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World Wildlife Day: गिद्ध देखने को तरस रहे तो यहां आइए, झारखंड में अभी बच रहे 248 गिद्ध...

World Wildlife Day देश के अन्य इलाकों में भले ही गिद्धों की संख्या नगण्य हो मगर झारखंड में अभी 248 गिद्ध बचे हैं। ये गिद्ध हजारीबाग और इसके आसपास मौजूद हैं। यही नहीं अब गिद्ध हजारीबाग इलाके के अलावा चौपारण बरही कोडरमा और खूंटी में भी दिखने लगे हैं।

By Alok ShahiEdited By: Published: Wed, 03 Mar 2021 06:12 AM (IST)Updated: Wed, 03 Mar 2021 06:13 AM (IST)
World Wildlife Day: गिद्ध देखने को तरस रहे तो यहां आइए, झारखंड में अभी बच रहे 248 गिद्ध...
World Wildlife Day: झारखंड में अभी 248 गिद्ध बचे हैं। ये गिद्ध हजारीबाग और इसके आसपास मौजूद हैं।

रांची, [मुजतबा हैदर रिजवी]। World Wildlife Day देश के अन्य इलाकों में भले ही गिद्धों की संख्या नगण्य हो मगर, झारखंड में अभी 248 गिद्ध बचे हैं। ये गिद्ध हजारीबाग और इसके आसपास मौजूद हैं। यही नहीं, अब गिद्ध हजारीबाग इलाके के अलावा चौपारण, बरही, कोडरमा और खूंटी में भी दिखने लगे हैं। इसे प्रदेश के लिए एक शुभ संकेत माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि अगर, गिद्धों की तरफ तवज्जो दी जाती तो प्रदेश में इनकी संख्या में और इजाफा हो चुका होता।

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झारखंड में 1970 तक गिद्ध बहुतायत में पाए जाते थे। रांची में भी इनकी खासी तादाद थी। यहां एचईसी की स्थापना हुई और इसके बाद इलाके में बस्तियां बसीं। एचईसी की स्थापना के लिए बड़ी संख्या में पेड़ों को काटा गया। ज्यादातर गिद्ध इसी पेड़ों पर बैठते थे। पेड़ कट जाने के बाद गिद्धों की बड़ी संख्या यहां से हजारीबाग पलायन कर गई। इसके बाद तकरीबन 1990 से गिद्धों की संख्या में कमी आना शुरू हुई।

साल 2000 आते-आते झारखंड के तकरीबन सभी इलाकों से गिद्ध लुप्त हो चुके थे। तब इंडियन बर्ड कंजर्वेशन नेटवर्क ने मोर्चा संभाला और प्रदेश में सर्वे का काम शुरू हुआ। सर्वे से पता चला कि प्रदेश में हजारीबाग को छोड़ कर कहीं भी गिद्ध नहीं हैं। साल 2009 में हजारीबाग में सर्वे से पता चला कि यहां गिद्धों की संख्या 350 है। हजारीबाग को प्रोवीजनल वल्चर सेफ जोन बनाया गया।

हजारीबाग और इसके 100 किलोमीटर के दायरे में गिद्धों को संरक्षित करने का अभियान चला। मगर, इनके मरने का सिलसिला जारी था। इंडियन बर्ड कंजर्वेशन नेटवर्क ने मरे हुए गिद्धों का पोस्टमार्टम कराया। इसमें पता चला कि गिद्धों की मौत के पीछे मवेशियों को दी जाने वाली डिक्लोफेनेक समेत अन्य दवाएं जिम्मेदार हैं। गिद्धों के शरीर में डिक्लोफेनेक दवा पाई गई।

इसके बाद इंडियन बर्ड कंजर्वेशन नेटवर्क ने हजारीबाग और इसके आसपास अभियान चला कर डिक्लोफेनेक दवा की बिक्री बंद कराई। सभी मेडिकल स्टोर पर इसकी बिक्री बंद कराई गई। जागरूकता अभियान चलाया गया। लोगों को समझाया गया कि वो उन पेड़ों को मत काटें जिन पर गिद्ध बैठते हैं। इंडियन बर्ड कंजर्वेशन नेटवर्क के कंजरवेटर सत्यप्रकाश बताते हैं कि इसके बाद हजारीबाग में गिद्धों की मौत का सिलसिला थमा।

कोडरमा, बरही व खूंटी में भी दिखने लगे गिद्ध

इंडियन बर्ड कंजर्वेशन नेटवर्क के अभियान का असर दिखने लगा है। अब गिद्ध कोडरमा, चौपारण, बरही और खूंटी में भी दिखने लगे हैं। इंडियन बर्ड कंजर्वेशन नेटवर्क ने के कंजरवेटर डा. सत्यप्रकाश ने इसे सुखद संकेत बताया। उन्होंने कहा कि अब गिद्धों का प्रजनन शुरू हो गया है तभी गिद्ध हजारीबाग के अलावा अन्य इलाकों में भी नजर आने लगे हैं। मगर, उन्होंने इनकी लगातार घटती संख्या पर चिंता जताई।

फंड के अभाव में संरक्षण अभियान प्रभावित

इंडियन बर्ड कंजर्वेशन नेटवर्क के कंजरवेटर डा. सत्यप्रकाश बताते हैं कि उनके सामने फंड की कमी है। फंड नहीं होने से संरक्षण का काम प्रभावी ढंग से नहीं चल पा रहा है। उन्होंने कहा कि फंड मिले तो झारखंड के अन्य इलाकों में भी गिद्धों का संरक्षण शुरू कर दिया जाए। इससे झारश्खंड में गिद्धों की संख्या में इजाफा होगा।

12 साल में ख्त्म हो गए 102 गिद्ध

12 साल में प्रदेश से एक-एक कर 102 गिद्ध खत्म हो गए हैं। ये गिद्ध झारखंड में महज हजारीबाग इलाके में ही बचे हैं। माना जा रहा है कि इंडियन बर्ड कंजर्वेशन नेटवर्क नामक संस्था हजारीबाग में इन गिद्धों को संरक्षित रखने का अभियान चला रही है। वरना, लोग प्रदेश में गिद्ध देखने को तरस जाते। अभी जो 248 गिद्ध बचे हैं। वो इसी संस्था की देन है जिसने हजारीबाग में लगातार अभियान चला कर लोगों गिद्धों को बचाने का काम किया।

इंडियन बर्ड कंजर्वेशन नेटवर्क ने प्रदेश में गिद्धों के लिए अच्छा काम किया है। इसी वजह से प्रदेश में अभी गिद्ध मौजूद हैं। अब हमारी चिंता इनकी संख्या में तेजी से बढ़ोतरी करने की है और ऐसा हम कैसे कर पाएंगे इस पर मंथन चल रहा है। डा. सत्यप्रकाश, कंजरवेटर इंडियन बर्ड कंजर्वेशन नेटवर्क


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