Migrant Workers Backbone: प्रवासियों की वापसी से अर्थव्यवस्था को दोहरा झटका, झारखंड में हर माह आते थे 300 करोड़
Migrant Workers Back to Home प्रवासी कामगार परिवार का ही नहीं अपने राज्य का भी सहारा हैं। इन श्रमिकों के जरिये ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सालाना करीब 3000 करोड़ रुपये आता है।
दृष्टांत : 1 : धनबाद के पूर्वी टुुंडी की दुम्मा पंचायत की जोबा मुर्मू, गोरा मुनि, और रीना कुमारी तमिलनाडु की कपड़ा फैक्ट्री में काम करती थी। ये प्रति माह 6000 रुपये भेजा करती थीं। अब घर आ चुकी हैं। वापसी का कोई विचार नहीं हैं। जाहिर है इनकी वापसी के साथ ही परिवार को मिलने वाला आर्थिक स्रोत भी खत्म हो गया है।
दृष्टांत : 2 : हजारीबाग के केरेडारी प्रखंड के जोको गांव के राजेंद्र राणा पिछले सात माह से बेंगलुरु में राजमिस्त्री का काम करते थे। वहां प्रतिदिन 800-900 रुपये की कमाई हो जाती थी। अपना खर्च निकालकर 5000 रुपये घर भी भेज देते थे। वापस लौट आए हैं। खुद का जमा खर्च हो चुका है, अब तो पिता पर आश्रित हैं।
दृष्टांत : 3 : चाईबासा के मझगांव प्रखंड के खड़पोस गांव निवासी मो. नईम महाराष्ट्र के पुणे में वेल्डिंग का काम किया करते थे। लॉकडाउन हुआ तो काम भी बंद हो गया, वापस लौट आए हैं। भविष्य क्या होगा पता नहीं। नईम प्रत्येक माह 8 से 10 हजार रुपये अपना परिवार चलाने के लिए भेजते थे। वहां उनको 15 से 16 हजार रुपया मिलता था।
रांची, [आनंद मिश्र] । उक्त दृष्टांत सिर्फ कोरोना संक्रमण से उपजी बेरोजगारी को ही बयां नहीं कर रहे हैं, यह भी बता रहें हैं कि प्रवासी कामगारों की वापसी ने झारखंड की अर्थव्यवस्था को भी बड़ा झटका दिया है। कोरोना का साइड इफेक्ट उसके संक्रमण से होने वाले खतरे से कहीं अधिक घातक है। प्रवासी श्रमिक सिर्फ अपने परिवार का ही सहारा नहीं थे, हमारे राज्य का भी सहारा थे।
राज्य की अर्थव्यवस्था में इनके योगदान को भले ही प्रत्यक्ष तौर पर न स्वीकार किया गया हो लेकिन ये जो छोटी-छोटी रकम बचाकर अपने परिवार को भेजते थे उसके बूते राज्य की अर्थव्यवस्था भी सांसें ले रही थी। मुश्किल घड़ी में इनकी वापसी के साथ ही इनके माध्यम से आने वाली राशि भी आनी बंद हो गई है। अर्थव्यवस्था पर दोहरी चोट यह भी पड़ी है कि कल तक जो संपत्ति सृजन का माध्यम थे वे अब बोझ बन गए हैं। एसेट अब लायबिल्टी में तब्दील हो गई है।
व्यवहारिकता की कसौटी पर प्रवासी कामगारों के माध्यम से आने वाली राशि को तौलें तो चौकाने वाले आंकड़े समाने आते हैं। प्रवासी श्रमिकों के माध्यम से प्रति माह 250-300 करोड़ की राशि झारखंड आती थी। ये आंकड़े आधारहीन नहीं है। राज्य के करीब नौ लाख कामगार विभिन्न राज्यों में रोजी-रोजगार के सिलसिले से गए थे। लॉक डाउन की अवधि में साढ़े छह लाख ने वापसी के लिए अपना रजिस्ट्रेशन कराया है। करीब 3.5 लाख वापस भी आ चुके हैं।
यदि यह मान लें कि इनमें से पांच लाख श्रमिक प्रतिमाह सिर्फ पांच हजार रुपये ही अपने परिवार को भेजते थे तो यह आंकड़ा 250-300 करोड़ रुपये प्रति माह के करीब होता है। यानि सालाना करीब 3000 करोड़। हालांकि इस आय की गणना वार्षिक आधार पर करना थोड़ा मुश्किल भरा हो सकता है क्योंकि बाहर जाने वाले श्रमिकों में बड़ी संख्या उनकी भी है जो कुछ ही माह के लिए बाहर जाते हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हरिश्वर दयाल कहते हैं कि जो मजदूर कुछ मियाद के लिए भी बाहर जाते हैं, वे भी तीस हजार रुपये के करीब जुटा कर ही लौटते हैं।
भारतीय अनुसंधान केंद्र, प्लांडू के प्रमुख रह चुके डॉ. एस कुमार वर्तमान समय में श्रमिकों की वापसी को गंभीर बताते हैं। वे कहते हैं कि खरीफ फसलों के काटने तक यानि नवंबर तक किसान नगदी के संकट से जूझता रहता है। आम तौर पर प्रवासी मजदूर अपने परिवार को नगद मुहैया कराए करते थे, इनकी कमाई पिछले दो माह से बंद है। ये वापस लौट रहे हैं। जाहिर है ग्रामीण क्षेत्रों में नगदी का संकट गहराएगा। इसकी अवधि कितनी हो सकती है, यह कहना मुश्किल है। जाहिर है कोरोना से जल्द न जीते तो बेकारी, बदहाली और भूख से मरते झारखंड से हम सब रूबरू होंगे...। पहले से ही राज्य के हालात खराब हैं, स्थिति और विकट होने जा रही है..! गांव से लेकर शहर तक हाहाकार मचने जा रहा है।
प्रवासी श्रमिकों की वापसी का झारखंड की अर्थव्यवस्था पर निगेटिव इंपैक्ट पड़ेगा। बाहर से श्रमिक की वापसी के साथ ही उनके माध्यम से आने वाला पैसा भी रुक जाएगा। इसका अर्थव्यवस्था पर गुणात्मक प्रभाव पड़ेगा। लोगों के पास पैसा नहीं होगा तो बाजार में मांग घटेगी इससे उत्पादन प्रभावित होगा। उत्पादन घटेगा तो बेरोजगारी भी बढ़ेगी। प्रो. आरपीपी सिंह, पूर्व कुलपति, कोल्हान विश्वविद्यालय।
प्रवासी श्रमिकों के माध्यम से आने वाली राशि को प्रत्यक्ष तौर पर जीडीपी में शामिल नहीं किया जाता है। लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर जब वो पैसा आता है तो डिमांड क्रियेट करता है तो वह राज्य की इकोनॉमी का हिस्सा हो जाता है। प्रवासी श्रमिकों की वापसी और उनके माध्यम से आने वाली राशि के प्रवाह के रुकने से मांग प्रभावित होगी। खाने व रोजगार की व्यवस्था तो एक हद तक की जा सकती है लेकिन बाजार को प्रवासी श्रमिकों के माध्यम से जो अतिरिक्त खुराक मांग के रूप में मिलती थी वह बंद हो जाएगी। हरिश्वर दयाल, आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ।