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Truth Of Life: मुनिश्री विशल्यसागर ने समझाया जीवन का सच - हर पल गतिमान रहता है मनुष्य, ठहराव आया समझो समाप्त हुई दुनिया

Truth Of Life जैन मुनि विशल्यसागर ने कहा कि मनुष्य हर पल गतिमान रहता है। जहां रुकावट या ठहराव आ जाता है वहां जीवन समाप्त हो जाता है। यहां हर व्यक्ति यात्रा कर रहा है। आप मैं हम सभी यात्रा पर हैं।

By Kanchan SinghEdited By: Published: Sat, 09 Oct 2021 04:09 PM (IST)Updated: Sat, 09 Oct 2021 04:09 PM (IST)
Truth Of Life: मुनिश्री विशल्यसागर ने समझाया जीवन का सच - हर पल गतिमान रहता है मनुष्य, ठहराव आया समझो समाप्त हुई दुनिया
जैन मुनि विशल्यसागर ने कहा यहां हर व्यक्ति यात्रा कर रहा है।

रांची, जासं। जैन मुनि विशल्यसागर ने कहा कि मनुष्य हर पल गतिमान रहता है। जहां रुकावट या ठहराव आ जाता है, वहां जीवन समाप्त हो जाता है। एक जीवन की समाप्ति दूसरे जीवन की शुरुआत होती है। यहां  हर व्यक्ति यात्रा कर रहा है। आप, मैं, हम सभी यात्रा पर हैं। संसार में जितने भी प्राणी प्राणी हैं, सब यात्रा पर हैं। इस यात्रा में किसी को आज तो किसी को कल मंजिल मिलने वाली है।

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यहां हर कोई मंजिल की तलाश में है। कोई आज जा रहा है, कोई कल जा रहा है। सब पंक्ति में लगे हैं। आज जिस कोठी में बैठे हो, कल वहां से आपका बोरिया -बिस्तर बंधने वाला है। मनुष्य को जन्म के साथ ही यहां से वापस जाने का टिकट भी मिला हुआ है। रोते हुए आने वाले मनुष्य को हंसते हुए जाना है या रोते हुए, यह उसी पर निर्भर करता है। हंसते हुए जाओगे तो जीवन सफल होगा और रोते हुए जाओगे तो जीवन अभिशाप बना रहेगा।

जैन मुनि दिगंबर जैन मंदिर अपर बाजार रांची में श्रद्धालुओं को जीवन के सच से परिचय करा रहे थे l उन्होंने कहा कि जीवन के ये वरदान और अभिशाप हम सभी को मिले हुए हैं। सिकंदर ने दुनिया को जीता। लेकिन जाते समय उसके दोनों हाथ खाली थे। इसकी फलश्रुति तो हमारे कर्मों पर निर्भर करती है। सिकंदर ने अपने अंतिम समय में वैद्यों से कहा कि 'मुझे कुछ जीने की मोहलत दे दो, मैं तुम्हें दौलत से तोल दूंगा। वैद्य हंसा ' कितना नादान है सिकंदर ! अरे करोड़ों रुपये देकर भी एक क्षण मिल सकता क्या, चाहे कोई भी क्यों न हो ऐसा कौन है जो मृत्यु के चंगुल से बचा है ?

प्रति दिन सूर्य उदय होता है और शाम को अस्त हो जाता है। इस शाश्वत क्रम को कोई नहीं बदल सकता। आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि सूर्य उगा हो और शाम को अस्त न हुआ हो। आखिर खिलने वाला हर फूल कुम्हलाता तो है ही। ' जन्मे तो निश्चित मरे, कौन अमर हो आय ' जिसने जन्म लिया ,उसकी मृत्यु अवश्य है। मनुष्य को इस बात की खबर नहीं है कि सांस वह भीतर ले रहा है, उसे बाहर भी निकाल पाएगा या नहीं। रात को सोते समय भी निश्चय नहीं होता कि सुबह सलामत उठ पाएंगे या नहीं। सुबह घर से निकलते हैं, तो शाम को घर लौटेंगे या नहीं।


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