवार को रांची के आड्रे हाउस में हुई। कार्यक्रम का प्रारंभ जनजाति समुदाय की पारंपरिक पूजा के साथ हुआ। पाहन ने इसकी पूजा कराई। जनजातीय समाज की युवतियों ने पारंपरिक परिधान में नृत्य कर अतिथियों का स्वागत किया। पहले दिन चार एकेडमिक सेशन हुए।
आदिवासी दर्शन सबसे अच्छा
राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए आदि दर्शन को सबसे अच्छा दर्शन बताया। कहा है कि सभी विषयों की जननी यह दर्शन है। राज्यपाल ने आदिवासियों की संस्कृति की जानकारी देते हुए कहा कि वे कभी झूठ नहीं बोलते। झूठ नहीं बोलते, इसलिए व्यापार नहीं करते। कहा कि अभी तक जनजातीय समुदायों के अध्ययन के विषय उनकी बाहरी गतिविधियों, बाह्य जगत से उनके संबंधों, अपने समाज में उनके व्यवहारों तक ही सीमित रहे हैं।
विशेष तौर पर मानवशास्त्री आदिवासी समाज के धार्मिक अनुष्ठानों, पूजा पद्धतियों, जन्म से मृत्यु तक के संस्कारों, सामाजिक संगठनों, पर्व-त्योहार, किस्से-कहानियों, गीतों तथा नृत्य की शैलियों पर ही अध्ययन करते आ रहे हैं। लेकिन ऐसे आयोजन से आदिवासी दर्शन दर्शनशास्त्र की भारतीय शाखा में अपनी महत्वपूर्ण जगह बनाने में सफल होगा।
लिपिबद्ध करने की आवश्यकता
राज्यपाल के अनुसार, आदिवासियों के पास विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार की विद्या होती है। वे विभिन्न प्रकार की बीमारियों के उपचार की औषधीय दवा के बारे में भी जानकारी रखते हैं। लेकिन ये जानकारियां लिपिबद्ध नहीं हो सकीं, जिसके कारण आज का समाज इसका लाभ उठा नहीं पा रहा है। इसलिए जरूरी इसे लिपिबद्ध करने की है।
आदिवासियों को लूट रहा विकास का आधुनिक मॉडल : हेमंत
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा है कि विकास का वर्तमान पैमाना (आधुनिक मॉडल) जनजातीय समुदाय को लूट रहा है। कंक्रीट के जंगलों ने आदिवासियों के अस्तित्व के साथ-साथ उनकी संस्कृति, परंपरा, भाषा आदि को जबर्दस्त नुकसान पहुंचाया है। मुख्यमंत्री ने आदि दर्शन सेमिनार में आदिवासियों की संस्कृति, भाषा, परंपरा को अक्षुण्ण बनाए रखने की सरकार की प्रतिबद्धता भी बताई।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पूरे विश्व की आबादी का पांच प्रतिशत यानी पूरे विश्व में 800 करोड़ की आबादी में लगभग 40 करोड़ की आबादी आदिवासियों की है। लेकिन यह एक बड़ी विडंबना है कि पूरे विश्व की गरीबी में 15 फीसद की हिस्सेदारी आदिवासियों की है। झारखंड में आदिवासियों की आबादी 35 फीसद से घटकर 26 फीसद हो गई। कहा, आखिर ऐसा क्यों है, यह शोध का ही विषय है। उन्होंने विकास के वर्तमान मॉडल पर सवाल उठाते हुए ब्राजील, मलेशिया, आस्ट्रेलिया जैसे देशों का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां किस तरह विकास के नाम पर आदिवासियों को हटाया जा रहा है।
झारखंड में ही खनिज के उत्खनन के लिए आदिवासियों को जमीन से बेदखल किया गया। कहा, राज्य में बड़े-बड़े कारखाने तो लगे लेकिन आदिवासियों को उस तरह लाभ नहीं मिल सका, जिसकी कल्पना की गई थी। कहा कि जब सड़कें, बड़े-बड़े भवन बनते हैं और आदिवासी इन सड़कों पर चलने लायक नहीं रह पाते तो विकास का कोई मतलब नहीं रह जाता। साथ ही विकास के आधुनिक मॉडल ने आदिवासी और प्रकृति के रिश्ते के संतुलन को बिगाड़ दिया है।
आदिवासी समूह को जल, जंगल, जमीन से अलग किया गया
मुख्यमंत्री ने कहा कि मलेशिया में आदिवासी समुदाय के लोग मछलियां पकड़कर अपना जीवनयापन करते थे। उन्हें विकास के नाम पर शोषित और पीडि़त किया गया। ब्राजील के आदिवासी समुदाय, जिन्हें गौरानी समूह के रूप में जाना जाता था, भी अपनी परंपरा और संस्कृति से उखड़ गया। सरकार ने इन्हें विस्थापित कर दिया क्योंकि सरकार पेट्रोल-डीजल के लिए गन्ने की खेती करना चाहती थी।
गिरते जीवन स्तर पर चिंतन की आवश्यकता
मुख्यमंत्री ने कहा कि आज पूरा विश्व ग्लोबल वार्मिंग से चिंतित है। लेकिन आदिवासी समुदाय प्रकृति को अपने सीने से लगाकर रहता है। प्रकृति को इस समूह से कोई नुकसान नहीं हुआ है। हड़प्पा संस्कृति और मोहनजोदड़ो की खुदाई में पाए गए बर्तन में आज भी आदिवासी समुदाय के लोग खाना खाते हैं। लेकिन आदिवासी समुदायों के गिरते जीवन स्तर पर भी हमें चिंतन करने की आवश्यकता है।
कई विशेषज्ञ व शोधकर्ता ले रहे भाग
19 जनवरी तक चलने वाले इस सेमिनार में सात देशों से आदिवासी दर्शनशास्त्र के विशेषज्ञ और शोधकर्ता हिस्सा ले रहे हैं। सेमिनार को डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ सत्यनारायण मुंडा, कल्याण सचिव हिमानी पांडेय, राम दयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान के निदेशक रणेंद्र कुमार आदि ने संबोधित किया।