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जानिए, कैसे गाय से बदली किस्मत; कभी खाने के लाले थे आज सफल डेयरी संचालक

कभी इन्हें खाने के लाले थे। खेती करने को जमीन नहीं थी लेकिन कुछ करने का जज्बा इस कदर था कि आज इलाके के सफल डेयरी संचालकों में इनकी गिनती है।

By Edited By: Published: Mon, 03 Dec 2018 01:09 AM (IST)Updated: Mon, 03 Dec 2018 01:35 PM (IST)
जानिए, कैसे गाय से बदली किस्मत; कभी खाने के लाले थे आज सफल डेयरी संचालक
जानिए, कैसे गाय से बदली किस्मत; कभी खाने के लाले थे आज सफल डेयरी संचालक

रांची, प्रदीप सिंह। गाय सिर्फ दूध नहीं देती, वह किस्मत भी बदलती है। हिंदू मान्यताओं में गाय की महत्ता ऐसे हीं नहीं है। रांची से सटे दहराटांड, इटकी के रहने वाले अशोक महतो के जीवन में गाय का महत्व जानकार आप दंग रह जाएंगे। कभी इन्हें खाने के लाले थे। परिवार चल नहीं पाता था। मौसमी काम करते थे। कभी सब्जी बेच ली जो ठेले पर तरबूज बेच लिया। खेती करने को जमीन नहीं थी लेकिन कुछ करने का जज्बा इस कदर था कि आज इलाके के सफल डेयरी संचालकों में इनकी गिनती है। डेयरी तकनीक के मानकों और नए शोध का भरपूर पालन करते हैं। क्रास ब्रीड के माध्यम से इन्होंने दुधारू गायों का चयन किया है। इसके माध्यम से वे रोजाना 220 लीटर से 250 लीटर दूध का उत्पादन करते हैं।

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अशोक महतो ने सफलता की इबारत अपनी मेहनत के बलबूते लिखी है। कहते हैं-मन में आया कि कुछ नया किया जाए। खोने को कुछ था नहीं लेकिन पाने को पूरा आसमान था। इसी उत्साह में आकर निर्णय किया कि गोपालन करेंगे। एक बैल था जो खेती के काम में आता था। उसे दो हजार रुपये में बेचकर अशोक महतो ने एक बछिया खरीदी। यह वाकया दस साल पहले का है। इस अवधि में अशोक महतो बड़ी गोशाला के मालिक बन चुके हैं। उनके पास 42 बेहतरीन नस्ल की दुधारू गायें हैं। वे इसके लिए कृषि विभाग के अधिकारियों से भी मदद लेते हैं। बेहतरीन शोध के मुताबिक नस्लों का चयन करते हैं। दूध की सप्लाई वे मेघा डेयरी को देते हैं। दूध में मौजूद फैट के मुताबिक बेहतर कीमत मिलती है। महीने में डेढ़ लाख से ज्यादा कमा लेते हैं। खर्च आदि बचाकर 40 हजार रुपये तक की शुद्ध आमदनी हो जाती है। वे कहते हैं-किसी चीज की कमी नहीं। गोसेवा से उन्हें उम्मीद से ज्यादा मिला है। वे इस काम को आगे बढ़ाते रहेंगे।

मशीन लगाकर निकालते हैं दूध दुधारू गाय के खानपान का खास ख्याल रखना पड़ता है। अशोक इसका पूरा ख्याल रखते हैं। खास तौर पर तैयार किया गया हरा चारा गायों को देते हैं। दूध निकालने के लिए उन्होंने मशीन लगा रखी है। गाय के गोबर से भी उन्हें बेहतर आमदनी होती है। झारखंड में मांग के मुताबिक दूध की कमी झारखंड में दूध उत्पादन में हाल के वर्षो में काफी वृद्धि हुई है। इसके बावजूद दूध के लिए निर्भरता पड़ोसी राज्यों पर है। रोजाना 1.5 लाख लीटर दूध पड़ोसी राज्य बिहार से आपूर्ति की जाती है। दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार ने जहां सब्सिडी की योजना बना रखी है वहीं स्वरोजगार आरंभ करने के लिए सरकार के स्तर से निश्शुल्क दुधारू गाय भी मुहैया कराया जाता है।


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