1857 में जिस बरगद के पेड़ से लटकाए गए थे भारत माता के 500 सपूत, वहां बनेगा स्मारक
दैनिक जागरण में खबर छपने के बाद प्रशासन ने इस ऐतिहासिक बरगद के पेड़ की सुध ली है। इसे बलिदान स्थल के रूप में विकसित करने की कवायद शुरू हो गई है। प्रखंड विकास पदाधिकारी ने कहा है कि 15वें वित्त आयोग की राशि से चबूतरा का निर्माण होगा।
पलामू (संवाद सूत्र) : ऐतिहासिक बरगद का पेड़ देश की आजादी के लिए बलिदान देने वालों की याद दिलाता है। अंग्रेजों ने इसी बरगद के पेड़ से 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में 500 रणबांकुरों को फांसी पर लटका दिया था। आजादी के बरसों बाद भी यह स्थल गुमनाम है। इसे ऐतिहासिक स्थल के रूप में विकसित करने की प्रशासनिक पहल अब की जा रही है। गुमनाम सैकड़ों बलिदानियों यह को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। दैनिक जागरण ने बरगद के इस पेड़ की कहानी और इसकी उपेक्षा की गाथा 27 नवंबर को प्रकाशित की थी।
नावाबाजार प्रखंड के राजहरा गांव में है यह ऐतिहासिक बरगद का पेड़
नावाबाजार प्रखंड के सीओ सह प्रभारी बीडीओ राकेश श्रीवास्तव नावाबाजार प्रखंड के राजहरा गांव स्थित ऐतिहासिक बरगद पेड़ के नीचे पहुंचे। स्थानीय लोगों से बातचीत की। इतिहास से रूबरू हुए। उन्होंने गांव के बड़े-बुजुर्गों से समुचित जानकारी ली। मालूम हो दैनिक जागरण अखबार ने 27 नवंबर को बरगद के पेड़ से 500 लोगों को फांसी पर लटका दिए जाने संबंधित खबर को पेज चार पर प्रमुखता से प्रकाशित की थी। खबर को संज्ञान में लेते हुए सीओ सह बीडीओ श्रीवास्तव स्थल पर पहुंचकर विशाल बरगद पेड़ व इससे जुड़ी समुचित जानकारी स्थानीय लोगों से ली।
पेड़ को सुरक्षित रखने के लिए चारदीवारी खड़ी की जाएगी
उन्होंने कहा कि इस ऐतिहासिक बरगद पेड़ व स्थल को राष्ट्रीय स्थल के रूप विकसित करने की जरूरत है। इसके लिए वह बतौर प्रशासनिक पदाधिकारी अपनी ओर से सार्थक प्रयास करेंगे। गांव के इस ऐतिहासिक बरगद पेड़ के अस्तित्व को बचाए रखना जरूरी है। इसे लेकर पंचायत के 15वें वित्त आयोग के अनुदान मद से पेड़ की चारदीवारी खड़ी की जाएगी। इसमें मिट्टी भरते हुए चबूतरे का निर्माण कराया जाएगा। इसे शहीद वेदी के रूप में विकसित किया जाएगा।
इतिहासकार डा बी विरोतम की पुस्तक में है इसका उल्लेख
प्रखंड विकास पदाधिकारी ने स्थानीय लोगों से भी अपील की कि आगे बढ़कर ऐसे कार्यों में सहयोग करें। आजादी की लड़ाई के बलिदानियों को गुमनाम नहीं छोड़ा जाएगा। उनकी आतात्माओं ने क्षेत्र को गौरवांवित किया है। मालूम हो कि इतिहासकार डा बी विरोतम रचित इतिहास और संस्कृति पुस्तक के अनुसार, 27 से 29 नवंबर 1857 का तीन दिन राजहारा के लिए काला दिन साबित हुआ। इनकी माने तो 27 नवंबर 1857 को पारंपरिक हथियार और बंदूकों से लैस लगभग पांच हजार आंदोलनकारियों का जत्था राजहारा कोठी पहुंचा। यहां कोयला उत्पादन कर रही बंगाल कोल कंपनी को बर्बाद करते हुए जलाया दिया था। इस आंदोलन में दर्जनों ब्राह्मण समेत भोक्ता और खरवार जाति के लोग शामिल थे। आंदोलनकारियों को 27 नवंबर 1857 को गिरफ्तार कर लिया गया। इन्हें 28 व 29 नवंबर को राजहरा कोठी स्थित बरगद के पेड़ से लटकाकर फांसी दे दी गई। लोगों की माने तो शहीद क्रांतिकारियों के स्वजनों को इसकी सूचना तक नहीं दी गई। वीर बलिदानियों के स्वजन व आश्रितों की किसी ने खोज खबर नहीं ली है। यह गुमनाम बनकर रह गए हैं।