पिता के दिखाए रास्तों से मंजिल पर पहुंच रहीं बेटियां
विवेक आर्यन, रांची : आज कोई भी इंसान यदि सफल है तो उसकी सफलता में सबसे बड़ा योगदान उसके माता-पिता
विवेक आर्यन, रांची :
आज कोई भी इंसान यदि सफल है तो उसकी सफलता में सबसे बड़ा योगदान उसके माता-पिता का होता। पिता की मेहनत, उसका बलिदान संतान की ऊंचाई में नजर आता है। बात जब बेटियों के सपनों को पूरा करने की आती है तो पिता मित्र की भूमिका में भी होते हैं। खेलगांव परिसर में सीबीएसई राष्ट्रीय तैराकी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया है। यहां ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे जो आने वाले युवाओं के लिए प्रेरणा का काम करेंगे।
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दीवाली में स्वदेश नहीं लौटे क्योंकि बेटी को प्रतियोगिता में लाना था
कतर से आए भारतीय मूल के धवल भागवत अपनी बेटी खुशी भागवत के साथ तीन दिनों से रांची में हैं। वे 26 नवंबर को वापस जाएंगे। इस एक हफ्ते भर की छुट्टी उनके लिए इतना अहम है कि इसके लिए उन्होने दिवाली की छुट्टी में स्वदेश ना लौटने की शर्त मंजूर कर ली। धवल गुजरात से हैं और हर साल दिवाली में अपने शहर जरूर जाते हैं। चौदह वर्षीय बेटी खुशी कतर के ही अलखोर इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ती हैं और सात सालों से तैराकी कर रही हैं। वे कहती हैं कि उनके पिता उन्हें तैराकी में बहुत सपोर्ट करते हैं। कतर में खुशी को स्कूल ले जाने, वहां से लाने और तैराकी में मदद उनके पिता करते हैं। जब तक खुशी तैराकी सीखती हैं, उनके पिता उनके साथ ही रहते हैं।
खुद नहीं बन सकें खिलाड़ी, बेटी को बनाना है -
धवल भागवत खुद भी खेल के शौकीन रहे हैं। वे एक सफल फुटबॉलर बनना चाहते थे। लेकिन परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी की अपने सपने को सकार नहीं कर पाए, आज वो सपना अपनी बेटी को सफल बनाकर पूरा करना चाहते हैं। वे कहते हैं कि जिन परिस्थितियों के कारण वे आगे नहीं बढ़ पाए, उन्हें अपनी बेटी को दूर रखा है। पढ़ाई के साथ वे बेटी के स्पोर्ट्स की ओर भी बराबर ध्यान देते हैं।
------------------------ ऑफिस के ब्रेक में बेटी को स्वीमिंग क्लास छोड़ने जाते हैं मजहर
मूल रूप से हैदराबाद के रहने वाले मो. मजहर अपने परिवार के साथ 20 साल से ओमान में हैं। तैराकी प्रतियोगिता में 14 वर्षीय बेटी जाहिदा मरियम (माही) की हौसला अफजाई के लिए वे रांची आए हैं। मजहर ओमान में सेल्समैन हैं और अकसर अपने काम में व्यस्त रहते हैं। लेकिन अपने जीवन की व्यस्तता का प्रभाव उन्होने कभी अपनी बेटी के करियर और शौक पर नहीं पड़ने दिया। बेटी माही ओमान के इंडियन स्कूल सीब में कक्षा नौ की छात्रा हैं और सात सालों से तैराकी कर रही है। माही को स्वीमिंग क्लास तक छोड़ने के लिए वे ऑफिस के ब्रेक का सदुपयोग करते हैं। एक घंटे के ब्रेक में वे बेटी को स्वीमिंग क्लास में छोड़ कर वापस अपना काम करते हैं। उनके आफिस से स्वीमिंग क्लास करीब 20 किलोमीटर दूर है।
शौक को करियर बनाने में पिता का योगदान -
महजर अपनी बेटी के जुनून के लिए संवेदनशील है और हर छोटी बड़ी जरूरतों का ख्याल रखते हैं। बेटी के शौक मात्र को आज राष्ट्रीय स्तर पर ले कर आने का श्रेय भी मजहर को ही जाता है। वे बताते हैं कि पहले घर के ही पास के होटल के स्वीमिंग पूल में माही तैरने जाते थी। वहां से उसे तैराकी में रूचि आई। पिता के ही कहने पर माही तैराकी में आगे बढ़ी। आज रांची के खेलगांव में माही के शामिल होने की सबसे ज्यादा खुशी उनके पिता को ही है।