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झारखंड में इस बार 23% तक घट सकता है गेहूं का उत्‍पादन, जानें ये बड़ी वजह

Jharkhand News चक्र में बदलाव से बारिश का मौसम देर तक चल रहा है। वहीं सर्दी छोटी और गर्मी जल्दी शुरू होने से सब्जियों का उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है। तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि पर छह हजार किलो गेहूं का उत्पादन प्रभावित हो सकता है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Mon, 01 Mar 2021 03:01 PM (IST)Updated: Mon, 01 Mar 2021 03:08 PM (IST)
झारखंड में इस बार 23% तक घट सकता है गेहूं का उत्‍पादन, जानें ये बड़ी वजह
तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि पर छह हजार किलो गेहूं का उत्पादन प्रभावित हो सकता है।

रांची, जासं। Wheat Production Jharkhand News मौसम चक्र में परिवर्तन और बढ़ते प्रदूषण का असर न केवल लोगों के स्वास्थ्य पर सीधा असर डाल रहा है, बल्कि खेतों में पैदा हो रही फसलें भी सीधे रूप से इससे प्रभावित हो रही हैं। राज्य में मौसम चक्र के परिवर्तन का असर सबसे ज्यादा यहां की मुख्य फसल धान, गेहूं, मक्का, अरहर दाल, चना, आदि फसल पर सीधे देखने को मिल रहा है। चक्र में बदलाव से बारिश का मौसम देर तक चल रहा है।

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वहीं सर्दी छोटी और गर्मी जल्दी शुरू होने से सब्जियों का उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है। आम, लीची और जामुन में इस बार प्रत्यक्ष रूप से लगभग 20 दिन पहले मंजर आ गए हैं। रांची स्थित बिरसा कृषि विवि के डीन एग्रीकल्चर डाॅ. एमएस यादव बताते हैं कि फरवरी में रांची का तापमान 34 डिग्री सेल्सियस के आसपास पहुंच गया है। यही हाल दूसरे जिलों का है जहां का औसत अधिकतम तापमान 38 डिग्री सेल्सियस के आसपास पहुंच रहा है। इससे निश्चित रूप से फसलों का उत्पादन प्रभावित हो रहा है।

अगले तीन दशकों में फसलों के उत्पादन में आएगी भारी कमी

वर्ष 2019 में कृषि मंत्रालय द्वारा मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता में प्राक्कलन समिति का गठन किया गया था। समिति का काम मौसम में परिवर्तन पर अध्ययन करना था। तब इसकी रिपोर्ट संसद में पेश की गई। वर्ष 2050 तक गेहूं का उत्पादन छह से 23 प्रतिशत तक कम हो सकता है। तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि पर छह हजार किलो गेहूं का उत्पादन प्रभावित हो सकता है। 2050 तक मक्के के उत्पादन में 18 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। बेहतर प्रबंधन से फसलों के उत्पादन में 21 फीसद तक की वृद्धि की जा सकती है। मौसम चक्र में परिवर्तन से फसलों में विभिन्न प्रकार के रोग भी उत्पन्न हो रहे हैं। ऐसे में मौसम के अनुकूल और रोग प्रतिरोधक किस्म का विकास पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।

कौन-कौन फसलें हो रही है प्रभावित

कृषि मौसम विज्ञानी डॉ. ए. वदूद बताते हैं कि मौसम चक्र के परिवर्तन का असर हर फसल पर देखने को मिल रहा है। इससे सब्जियों के साथ अनाज की फसल भी प्रभावित हो रही है। बिचड़े के वक्त बारिश न होने से धान की फसल पर असर देखा जा सकता है। वहीं अक्टूबर के बाद तक बारिश होने से खेत में खड़ी फसल खराब हो जाती है। हालांकि इस बीच सर्दी का मौसम छोटा होने से पाला से कम फसलें खराब हो रहीं हैं। सरसों, आलू, मसूर, आदि की उत्पादकता बढ़ी है। जबकि सूखा और अतिवृष्टि होने से फसलों की उत्पादकता प्रभावित हो रही है।

फसल मौसम चक्र के हिसाब दी जा रही किसानों को सलाह

डॉ. एमएस यादव ने बताया कि किसान को नुकसान से बचाने के लिए उन्होंने फसल चक्र के हिसाब से रबी और खरीफ फसलों की बुआई में परिवर्तन करने की सलाह दी जा रही है। जैसे जो फसल अक्टूबर माह में लगाई जा रही थी, उसकी बुआई 25 नवंबर से 10 दिसंबर तक करने की सलाह दी जा रही है। खरीफ फसल में लंबी अवधि के धान के प्रभेद के स्थान पर कम अवधि 90 से 100 दिन वाली प्रभेद का चुनाव करने की सलाह दी जा रही।

ये करें उपाय

किसानों को कृषि विज्ञानी के संपर्क में रहना चाहिए। वहीं नई कृषि प्रणाली का इस्तेमाल मौसम चक्र से रक्षा में मदद करेगी। किसान को अनाज और फल-सब्जी की खेती अगाती करने की सलाह दी जा रही है। इससे किसान को उत्पाद का मूल्य भी बेहतर मिलेगा। साथ ही, पौधों पर मौसम का असर भी नियंत्रित होता है। कम अवधि में तैयार होने वाले फसल की किस्म का उत्पादन करें। कम अवधि में तैयार होने वाले फसल की नस्ल की उत्पादकता बेहतर देखी गई है। इससे मौसम की मार से फसल के नष्ट होने की संभावना भी कम रहती है।

कृषि विज्ञानियों की पहल

मौसम की मार से फसल को बचाने के लिए इसके अनुकूल किस्मों का विकास किया जा रहा है। जैसे गर्मी की फसलों के गर्मी, सूखा सहिष्णु नस्ल का विकास किया जा रहा है। वहीं फसलों की नई नस्ल का विकास किया जा रहा है जो कम समय में बेहतर उत्पादन दे सकते हैं। साथ ही बीएयू द्वारा विभिन्न फसलों का जीन बैंक तैयार किया जा रहा है। इससे फसलों की रोग प्रतिरोधक नस्ल भी तैयार करने में मदद मिलेगी।

जल्द शुरू हुई गर्मी से आम को फायदा, बाकि पौधों को नुकसान

बीएयू के उद्यान विभाग के अध्यक्ष डॉ. केके झा बताते हैं कि आम में फूल आने का वक्त अब खत्म हो गया है। ऐसे में अभी तेज गर्मी पड़ने से फल को कोई खास नुकसान होने की संभावना नहीं है। अगर फूल खिलने के समय गर्मी बढ़े तो आम की फसल को बड़ा नुकसान संभव है। आम की बौरी जल सकती है। ऐसी स्थिति में फसल को बचाने के लिए रोज हल्की सिंचाई जरूरी है। हालांकि इससे एक फायदा यह होगा कि गर्मी के कारण आम में फंगस रोग नहीं लगेगा।

वहीं मौसम चक्र में परिवर्तन से लीची और जामुन के फसल को नुकसान होने की संभावना है। डॉ. केके झा ने बताया कि आम, लीची और जामुन की बौरी को जलकर गिरने से बचाने के लिए स्फेक्स के एक मिली लीटर को एक लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। हालांकि मौसम चक्र में परिवर्तन का असर निकट भविष्य में आम, लीची और जामुन आदि फसल के उत्पादन में कमी के रूप में देखी जा सकती है। किसानों को इससे बचाने के लिए हम नए किस्म के विकास पर काम कर रहे हैं जो भविष्य की ऐसी समस्या में उत्पादन को बढ़ाने में कारगर होगी।


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