मैथ समझने का यह है सबसे मजेदार तरीका, अपने बच्चे को ऐसे पढ़ाएं
जिस बीआइटी मेसरा से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पढ़ाई की और जिसके द्वारा संचालित किसलय विद्या मंदिर में पाणिनी शिक्षण पद्धति से नौनिहालों को शिक्षा दी जा रही है।
रांची, राज्य ब्यूरो। जिस बीआइटी मेसरा से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पढ़ाई की और जिसके द्वारा संचालित किसलय विद्या मंदिर में पाणिनी शिक्षण पद्धति से नौनिहालों को शिक्षा दी जा रही है, वहां से निकल रही शिक्षा की रोशनी को स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के पदाधिकारियों ने भी देखा। विभाग के प्रधान सचिव अमरेंद्र प्रताप सिंह तथा झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद के राज्य परियोजना निदेशक उमाशंकर सिंह शुक्रवार को स्वयं वहां की शिक्षण पद्धति को जानने-समझने पहुंचे।
दोनों अधिकारियों ने न केवल इस शिक्षण पद्धति की बारीकियों को समझा, बल्कि वहां सरकारी शिक्षकों को दिए जा रहे प्रशिक्षण की भी जानकारी ली। शिक्षकों से संवाद भी किया। संवाद के बाद उन्होंने रांची शहरी क्षेत्र के दस अन्य स्कूलों में इस शिक्षण पद्धति को लागू करने की बात कही। राज्य सरकार के सहयोग से अभी इसे रांची के ही नवागढ़ पंचायत के दस स्कूलों में लागू किया जा रहा है।
प्रधान सचिव और निदेशक स्कूल पहुंचने पर सबसे पहले स्कूल के चारों तरफ बनी कक्षाओं के बाहर की दीवारों पर बनी पेंटिंग का जायजा लेते हैं। विद्यालय की प्राचार्य रमा पोपली उन्हें बताती हैं कि दीवारों की ये महज पेंटिंग नहीं है, बल्कि ये बच्चों को खेल-खेल में सीखने के साधन भी हैं। बच्चे खुशी-खुशी सीखते हैं, जिससे उनमें पढ़ाई का बोझ महसूस नहीं होता। बच्चे इस खास तरह की पद्धति से पढ़ाई में खूब रुचि लेते हैं और भाषा के साथ-साथ गणित और विज्ञान की पढ़ाई भी इसी तर्ज पर करते हैं। यह विधि बच्चों की सृजनात्मक क्षमता को भी बढ़ाने में मदद करती है।
प्राचार्या बताती हैं, शिक्षण की इस वैदिक पद्धति से बच्चों को पढ़ाई में रुचि, समझ और एकाग्रता बढ़ी है। आमतौर पर छोटी उम्र के बच्चे तीन मिनट के बाद ऊबने लगते हैं, लेकिन यहां 15 मिनट तक एक ही पाठ आराम से पढऩे के बाद भी बच्चे का मन नहीं उचटता। चूंकि राज्य परियोजना निदेशक पहले भी इस स्कूल का भ्रमण कर चुके हैं, इसलिए वे भी बीच-बीच में प्रधान सचिव को इस शिक्षण पद्धति की बारीकियों से अवगत कराते हैं। प्रधान सचिव भी अलग-अलग पद्धतियों को समझने के बाद उनकी सराहना करते हैं। कहते हैं, निश्चित रूप से इससे बच्चों में पढ़ाई का बोझ महसूस नहीं होता होगा। वे राज्य परियोजना निदेशक से शिक्षक प्रशिक्षण (डीएलएड) के करिकुलम में शामिल करने की संभावनाओं पर भी चर्चा करते हैं।
हैं शिक्षक, बन गए हैं डॉक्टर भी
अब समय था प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे नवागढ़ पंचायत के सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के साथ संवाद का। प्राइमरी स्कूल, रंगामाटी की शिक्षिका अंजना खलखो इस प्रशिक्षण से काफी खुश हैं। बताती हैं, वह पेशे से तो शिक्षक हैं, लेकिन इस प्रशिक्षण ने उन्हें डॉक्टर भी बना दिया। दरअसल, ठीक से उच्चारण नहीं कर पानेवाले बच्चों को भी इस पद्धति से सही उच्चारण करने की प्रैक्टिस कराई जाती है। जैसे कोई बच्चा 'क' को 'त' बोलता है, तो उसका जीभ चम्मच से दबाकर 'क' बोलने का अभ्यास कराया जाता है। इससे उसका उच्चारण ठीक हो जाता है।
बच्चों में आएगी लीडर की भावना
प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे शिक्षक जनार्दन पासवान कहते हैं इस शिक्षण पद्धति का सबसे अधिक लाभ कमजोर बच्चों को मिलेगा। इससे बच्चों में लीडरशिप की भावना भी आएगी। वहीं, शिक्षक शंकर भोक्ता बेहिचक कहते हैं कि बच्चों को अपनी कक्षा के अनुरूप क्षमता विकसित नहीं हो पाती है, तो इसके लिए शिक्षक भी दोषी हैं। इस शिक्षण पद्धति से शिक्षकों को भी पढ़ाने में आनंद आएगा।
पैसे की नहीं होने दी जाएगी कमी : प्रधान सचिव
प्रधान सचिव शिक्षकों से इस शिक्षण पद्धति को अपने स्कूलों में पूरी तरह लागू करने का निर्देश देते हैं। कहते हैं, शीघ्र होने वाले नेशनल अचीवमेंट सर्वे (नैक) के परिणाम से यह पता चलेगा कि आपने क्या सीखा और कितना स्कूलों में अनुपालन कराया। वे इस शिक्षण पद्धति को लागू करने के लिए पैसे की कमी नहीं होने देने की भी बात शिक्षकों से कहते हैं।
चुनौती के रूप में लें शिक्षक : निदेशक
राज्य परियोजना निदेशक शिक्षकों से इस प्रशिक्षण को चुनौती के रूप में लेने का आह्वान करते हैं। कहते हैं, इसे लागू करने पर दो-तीन महीने में परिणाम दिखना चाहिए। नैक में भी सौ प्रतिशत परिणाम आना चाहिए।
ये भी रहे उपस्थित
इस मौके पर बीआइटी मेसरा की डीन (एकेडमिक प्रोग्राम) सह किसलय विद्या मंदिर की कमेटी की सदस्य डॉ. पी पद्मनाभन, डीन (स्टूडेंट वेलफेयर) डॉ. आनंद कुमार सिन्हा, झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद के क्वालिटी एजुकेशन प्रभारी डॉ. अभिनव तथा बीआइटी के ओपी भागेरिया आदि भी उपस्थित थे।