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International Elders Day: रांची में ठहाकों के बीच जीवन को नए अंदाज में जी रहे बुजुर्ग

International Elders Day रांची वृद्धाश्रम में कोई टीचर प्रोफेसर इंजीनियर और व्यापारी पेशा से रिटायर हुए वृद्ध शांति प्रिय जीवन जीने के लिए आते हैं। यहां की व्यवस्था को देखकर रहनेवाले लोग यहां से जाना नहीं चाहते। जिंदगी की जंग में खुश रहना है तो इनसे सीखिए।

By Kanchan SinghEdited By: Published: Fri, 01 Oct 2021 01:07 PM (IST)Updated: Fri, 01 Oct 2021 01:07 PM (IST)
International Elders Day: रांची में ठहाकों के बीच जीवन को नए अंदाज में जी रहे बुजुर्ग
स्थिति चाहे जैसी भी हो जिंदगी को खुशी से जीना है, तो जीना है।

रांची, जासं। कौन कहता है कि वृद्धाश्रम में दुखी लोग रहते हैं। चुटकुले अंदाज में बात करना, ठहाके लगा कर हंसना और सभी लोग जहां एक दूसरे के मित्र हों। वहां, दुख तो दूर-दूर तक झांकने से नहीं दिखता। यह माहौल, बरियातू स्थित सीनियर सिटीजन होम वृद्धाश्रम का है। यहां 37 वृद्ध अपने परिवार वालों की परेशानी से दूर खुशहाल से जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यहां पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तरप्रदेश और तमिलनाडु के वृद्ध रहते हैं।

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अक्सर हम सुनते हैं कि बच्चे अपने मां-पिता को वृद्धाश्रम छोड़ आते हैं। वृद्धाश्रम में कोई टीचर, प्रोफेसर, इंजीनियर और व्यापारी पेशा से रिटायर हुए वृद्ध, शांति प्रिय जीवन जीने के लिए आते हैं। अपनी दिनचर्या की शुरुआत सुबह 6 बजे चाय से शुरू कर, शाम को सत्संग में एक दूसरे के साथ भजन-कीर्तन कर समय बिताते हैं। यहां की व्यवस्था को देखकर रहनेवाले लोग यहां से जाना नहीं चाहते।  जिंदगी की जंग में खुश रहना है तो इनसे सीखिए। स्थिति और परिस्थिति चाहे जैसी भी हो जिंदगी को खुशी से जीना है, तो जीना है।

पिछले 12 वर्षो से यहीं हूं। जन्म के वक्त से ही शरीर का ऊपरी दाहिना अंग लगवाग्रस्त और दिमागी रूप से कमजोर हूं। मां-पिता के देहांत होने के बाद भाई ने वृद्धाश्रम लाकर छोड़ दिया। दिन में चंपक किताब पढ़ता हूं। पढ़ने से मन ऊब जाचा है तो कॉपी में राम नाम लिखता हूं। - अरूण कोहली।

मैं हजारीबाग से आया हूं। मेरे चार लड़के हैं। हजारीबाग में मेरा कारोबार है। जीवन में शांति और खुशी की कमी के कारण यहां रह रहा हूं। उम्र होने पर शांति और खुशी चाहिए होता है और मैं यहां खुश हूं। मेरे मन में इतना विश्वास है कि मेरे साथ कुछ गलत नहीं होगा।- एससी जैन।

मैं रांची का रहने वाला हूं। पिछले 4 वर्षो से यहां पर हूं। पत्नी बेटों के साथ रहती है। घर की किच-किच से दूर यहां शांति से जीवन बिता रहे हैं। - जगन्नाथ दास।

मैं पटना की रहने वाली हूं। रांची स्थित एक सरकारी स्कूल में बच्चों को पढ़ाती थी। वर्ष 2011 में पति के निधन होने के बाद वर्ष 2014 से वृद्धाश्रम में रह रहीं हूं। मेरे तीन लड़के हैं। घर में शांति प्रिय माहौल न होने के कारण खुद वृद्धाश्रम आ गई। यहां का माहौल प्यार लगता है। मैं यहां से वापस घर लौट कर नही जाना चाहती।

- वीपी सिन्हा।


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