World Alzheimer's Day: 40 की उम्र में ही भूलने की बीमारी से पीड़ित हो रहे लोग, जानें इसके लक्षण व बचाव के उपाय
World Alzheimers Day कम उम्र में ही अल्जाइमर के मरीज मिल रहे हैं। इसमें महिलाओं की संख्या अधिक है। अल्जाइमर और डिमेंशिया ऐसी दिमागी बीमारी है जिसमें याद्दाश्त कम होती रहती है। एक वर्ष में अल्जाइमर के 250 मरीज के रिम्स पहुंचे।
रांची, जासं। सोचने-समझने और भूलने की बीमारी अल्जाइमर के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। रांची के रिम्स और निजी अस्पतालों के न्यूरोलॉजी विभाग में हर माह 25 से 55 मरीज अल्जाइमर की समस्या लेकर आ रहे हैं। इनमें सबसे चौंकाने वाली बात कम उम्र के मरीजों का मिलना है। आमतौर पर अल्जाइमर 60 वर्ष के बाद लोगों में पाया जाता है, लेकिन अभी देखा जा रहा है कि कम उम्र में ही इसके मरीज मिल रहे हैं। इन मरीजों में 40 वर्ष तक के मरीज शामिल हैं।
न्यूरोलॉजिस्ट डा. उज्जवल राय बताते हैं कि अधिक तनाव लोगों के मस्तिष्क पर असर कर रहा है। लोगों में भूलने की बीमारी आ रही है, जिसकी शुरुआत छोटी चीजों से होती है। लोग अगर छोटी बातों को भूलने को भी गौर करेंगे और इसका समय पर इलाज करवाया जाए तो इस बीमारी को कम उम्र में ठीक किया जा सकता है। लेकिन बढ़ती उम्र के साथ इस बीमारी का कोई कारगर इलाज नहीं है। हालांकि दवा, काउंसलिंग और जीवनशैली में बदलाव करके इस रोग से काफी हद तक बचा जा सकता है।
अल्जाइमर और डिमेंशिया ऐसी दिमागी बीमारी, जिसमें याद्दाश्त कम होती रहती है
रिम्स के न्यूरोसर्जन डा. अनिल बताते हैं कि अल्जाइमर का खतरा मस्तिष्क में प्रोटीन की संरचना में गड़बड़ी होने के कारण बढ़ता है। यह एक मस्तिष्क से जुड़ी बीमारी है, जिसमें व्यक्ति धीरे-धीरे अपनी याददाश्त खोने लगता है। अल्जाइमर बीमारी और डिमेंशिया में लोगों को अंतर समझना चाहिए। इन दोनों बीमारी में ब्रेन सिकुड़ जाता है, ब्रेन की सक्रियता कम होने लगती है। लेकिन दोनों बीमारी में उम्र का अंतर है। डिमेंशिया 70-75 वर्ष के बाद होता है। जबकि अल्जाइमर ऐसी बीमारी है, जिसे होने के लिए किसी उम्र की कोई सीमा ही नहीं है।
बीमारी के हैं कई कारण
पहले यह बुजुर्गों को ही होता था, लेकिन अब कई शोध में कई चीजें सामने आ रही है। इसमें इस बीमारी के होने का कोई एक कारण नहीं बताया गया है। यह बीमारी जेनेटिक भी हो सकती है, सामाजिक समस्या से भी हो सकती है, पारिवारिक तनाव या प्रदूषण से भी हो सकती है। इसका कोई मुख्य कारण सामने नहीं आया है। लेकिन डिमेंशिया और अल्जाइमर दोनों बीमारी का सटीक इलाज नहीं है। उन्होंने बताया कि रिम्स के न्यूरोलॉजी और न्यूरोसर्जरी में एक वर्ष में करीब 250 ऐसे मरीज आते हैं, जिनमें विभिन्न उम्र के मरीज हैं।
डा. अनिल बताते हैं कि अल्जाइमर को बुढ़ापे का रोग माना जाता है। दुनिया भर में लाखों लोग हर साल इस बीमारी के शिकार हो रहे हैं। शोधकर्ता अब एक ऐसी दवा को बनाने का दावा कर रहे हैं, जो भूलने की बीमारी और तंत्रिका की क्षति से बचा सकती है। हालांकि अभी जो दवाएं मौजूद हैं, उससे अल्जाइमर को बढ़ने से रोका जा सकता है, लेकिन इसका बढ़ती उम्र में पूरा इलाज संभव नहीं दिखता।
पुरुषाें की तुलना में महिलाओं में अधिक खतरा
डा. उज्जवल राय बताते हैं कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अल्जाइमर बीमारी का खतरा अधिक रहता है। डाक्टर के पास अल्जाइमर के इलाज के लिए आने वाले 10 मरीजों में से छह महिलाएं होती हैं। अल्जाइमर रोग के मामले में भारत दुनिया भर में तीसरे नंबर पर है। अल्जाइमर के मरीजों को दवाई के साथ-साथ थेरेपी भी दी जाती है। लेकिन उनकी देखभाल बेहद जरूरी होती है
हर भूलने की बीमारी अल्जाइमर नहीं होती
वे बताते हैं कि यह जरूरी नहीं कि हर भूलने वाली बीमारी अल्जाइमर हो। कई बार विटामिन की कमी, थायराइड का बढ़ जाना, दिमाग में रक्त का थक्का जमना इत्यादि से भी भूलने की शिकायत होती है। ऐसे मरीजों को जल्द न्यूरो फिजीशियन से परामर्श लेना चाहिए, ताकि पहले चरण में ही इसका इलाज किया जा सके। ऐसी कई बीमारियों की वजह से होने वाली भूलने की बीमारी को ठीक किया जा सकता है।
अल्जाइमर के लक्षण
-अपने परिवार के सदस्यों को न पहचान पाना
- नींद पूरी ना आना
-रखी हुई चीजों को जल्दी भूल जाना
-आंखों की रोशनी कम होने लगना
-छोटे-छोटे कामों को करने में भी परेशानी होना
-निर्णय लेने की क्षमता पर प्रभाव पड़ना
-डिप्रेशन में रहना, डर जाना
अल्जाइमर से बचाव
-ब्लड प्रेशर व शुगर नियंत्रित रखें।
-नियमित रूप से व्यायाम करें।
-पोषक तत्वों से भरपूर डाइट लें।
-लोगों से मिलना जुलना चाहिए, जिससे डिप्रेशन न हो।
-पर्याप्त नींद लें।
-सकारात्मक सोच बनाए रखें।
-नशे से दूर रहें।
|-काफी ज्यादा मात्रा में पानी पीना चाहिए।
-परिवारिक सदस्यों का पूरा सहयोग
कैसे इस बीमारी से बचें
लाइफस्टाइल से जुड़ी आदतों में बदलाव लाना
धूमपान और शराब का सेवन करने से बचें
भरपूर नींद लें
एंटीआक्सीडेंट्स लें
ताजे फल और सब्जियां अपने खाने में जरूर शामिल करें
हर दिन कम से कम आधा घंटे जरूर टहलें
तनाव को नजरअंदाज नहीं करें
अवसाद की स्थिति में तत्काल चिकित्सक से मिलें
ब्लड प्रेशर और डायबिटीज को नियंत्रित रखें।