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जानिए क्‍या है शाह ब्रदर्स मामला; 1300 करोड़ का जुर्माना कैसे हो गया 250 करोड़, कांग्रेस एसीबी के द्वार

शाह ब्रदर्स पर अवैध खनन का अारोप लगा है। इस मामले में कांग्रेस ने सरकार पर घपले-घोटाले का अारोप लगाया है। एसीबी से जांच की मांग की है।

By Alok ShahiEdited By: Published: Tue, 20 Nov 2018 03:09 PM (IST)Updated: Tue, 20 Nov 2018 03:09 PM (IST)
जानिए क्‍या है शाह ब्रदर्स मामला; 1300 करोड़ का जुर्माना कैसे हो गया 250 करोड़, कांग्रेस एसीबी के द्वार
जानिए क्‍या है शाह ब्रदर्स मामला; 1300 करोड़ का जुर्माना कैसे हो गया 250 करोड़, कांग्रेस एसीबी के द्वार

रांची, राज्‍य ब्‍यूरो। बहुचर्चित शाह ब्रदर्स मामले में भ्रष्‍टाचार के अरोपों की आंच महाधिवक्‍ता और सरकार से होते हुए अब सीधे मुख्‍यमंत्री रघुवर दास तक पहुंच गई है। कांग्रेस ने इस मामले में मुख्यमंत्री को लपेटते हुए सीएम रघुवर दास की भूमिका की जांच की मांग की है। मंगलवार को कांग्रेस प्रदेश अध्‍यक्ष डॉ अजय कुमार की अगुआई में भ्रष्‍टाचार निरोधक इकाई (एसीबी) में शिकायत दर्ज कराई गई है। प्रदेश अध्यक्ष डॉ अजय कुमार के नेतृत्व में एसीबी आॅफिस पहुंचे कार्यकर्ताओं ने सरकार पर इस मामले में घोटाले व अन्‍य गंभीर आरोप लगाए।

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डॉ अजय कुमार ने कहा कि इस मामले में सीएम की भूमिका की गहन जांच होनी चाहिए। साथ ही जिन अधिकारियों ने जान बूझकर खनन कंपनी शाह ब्रदर्स को लाभ पहुंचाया है उन पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। कांग्रेस का आरोप है कि शाह ब्रदर्स पर 1300 करोड़ का जुर्माना लगाया गया था, जिसे बाद में सरकार की ओर से ढाई सौ करोड़ कर दिया गया।

क्या है शाह ब्रदर्स का मामला : अवैध खनन करने पर मेसर्स शाह ब्रदर्स से वर्ष 2013 में लगभग 1243 करोड़ रुपये राशि की मांग की गई थी। यह राशि जस्टिस शाह कमीशन की रिपोर्ट के आधार न सिर्फ शाह ब्रदर्स बल्कि अन्य खनन पट्टाधारियों से भी मांग की गई थी। शाह ब्रदर्स एवं अन्य खनन पट्टाधारियों ने उक्त मांग के विरुद्ध रिवीजन अथॉरिटी (खनन न्यायधीकरण), नई दिल्ली में आवेदन दिया था। 2013 में ही अंतरिम आदेश के तहत संपूर्ण मांग पर पूर्ण स्थगन आदेश पारित कर दिया गया।

न्यायाधीकरण की ओर से खनन पट्टाधारियों के विरुद्ध उत्पीड़क कार्रवाई न करने व माइनिंग चालान आदि न रोकने के संबंध में आदेश पारित किया गया। खनन न्यायाधीकरण ने 2013 में ही अपने अंतिम आदेश में सरकार की मांग को खारिज कर दिया था एवं सरकार को पुनर्गणना करने का आदेश दिया था। 2014 में राज्य सरकार ने नया मांग पत्र जारी किया, लेकिन पुन: खनन न्यायाधीकरण ने उस पर स्थगन आदेश पारित किया और अपने अंतिम आदेश से पुन: मांग को खारिज कर दिया।

इस तरह सरकार द्वारा मांग पत्र जारी किए जाते थे और खनन न्यायाधीकरण के द्वारा उन माग पत्रों पर स्थगन आदेश अथवा निरस्त करने का आदेश पारित किया गया। ऐसा वर्ष 2017 तक चलता रहा। इस मामले में खनन विभाग के अधिकारी ही सरकार का प्रतिनिधित्व करते थे।

क्यों मचा है बवाल, कंपनी के खिलाफ बुलंद हो रहा स्वर : सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार संपूर्ण भुगतान 21 दिसंबर 2017 तक किया जाना था एवं खनन न्यायाधीकरण ने भी सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार मांग पत्र में सुधार कर संशोधित करने का आदेश पारित किया था। ओडिशा के बाद झारखंड ऐसा राज्य है जहा कामन कॉज के मामले के आदेश के आधार पर सितंबर 2017 में अवैध खनन के मामले में खनन पट्टाधारियों से संशोधित राशि की मांग की गई थी।

जनवरी-फरवरी 2018 में हिंडालको के मामले में हाई कोर्ट ने स्थगन आदेश पारित किया था। यद्यपि सरकार द्वारा दायर अपील के मामले में उक्त कंपनी के द्वारा 300 करोड़ की मांग के विरुद्ध 90 करोड़ का आंशिक भुगतान किया गया। शाह ब्रदर्स का मामला अन्य कंपनियों के मामले के बाद हाई कोर्ट में आया था। चूंकि पूर्व के मामलों में आंशिक भुगतान के आधार पर स्थगन आदेश पारित थे।

इस मामले में अपील की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट से शत-प्रतिशत भुगतान कराने का आग्रह किया गया था। साथ ही सरकार द्वारा दायर शपथ पत्र में स्पष्ट था कि शाह ब्रदर्स का मामला अन्य मामलों के सामान है। इसलिए जब शाह ब्रदर्स की ओर से शत-प्रतिशत भुगतान का प्रस्ताव दिया गया तो महाधिवक्ता अजीत कुमार ने अपने विवेक का प्रयोग करते हुए इस प्रस्ताव पर अपनी सहमति दी।

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