ऐसी लागी लगन, बाबू हो गए मगन... रुठे रुठे से हैं ये फूफा टाइप रिश्तेदार; पढ़ें सियासत की खरी-खरी
कुतुबमीनार से कूदने के बयान से लेकर झाड़ू मारने तक उनका यह सफर काफी चर्चा में हैं। लोगों ने उनका नाम पलटूराम रख दिया है। वैसे झारखंड की राजनीति में हर चौथा चेहरा पलटूराम ही है।
रांची, [जागरण स्पेशल]। वर्ष 2020 की शुरुआत में ही झारखंड की राजनीति में बड़ा उलटफेर हो गया। भाजपा में जाने के नाम पर कभी कुतुबमीनार से कूदने की बात करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा समेत बीजेपी के फोल्डर में लौट आए हैं। भाजपा में आने के बाद उनके सुर भी बदले हैं, अब वे बात-बात पर भाजपा के लिए झाड़ू लगाने तक की बात कर रहे हैं। इन दिनों हर तरफ उनके इस सियासी पालाबदल की चर्चा है। सोमवार को औपचारिक तौर पर भारतीय जनता पार्टी उन्हें विधायक दल का नेता चुनने जा रही है। ऐसे में सत्ताधारी दल के मुखर विरोध के लिए नेता प्रतिपक्ष के तौर पर उनकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है। झारखंड के सियासी गलियारे में चल रही चर्चाओं पर पढ़ें राज्य ब्यूरो के प्रधान संवाददाता आनंद मिश्र की खरी-खरी...
नेताजी की नाराजगी
शादी-ब्याह या किसी भी पारिवारिक समारोह में फूफा टाइप रिश्तेदार नाराज न हों, ऐसा हो ही नहीं सकता। राजनीति में भी नाराजगी पालने वालों की अपनी बिरादरी है। वैसे तो नाराजगी इनके चेहरे से हमेशा ही नुमाया होती है लेकिन यह तब अधिक बढ़ जाती है जब कोई बड़ा कार्यक्रम हो। वजह कोई भी हो। बाबूलाल मरांडी के कंघी छोड़कर कमल थामने के विशेष समारोह में भी यह नजारा नजर आया। वरिष्ठ विधायक मंच छोड़कर दर्शक दीर्घा में आ जमे और यहां भी पत्रकारों के लिए बनी विशेष दीर्घा में देखे गए ताकि न चाहते हुए भी मीडिया की नजर पड़े जरूर। चर्चा है कि बाबूलाल की इंट्री इन्हें कुछ खास रास नहीं आई है। नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में थे, अब गई कुर्सी हाथ से। जनवरी में हुए विधानसभा के विशेष सत्र में इन्होंने राजनीति की तमाम कलाओं का प्रदर्शन कर इस पद के लिए अप्रत्यक्ष रूप से अपनी कड़ी दावेदारी प्रस्तुत की थी।
असली-नकली
कंघी टूट गई। एक हिस्सा कमल दल वाले बाबूलाल के रूप में ले गए तो बचा हुआ प्रदीप-बंधु के रूप में पंजा वालों के हिस्से आया। राजनीतिक प्रापर्टी का ऐसा नियमानुकूल बंटवारा झारखंड में पहले नहीं देख गया। लेकिन जैसा कि होता है, प्रापर्टी के बंटवारे में विवाद होता ही है। यहां विवाद असली-नकली को लेकर शुरू हो गया है। पंजा वालों का दावा है कि कंघी का असली हिस्सा उनके पास है। बाबूलाल की कंघी नकली है। उसे खारिज किया जाए। बयानों के तीर भी चल रहे हैं। चर्चा है कि राजनीतिक विद्वेष बना रहे इसलिए इन चर्चाओं को तूल दिया जा रहा है। परस्पर धुर विरोधियों के खेमे में सेट होना है तो ऐसा माहौल तो बनाना ही होगा। बाकी जानने वाले जानते हैं कि यह मैच तो फिक्स था। जब कंघी ही टूट गई तो असली-नकली के दावों में दम ही कहां रहा।
झारखंडी पलटूराम
केजरीवाल का जादू झारखंड में भी सिर चढ़ बोल रहा है। सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, सभी दिल्ली के इस जादूगर से कुछ न कुछ सीख रहे हैं। सरकार को दिल्ली वालों की नीतियां कुछ इस कदर भायी हैं कि उन्होंने उनकी योजनाओं की फोटो कापी शुरू कर दी है। कितनी योजनाएं कापी हुईं यह बजट दस्तावेज में जल्द ही दिख जाएगा। वहीं, कमल दल के नए लाल को दिल्ली वालों की झाड़ू भा गई गई। गाहे-बगाहे झाड़ू उठाने की बात करने लगते हैं। कल तक भाजपा के धुर विरोधी रहे, का यह जुमला आम हो चुका है कि पार्टी यदि उन्हें झाड़ू लगाने का काम भी देगी तो खुशी-खुशी करेंगे। कुतुबमीनार से कूदने के बयान से लेकर झाड़ू मारने तक का उनका यह सफर काफी चर्चा में हैं। कुछ लोगों ने उनका नाम पलटूराम रख दिया है। इन्हें कौन बताए कि झारखंड की राजनीति में हर चौथा चेहरा पलटूराम ही है।
स्टाइल में रहने का
झारखंड सरकार में वैसे तो हर माननीय का अंदाज जुदा है। लेकिन राज्य में लालटेन की लौ को जलाए रखने वाले इकलौते माननीय की बात ही कुछ और है। उनका रजनी स्टाइल खासा चर्चा में हैं। चश्मा लगाने और उतारने की स्टाइल पर हर कोई फिदा है। कुछ हो जाए चश्मा जुदा नहीं होता। इधर, मीडिया का कैमरा दिखा नहीं कि झट से आंखों पर काला चश्मा नजर आने लगता है। स्टाइल पूरा फिल्मी है। वैसे झारखंड में फिल्मों से प्रभावित होने वाले माननीय की कमी नहीं रही है। कभी तमाड़ से चुनाव जीत मंत्री बने लंबी जुल्फो वाले राजा बाबू डैनी साहब के फैन थे। पूरा कापी करते थे। सिल्ली से एक कद्दावर को हराकर सदन की दहलीज पहुंचने वाले पूर्व विधायक का भी भोकाल कम नहीं। चतरा वाले रजनी फैन क्लब के मेंबर हैं। इन्हें देख लोग अक्सर गुनगुनाने लगते हैं 'तेनु काला चश्मा जचदा ऐ....। अब मुखड़ा गोरा हो चाहे न हो।