Jharkhand: जिम्मेदारियों से मत भागिए, थाने की कार्यशैली सुधारिए, परिवार व समाज का भी तभी मिलेगा साथ
हजारीबाग में पुलिस ने कार्रवाई नहीं की तो युवती ने दी जान। बोकारो में मामला दर्ज कराने के लिए पांच दिन तक दौड़ती रही युवती- सिर्फ समाज परिवार को नसीहत देकर नहीं बच सकती है पुलिस। राज्य में घटित दो घटनाएं पुलिस की संवेदनशीलता की पोल खोल रही है।
रांची (राज्य ब्यूरो) । पुलिस के बूते नहीं है बच्चियों की सुरक्षा संबंधित बयान देकर पुलिस अपनी जिम्मेदारियों से नहीं भाग सकती है। राज्य में घटित दो घटनाएं पुलिस की संवेदनशीलता की पोल खोल रही है। पहली घटना हजारीबाग जिले की है, जहां एक लड़की ने इसलिए अपनी जान दे दी कि उसके आवेदन पर स्थानीय पुलिस एक महीने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं कर सकी। जबकि दूसरी घटना बोकारो की है, जहां एक पीड़िता को पांच दिनों तक थाने का चक्कर लगाना पड़ा।
यह उदाहरण बताने के लिए काफी है कि झारखंड पुलिस महिलाओं, युवतियों, बच्चियों से होने वाले अपराध पर कार्रवाई के प्रति कितनी संवेदनशील है। ऐसी स्थिति में पुलिस यह कहे कि उसे समाज व परिवार सहयोग करे तो उसे कितना सहयोग मिलेगा, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। हालांकि, हजारीबाग के मामले में वहां के डीआइजी व एसपी को हस्तक्षेप करना पड़ा। जिन्हें काम करना था, उन्होंने अपनी जिम्मेदारी का कितना निर्वहन किया, उसकी जांच चल रही है।
क्या हैं दोनों मामले -
केस वन : हजारीबाग में 18 अक्टूबर की रात अपने कमरे में संत कोलंबा कॉलेज की 22 वर्षीय छात्रा ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली थी। यह बात सामने आ चुकी है कि फेसबुक पर छात्रा को लेकर एक युवक ने आपत्तिजनक पोस्ट किया था। एक महीने से पीड़िता पुलिस से कार्रवाई की गुहार लगा रही थी, लेकिन उसे इंसाफ नहीं मिला। आरोपित ने घटना के दो दिन पूर्व भी फेसबुक पर आपत्तिजनक पोस्ट कर दिया। पुलिस से मदद नहीं मिली तो आहत होकर छात्रा ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली। संज्ञान में आने के बाद हजारीबाग के डीआइजी अमोल वी. होमकर, एसपी कार्तिक एस सक्रिय हो गए हैं। एसडीपीओ कमल किशोर को जांच की जिम्मेदारी मिली है कि 16 सितंबर को प्राथमिकी दर्ज होने के बाद क्या कार्रवाई हुई और पुलिस से किस स्तर पर चूक हुई है।
केस दो : बोकारो के हरला थाना क्षेत्र के सेक्टर आठ में रहने वाली एक युवती गत माह पांच दिनों तक थाने का चक्कर काटती रही, लेकिन उसकी प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई। बोकारो महिला थाने में उसके साथ गलत व्यवहार किया गया। उससे दुष्कर्म के सबूत मांगे गए। करीब पांच दिनों तक दौड़ने के बाद महिला समाजसेवी की मदद से सूचना एसपी तक पहुंची, तब जाकर उसकी प्राथमिकी ली गई और मेडिकल जांच कराई गई। पीड़िता का आरोप था कि चार युवकों ने उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म की वारदात को अंजाम दिया। जांच में जो भी बातें सामने आए, लेकिन प्राथमिकी दर्ज ही नहीं होगी तो आखिरकार जांच कैसे होगा। पुलिस की इस कार्यशैली ने संवेदनशीलता की पोल खोलकर रख दी है। अब बोकारो पुलिस मामले की छानबीन कर रही है।