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बिहारियों को झारखंड में आरक्षण नहीं : 5 प्‍वाइंट्स में जानें हाई कोर्ट के फैसले के मायने

वह व्यक्ति झारखंड में आरक्षण का दावा नहीं कर सकता जो बिहार और अन्य किसी राज्य में आरक्षण का हकदार है। लाभ के लिए जाति प्रमाणपत्र झारखंड को होना चाहिए।

By Alok ShahiEdited By: Published: Tue, 25 Feb 2020 09:47 AM (IST)Updated: Tue, 25 Feb 2020 09:47 AM (IST)
बिहारियों को झारखंड में आरक्षण नहीं : 5 प्‍वाइंट्स में जानें हाई कोर्ट के फैसले के मायने
बिहारियों को झारखंड में आरक्षण नहीं : 5 प्‍वाइंट्स में जानें हाई कोर्ट के फैसले के मायने

रांची, [जागरण स्‍पेशल]। बिहारियों को झारखंड में नहीं मिलेगा आरक्षण का लाभ। झारखंड हाई कोर्ट का दो टूक फैसला आ गया है। अब किसी को कोई कन्‍फ्यूजन नहीं रहा। चाहे वह एकीकृत बि‍हार के समय से ही झारखंड के किसी जिले में क्‍यों न रह रहा हो? यह बड़ा फैसला उन लोगों को भारी पड़ने वाला है, जो मूल निवासी के तौर पर अब भी बिहार के माने जाते हैं। बहरहाल अब बिहार के ओबीसी बी-1, ओबीसी बी-2, एससी-एसटी श्रेणी के किसी भी व्यक्ति को झारखंड में आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। अब हाई कोर्ट के आदेश के बाद बिहार सहित किसी भी राज्य के व्यक्ति को झारखंड में सरकारी नौकरी सामान्‍य के तौर पर लेनी होगी। अदालत के इस फैसले के बाद सालों से यहां रह रही बिहारी बिरादरी अपने नेताओं और रहनुमाओं का मुंह ताक रही है कि वे सरकार को इसके लिए क्‍यों नहीं समझाते।  आखिर उन्‍होंने भी झारखंड को बनाने-सींचने में जान फूंकी है।

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बिहारियों को झारखंड में आरक्षण नहीं : 5 प्‍वाइंट्स में जानें हाई कोर्ट के फैसले के मायने

  1. इस फैसले में एक जज ने कहा- एकीकृत बिहार से ही राज्य में रहने की वजह से बिहारियों को आरक्षण का लाभ मिलेगा। सबसे पहले जस्टिस एचसी मिश्र ने अपना आदेश पढ़कर सुनाया। उन्होंने अपने आदेश में कहा कि प्रार्थी एकीकृत बिहार के समय से ही झारखंड क्षेत्र में रह रहा है, इसलिए उसे आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। यह कहते हुए उन्होंने राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया और प्रार्थियों को नौकरी में बहाल करने का आदेश दिया। 
  2. तीन जजों की बेंच ने बिहारियों को आरक्षण नहीं देने का आदेश बहुमत से दिया है। इनमें दो जजों ने कहा कि दूसरे प्रदेश के लोग किसी प्रकार के आरक्षण के हकदार नहीं हैं। इसके बाद जस्टिस अपरेश कुमार सिंह ने अपना आदेश पढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा बीर सिंह के मामले में दिए गए आदेश का हवाला देते हुए कहा कि एक राज्य का निवासी दूसरे राज्य में आरक्षण का हकदार नहीं होगा। यही आदेश जस्टिस बीबी मंगलमूर्ति का भी था। इसके बाद दोनों जजों ने प्रार्थियों की अपील को खारिज करते हुए सरकार के पक्ष को सही माना।
  3. एकीकृत बिहार या 15 नवंबर 2000 से राज्य में रहने के बाद भी वैसे लोग आरक्षण के हकदार नहीं होंगे, जिनका ओरिजिन (मूल) झारखंड नहीं होगा। आरक्षण का लाभ सिर्फ उन्हें ही मिलेगा, जो झारखंड के ओरिजिन (मूल) होंगे। जहां तक 18 अप्रैल 2016 से लागू स्थानीय नीति का सवाल है, तो जो लोग इसकी परिधि में आते हैं, उन्हें सिर्फ सामान्य कैटगरी में ही विचार किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने आदेश में कहा है कि माइग्रेटेड (बाहरी) राज्य से आने वाले लोगों को दूसरे राज्य में आरक्षण नहीं दिया जा सकता है।
  4. वह व्यक्ति झारखंड में आरक्षण का दावा नहीं कर सकता जो बिहार और अन्य किसी राज्य में आरक्षण का हकदार है। उसकी जाति झारखंड में आरक्षण के दायरे में अधिसूचित नहीं है। लाभ के लिए जाति प्रमाणपत्र झारखंड को होना चाहिए। यहां जाति प्रमाण पत्र उसका ही बनता है जो स्थानीय है। रघुवर सरकार ने स्थानीयता का कट ऑफ डेट 1985 बताया है।
  5. आरक्षण का मसला तब उठा जब झारखंड में सिपाही की बहाली के दौरान बिहार के स्थायी निवासियों ने आरक्षण का लाभ लिया था। बाद में मामला उजागर होने पर उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। कहा गया था कि एकीकृत बिहार, वर्तमान बिहार और वर्तमान झारखंड में उनकी जाति एससी-एसटी व ओबीसी के रूप में शामिल है, इसलिए वर्तमान झारखंड में उन्हें एससी-एसटी व ओबीसी के रूप में आरक्षण मिलना चाहिए। तर्क था कि पिछले कई सालों से वे झारखंड क्षेत्र में रह रहे हैं और सिर्फ इसलिए उन्हें आरक्षण के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है कि वे वर्तमान में बिहार राज्य के स्थायी निवासी हैं। उसंविधान के अनुच्छेद 16 (4) में जो अधिकार मिला हुआ है, उसके अनुसार उन्हें आरक्षण का लाभ दिया जाना चाहिए। 

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