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यहां आकर जानें ब्रह्मांड की उत्पत्ति का राज, सीएमपीडीआइ में समझिए बिग-बैंग थ्‍योरी

साल भर बाद स्थापना दिवस पर आम लोगों के लिए खुलेगा सीएमपीडीआइ का अर्थ साइंस म्यूजियम

By Edited By: Published: Sat, 10 Nov 2018 07:28 AM (IST)Updated: Sat, 10 Nov 2018 07:31 AM (IST)
यहां आकर जानें ब्रह्मांड की उत्पत्ति का राज, सीएमपीडीआइ में समझिए बिग-बैंग थ्‍योरी
यहां आकर जानें ब्रह्मांड की उत्पत्ति का राज, सीएमपीडीआइ में समझिए बिग-बैंग थ्‍योरी

रांची, विवेक आर्यन। ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक बिंदु से हुई है और वापस उसी बिंदु पर खत्म होना है। हम इसे बिग-बैंग थ्योरी के नाम से जानते हैं। यह प्रक्रिया बार-बार दोहराई जानी है। वेद और विज्ञान दोनों मानते हैं कि सूर्य की 14 कलाएं हैं यानी अवस्थाएं हैं।

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धरती पर जीवन ऐसी कई बातों पर निर्भर करता है। और इन सबके बीच धरती पर पहले अमीबा का आना, उनसे जलीय जीव और मानव का विकास आदि कई जानकारी को लेकर हमारे भीतर जिज्ञासा है। लेकिन इस वृहद आयाम को जानने और समझने का मौका बहुत कम बार मिलता है। कोल इंडिया की सहायक कंपनी सीएमपीडीआइ के म्यूजियम में ब्रह्मांड की उत्पत्ति और मानव के विकास से जुड़े सारे सवालों के जवाब मौजूद है।

कोल इंडिया के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य पर सीएमपीडीआइ का अर्थ साइंस म्यूजियम एक दिन आम लोगों के लिए खोला जाएगा। कांके रोड स्थित स्थित परिसर में सुबह 10 बजे से दोपहर 3 बजे तक कोई भी भ्रमण कर सकता है। लोगों को जानकारी देने के लिए मौके पर तीन गाइड उपस्थित होंगे जो विभिन्न मॉडलों की जानकारी देंगे।

कोल गैलरी बता रहा कोयले में जीवन की कहानी : सीएमपीडीआइ संग्रहालय दो मुख्य भागों में बंटा है। अर्थ साइंस के बाद दूसरा भाग है कोल गैलरी। यह कोयले के खनन की विधि, कोयले के प्रकार, और देश में कोयला खनन के अन्य पहलुओं को दर्शाता है। कोयले की मौजूदगी का पता चलने के बाद जिन उपकरणों से कोयले का सैंपल निकाला जाता है और जैसे माइनिंग की विधि निर्धारित होती है, इन सभी बातों की जानकारी यहां आसानी से मिल सकती है।

इसके साथ ही राज्य और देश के विभिन्न कोल-फील्ड में कोयला निकालने की प्रक्रिया के बारे में भी पूरी जानकारी प्रारूप के माध्यम से दी जाएगी। 65 लोगों की जान बचाने वाले महावीर कैप्सूल पर जमेगी निगाहें भूगर्भ संग्रहालय में मौजूद महावीर कैप्सूल भारत के सबसे बड़ी माइन रेस्क्यू की कहानी बताता है। 1989 में पश्चिम बंगाल के रानीगंज स्थित महावीर माइन में कार्यरत 221 लोगों में से 65 लोग बुरी तरह फंस गए थे। उन्हें निकालने के लिए छह फीट के लोहे से बने कैप्सूल का प्रयोग किया गया था।

24 इंच की बोरिंग कर बारी बारी से 65 लोगों को कैप्सूल के द्वारा निकाला गया था। वह कैप्सूल आज भी संग्रहालय में हैं जिसके भीतर जा कर खुद रेस्क्यू की स्थिति का एहसास किया जा सकता है। कैप्सूल के बगल में ही जेएस गिल की तस्वीर लगी है, जिन्होने लोगों की जान बचाने के लिए खुद माइन में जा उन्हें बाहर निकाला। वे स्वयं सबसे अंत में माइन से बाहर आए थे।

माइनिंग के वर्किंग मॉडल होंगे आकर्षण के केंद्र : माइनिंग की विधि का वर्णन करते हुए वर्किंग मॉडल लोगों के आकर्षण का केंद्र बनेंगे। संग्रहालय में कुल चार वर्किंग मॉडल हैं। दो वर्किंग मॉडल कोल बेथ मीथेन के मॉडल हैं और दो ओपन कास्ट माइनिंग के। इन मॉडल में खास बात है कि ये स्वचालित हैं। सही दूरी, सही माप के साथ वास्तविक परिस्थिति को दर्शाते हैं।

इनमें आपको छोटे ट्रक भी चलते दिखेंगे और कोयले का खनन भी। ज्ञात हो कि ये सभी मॉडल योगेंद्र कुमार विश्वकर्मा ने स्वयं अपने हाथों से बनाए हैं। एक मॉडल को बनाने में उन्हें करीब डेढ़ साल का समय लगा है। इनके ये मॉडल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व कर चुका है। मॉडल की जानकारी देने के लिए योगेंद्र विश्वकर्मा खुद भी वहां मौजूद होंगे।


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