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रुनकी झुनकी बेटी मांगी ला... नहाय-खाय के साथ छठ पर्व शुरू, चहुंओर गूंजने लगे छठी मइया के गीत

रांची में छठ पर्व को लेकर तैयारियां चरम पर हैं। मेन रोड से लेकर अंदर तक के संपर्क पथ व्रतियों के लिए सज-धज रहे हैं। कई परिवार यहां बाहर से भी छठ करने पहुंचे हैं।

By Alok ShahiEdited By: Published: Sun, 11 Nov 2018 12:58 PM (IST)Updated: Sun, 11 Nov 2018 12:58 PM (IST)
रुनकी झुनकी बेटी मांगी ला... नहाय-खाय के साथ छठ पर्व शुरू, चहुंओर गूंजने लगे छठी मइया के गीत
रुनकी झुनकी बेटी मांगी ला... नहाय-खाय के साथ छठ पर्व शुरू, चहुंओर गूंजने लगे छठी मइया के गीत

रांची, जासं। लोक आस्‍था का महापर्व छठ रविवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया। पावनता-पवित्रता के चार दिनों के इस अनुष्‍ठान को लेकर राजधानी की गलियां गुलजार हैं। स्‍वच्‍छता के माहौल में पूरी रांची छठमय हो गई है। गली-कूचों में छठी मइया के गीतों से भक्ति की बयार बह रही है।

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मेन रोड से लेकर मोहल्‍लों के संपर्क पथ व्रतियाें के लिए सज-धज रहे हैं। कई जगहों पर स्‍वागत द्वार और तोरण भी लगाए गए हैं। भगवान भाष्‍कर को अर्घ्‍य दिए जाने वाले घाटों पर भी उत्‍सवी माहौल है। एक तरफ जहां युद्धस्‍तर पर छठ घाटों की सफाई करने में जुटा है, वहीं प्रशासन के स्‍तर पर भी यहां व्रतियों की सुविधा के लिए सभी जरूरी व्‍यवस्‍था की जा रही है।

उपासना का रंग गाढ़ा कर रहीं बदलाव की किरणें : लोक आस्था के महापर्व छठ का आस्था और परंपरा के साथ उल्लास, सामाजिकता और स्वास्थ्य व जल संरक्षण से भी गहरा नाता है। जीवन आरोग्य प्रदान करने वाले तथा साक्षात आंखों से नजर आने वाले भगवान सूर्य की उपासना की वैज्ञानिकता तो प्रमाणित है। नदी-तालाबों और जलाशयों में एक साथ मनाए जाने वाले इस पर्व में सामूहिकता की भी झलक मिलती है। यह भी बताने की जरूरत नहीं कि नियम और पवित्रता इस पर्व की मान्यताओं में सबसे ऊपर स्थान रखते हैं।

राजधानी रांची में छठ महापर्व मनाने का इतिहास पुराना है। शहर में समय के साथ साथ इस पर्व को मनाने वालों की संख्या भी बढ़ी और इसे मनाने के तरीकों में भी लगातार कुछ नयापन भी आता रहा। श्रद्धालुओं और छठ पूजा समितियों ने घाटों की साज-सज्जा से लेकर अन्य व्यवस्था से इस आयोजन को इतना भव्य बना दिया है कि इसकी छटा देखते ही बनती है।

छठ के एक दिन पहले से ही सजाए गए छठ घाट दूर से ही लोगों को लुभाने लगते हैं। रास्तों में भी की गई आकर्षक रंगीन झालरों व और विद्युत सज्जा व आकर्षक गेट इस आयोजन की भव्यता को बढ़ाते हैं। जगह-जगह छठ घाटों पर पंडालों में भगवान सूर्य की प्रतिमा स्थापित कर पूजा करने का भी चलन बढ़ा है। छठ घाटों पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी श्रद्धा और आनंद में कई गुणा वृद्धि करता है।



छठ मनाने वाले बढ़े तो शहर में सूर्य मंदिरों की भी बढ़ गई संख्या : सूर्य उपासना के पर्व छठ (सूर्यषष्ठी) का सूर्य मंदिरों से गहरा नाता रहा है। सूर्य मंदिरों के पास वाले जलाशयों में पूजा करने लोग दूर-दूर से आते हैं। भगवान सूर्य को जलाशय में अघ्र्य देने के बाद लोग सूर्य मंदिर में जाकर भी पूजा करते हैं। राजधानी के छठव्रतियों और धार्मिक लोगों ने भगवान सूर्य के समक्ष छठ का आयोजन करने की चाहत में लगातार कई छठ घाटों पर कई सूर्य मंदिर बना डाले।

पहले शहर के बड़ा तालाब समेत एक-दो स्थानों पर ही सूर्य मंदिर था लेकिन छठ पूजा के बढ़ते दायरे शहर के आधा दर्जन से अधिक छठ घाटों पर अब स्थायी मंदिरों में भगवान सूर्य विराजमान हैं। इतना ही नहीं हर एक-दो साल में किसी न किसी इलाके के छठ घाट पर नए सूर्य मंदिर का निर्माण हो जाता है। इस वर्ष जहां अरगोड़ा तालाब में नए सूर्य मंदिर का निर्माण हुआ है वहीं हाल के वर्षों में टाटीसिलवे स्वर्णरेखा घाट और तुपुदाना में चंद्रशेखर छठ घाट आदि स्थानों पर नया मंदिर बना है।



मॉल, अपार्टमेंट और शहरी कल्चर बढ़ा तो बन गए कई छोटे सीमेंटेड तालाब, छतों पर भी अघ्र्य का बढ़ा चलन : आम तौर पर गंवई संस्कृति के लिए जाने जानेवाले राजधानी रांची में मॉल-अपार्टमेंट और शहरी कल्चर बढ़ा तो घरों की छतों और आवासीय परिसरों में स्थायी और अस्थायी जलाशय, तालाब या हौज बनाकर उनमें पानी भरकर लोग पारिवारिक या सामाजिक स्तर पर भी छोटे-छोटे समूहों में छठ पूजा करने लगे।

कई मुहल्लों में कुछ लोगों ने बड़ा सीमेेंटेड तालाब भी बनवाया है जिसमें छठ के समय पानी भरवाकर पूजा की जाती है। अब बाजार में प्लास्टिक व रबर के बड़े हौजनुमा ट्यूब भी इस मकसद के लिए बेचे जा रहे हैं। राजधानी में हाल के दिनों में ऐसे लोगों की संख्या भी बढ़ी है जो घाट जाने की बजाय अपने घरों, अपार्टमेंट या मुहल्लों में इस तरह की पूजा कर रहे हैं।


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