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भूमि में जैविक तत्वों की रक्षा से बढे़गी उपज

रांची मिंट्टी के क्षरण से इसकी उर्वरता में कमी जल संतुलन में बदलाव तथा पानी की गुणवत्ता में गिरवट को दूर करने के लिए खेतों ें कंपोस्ट का प्रयोग जरूरी है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 26 Feb 2020 01:45 AM (IST)Updated: Wed, 26 Feb 2020 01:45 AM (IST)
भूमि में जैविक तत्वों की रक्षा से बढे़गी उपज
भूमि में जैविक तत्वों की रक्षा से बढे़गी उपज

रांची : मिंट्टी के क्षरण से इसकी उर्वरता में कमी, जल संतुलन में बदलाव तथा पानी की गुणवत्ता में गिरावट देखने को मिल रही है। क्षरण से मिंट्टी की संरचना में बदलाव, वातावरण में बदलाव, मृदा में कार्बनिक पदाथरें की गुणवत्ता और मात्रा में कमी तथा फसल विकास भी बाधित हो रहा है। भूमि में पोषक तत्वों की कमी होने लगी है। मिट्टी में बायोमास कार्बन और मिट्टी जैव विविधता को बचाना जरूरी है, तभी उपज बढ़ेगी। झारखंड की भूमि मिट्टी के क्षरण समस्या से ग्रसित है और इसका निदान सतत टिकाऊ कृषि प्रणाली में खोजा जा सकता है। यह बातें बीएयू में आयोजित व्याख्यान में विश्व भारती श्री निकेतन के शिक्षक (शस्य विज्ञान) डॉ.डीसी घोष ने कही। वह बेहतर 'आजीविका और आर्थिक स्थिरता के लिए एकीकृत खेती प्रणाली' विषय पर व्याख्यान दे रहे थे। आयोजन कृषि विभाग के अनुवाशिकी एवं पौधा प्रजनन विभाग के डॉ.आरबी प्रसाद मेमोरियल हॉल में किया गया।

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डॉ. घोष ने कहा कि सस्टेनेबल (सतत) कृषि में पर्यावरण को बनाए रखने और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करते हुए मानव की जरूरतों के अनुसार लक्ष्य पूरा किया जाता है। उन्होंने पोषक प्रबंधन, कटाव प्रबंधन, अवशेष प्रबंधन. फसल प्रबंधन, जल प्रबंधन एवं एकीकृत कीट प्रबंधन आदि के बारे में भी बताता। कहा कि कृषि के विभिन्न पहलुओं को एक साथ मिलाकर खेती करना ही एकीकृत खेती है। इस प्रणाली का उद्देश्य प्रदूषण और उत्पादन लागत को कम करने और कृषि अर्थशास्त्र को सुधारना है। इस प्रणाली से समाज की मागों को पूरा, मानव स्वास्थ्य और पशु कल्याण को बनाए रखना में मदद मिलती है।

एकीकृत कृषि प्रणाली

डीन एग्रीकल्चर डॉ.एमएस यादव एवं शस्य विभाग के अध्यक्ष डॉ.राघव ठाकुर ने झारखंड कृषि के लिए अनुकूल एक हेक्टेयर भूमि में एकीकृत कृषि प्रणाली की तकनीकों के बारे में बताया। डॉ.एमएस मल्लिक ने राज्य में भूमिहीन किसानों के लिए उपयुक्त एकीकृत कृषि प्रणाली तकनीक को बढ़ावा देने के बारे में बताया। इसमें डॉ.सुशील प्रसाद, डॉ.जे उरांव, डॉ.जेडए हैदर, डॉ.आरआर उपासनी, डॉ.राकेश कुमार, डॉ.आलोक कुमार पाडेय सहित पीजी एवं पीएचडी के विद्यार्थी भी मौजूद थे।


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