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मुकरने में माहिर है झारखंड पुलिस, निर्दोष को बनाती है बलि का बकरा; पढ़ें यह खास खबर

Jharkhand Police Jharkhand News ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जब झारखंड पुलिस ने आपाधापी में निर्दोष के ऊपर आरोप मढ़ दिया। जब मामले की तफ्तीश हुई तो दूसरा ही माजरा सामने आया। तथ्यों की छेड़छाड़ और केस डायरी तक में पुलिस अफसरों ने फेरबदल किया।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Tue, 22 Jun 2021 04:08 PM (IST)Updated: Wed, 23 Jun 2021 09:27 AM (IST)
मुकरने में माहिर है झारखंड पुलिस, निर्दोष को बनाती है बलि का बकरा; पढ़ें यह खास खबर
Jharkhand Police, Jharkhand News ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जब झारखंड पुलिस ने आपाधापी में निर्दोष के ऊपर आरोप मढ़ दिया।

रांची, [प्रदीप सिंह]। हिंदपीढ़ी, रांची के रहने वाले ग्रामीण चिकित्सक इंतजार अली को एक दिन पुलिस ने पकड़ा। आरोप लगाया गया था कि उनके पास से विस्फोटक बरामद किया गया है। पुलिस ने दावा किया था कि उनकी गिरफ्तारी सेना के खुफिया सूत्रों से जानकारी मिलने के बाद हुई है। बाद में सारे आरोप तथ्यहीन निकले। पीरटांड, गिरिडीह के जीतन मरांडी को पुलिस ने नक्सली बताकर गिरफ्तार किया। आरोप लगाया गया कि वह एक नरसंहार का मास्टरमाइंड है।

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पुलिसिया जांच के आधार पर अदालत ने सजा सुना दी। इस बीच असली जीतन मरांडी पुलिस की गिरफ्त में आया तो उसे राहत मिली। लोहरदगा में दुष्कर्म के एक मामले में असली अभियुक्त की बजाय पुलिस ने उसके हमनाम को जेल भेज दिया था। जांच में जब खुलासा हुआ तो पुलिस की भद्द पिटी। झारखंड में ऐसे दर्जनों मामले अबतक सामने आ चुके हैं। फर्जी नक्सली बताकर 512 आदिवासी युवकों को सरेंडर कराने की घटना भी इसकी एक बानगी है।

सौ दोषी भले ही छूट जाएं, पर एक निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए। ऐसा लगता है कि न्यायिक प्रक्रिया का यह आदर्श वाक्य झारखंड पुलिस के लिए मखौल बनकर रह गया है। ताजा मामला पूर्व मंत्री योगेंद्र साव का है। अपराध अनुसंधान विभाग (सीआइडी) की जांच में उनके खिलाफ लादे गए मुकदमे गलत साबित हो रहे हैं। तथ्यों की छेड़छाड़ और केस डायरी तक में पुलिस अफसरों ने फेरबदल किया। क्या पुलिस अधिकारी किसी खास मकसद से ऐसा करने को मजबूर हो जाते हैं।

झारखंड पुलिस के एक रिटायर्ड अधिकारी के मुताबिक जांच की प्रक्रिया में कभी-कभी खामी रह जाती है और यह स्वाभाविक भी है। कई बार राजनीतिक दबाव में भी ऐसा होता है। हालांकि जब भी ऐसे मामले सामने आते हैं तो दोषी पुलिस पदाधिकारी कार्रवाई के दायरे में आ जाते हैं। ऐसे अफसरों को यह समझना चाहिए कि कानून के दायरे से वे भी बाहर नहीं हैं और फौरी तौर पर किसी को फायदा-नुकसान पहुंचाने का खामियाजा उन्हें ही भुगतना पड़ता है।

फर्जी मुठभेड़ के मामले भी

झारखंड पुलिस के खिलाफ फर्जी मुठभेड़ के भी मामले चल रहे हैं। हाल ही में लातेहार में ग्रामीणों के एक दल को पुलिस टीम ने नक्सलियों का समूह समझकर फायरिंग कर दी। इस मामले की जांच चल रही है। छह साल पहले बकोरिया में हुए मुठभेड़ की फिलहाल सीबीआइ तफ्तीश कर रही है। इसके अलावा भी कई मामलों की शिकायत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को की गई है, जिसकी जांच चल रही है।


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