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रांची के प्रभात कुमार ने 16 वर्षों से घर के बाहर नहीं फेंका कचरा, जीरो वेस्‍ट नीति पर दे रहे जोर

Zero Waste Policy प्रभात कुमार कहते हैं कि देश की राजधानी दिल्ली से सटे गाजियाबाद में कचरे का एक बड़ा डंपिंग यार्ड है। कुछ ही वर्षों में इसकी ऊंचाई कुतुबमीनार के जितनी हो गई है। ऐसा ही हाल रांची का भी होने वाला है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Tue, 05 Jan 2021 04:34 PM (IST)Updated: Tue, 05 Jan 2021 04:58 PM (IST)
रांची के प्रभात कुमार ने 16 वर्षों से घर के बाहर नहीं फेंका कचरा, जीरो वेस्‍ट नीति पर दे रहे जोर
प्रभात कुमार ने अपने घर के गार्डेन में फल के साथ सब्जियां और विभिन्न तरह के फूल लगाएं हैं।

रांची, जासं। Zero Waste Concept and Lifestyle पर्यावरण संरक्षण के लिए कई स्तर पर सरकार और कई गैर सरकारी संस्थानों के द्वारा कार्य किए जा रहे हैं। मगर रांची के अशोक नगर के रहने वाले प्रभात कुमार का अंदाज ही निराला है। वेस्टर्न कोल फिल्डस में सीजीएम के पद से सेवानिवृत्‍त प्रभात कुमार अपने घर से बाहर किसी भी तरह का कचरा नहीं फेंकते हैं। पिछले 16 वर्षों से वे कंप्लीट जीरो वेस्ट नीति पर काम कर रहे हैं। घर से निकलने वाले पानी को सोखता बनाकर पौधों की सिंचाई और भू-जल स्तर बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करते हैं।

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वहीं घर के आर्गेनिक कचरे से साल में कम से कम एक छोटा ट्रक कंपोस्ट तैयार करते हैं। प्रभात बताते हैं कि हर कोई अपने घर में अगर इसी तरह से छोटी-छोटी कोशिश करे तो दुनिया आने वाले समय में कचरा का ढ़ेर बनने से बच जाएगी। प्रभात कुमार कहते हैं कि देश की राजधानी दिल्ली से सटे गाजियाबाद में एक बड़ा कचरा डंपिंग यार्ड है।

कुछ ही वर्षों में इसकी ऊंचाई कुतुबमीनार के जितनी हो गई है। ऐसा ही हाल रांची का होने वाला है। जनसंख्या का दबाव अब शहर में दिख रहा है। ऐसे में लोगों को सावधान हो जाने की जरूरत है। जीरो वेस्ट की तकनीक को अगर रांची के 50 प्रतिशत लोग भी अपनाते हैं तो हम कुछ वर्ष तक खुशहाल जीवन जी सकते हैं।

बोतलों और बेकार टायर में उगाते हैं स्ट्रॉबेरी और फूल

प्रभात कुमार अपने घर की हर चीज का इस्तेमाल इस ढंग से करते हैं कि वह सुंदर और आकर्षक हो जाता है। जैसे बेकार टायर में उन्होंने बोगनवेलिया लगाया है। वहीं कोल्ड ड्रिंक की बेकार बोतल का इस्तेमाल कर उन्होंने हैंगिंग पाॅट बनाया है। उन्होंने अपने गार्डेन में फल के साथ सब्जियां और विभिन्न तरह के फूल लगाए हैं। इनसे निकले वेस्ट का भी वे कंपोस्ट बनाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। इसके साथ ही, घर के बेकार जूतों में भी कंपोस्ट भरकर शो प्लांट लगाए गए हैं। यह देखने में इतने खूबसूरत हैं कि प्रभात कुमार से प्रेरणा लेकर आसपास के घरों के लोगों ने भी इस तरह से पौधे लगाए हैं।

बटरफ्लाई मैन के नाम से भी जाने जाते हैं

प्रभात कुमार की एक और पहचान है। इन्हें बटरफ्लाई मैन ऑफ झारखंड के नाम से भी जाना जाता है। कोल क्षेत्र से रिटायर होने के बाद प्रभात कुमार ने अपने बचपन के शौक पर काम करना शुरू किया। उन्होंने अपने पिता के द्वारा गिफ्ट किए कैमरे से उठाकर फोटोग्राफी शुरू की। साथ ही पर्यावरण संरक्षण का काम भी कर रहे हैं। उन्होंने देखा कि सभी राज्य की तितलियों पर किताब है और वहां इनके संरक्षण के लिए सोसाइटी बनाई गई है। मगर जैव विविधता संपन्न राज्य झारखंड में इस विषय पर किसी ने काम ही नहीं किया।

ऐसे में उन्होंने राज्य की तितलियों पर शोध करना शुरू किया। कुछ वर्ष पहले इनका पेपर संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) में भी प्रस्तुत किया गया था। इस बैठक में 182 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था। उनके काम की वजह से झारखंड को पूरे दुनिया में एक पहचान मिली। झारखंड जैव विविधता परिषद् के द्वारा उनकी तितलियों पर कई पुस्तकों को भी प्रकाशित किया गया है।


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