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जानें बकोरिया कांड का पूरा सच : 'वे कहते थे कि मरने वाले कमजोर हैं, क्या कर लेंगे पुलिस का'

एक वरीय पुलिस अधिकारी ने बकोरिया कांड के बारे में कहा कि वाहवाही बटोरने और मेडल लेने के लिए लाइन में खड़ा कर लोगों के सीने में गोलियां उतार दी गईं।

By Alok ShahiEdited By: Published: Tue, 23 Oct 2018 10:36 AM (IST)Updated: Tue, 23 Oct 2018 10:36 AM (IST)
जानें बकोरिया कांड का पूरा सच : 'वे कहते थे कि मरने वाले कमजोर हैं, क्या कर लेंगे पुलिस का'
जानें बकोरिया कांड का पूरा सच : 'वे कहते थे कि मरने वाले कमजोर हैं, क्या कर लेंगे पुलिस का'

रांची, प्रदीप सिंह। सत्ता का इतना बेजा इस्तेमाल मैंने बतौर पुलिस अफसर अपने करियर में कभी नहीं देखा। वह फर्जी मुठभेड़ थी। लाइन में खड़ा कर लोगों के सीने में गोलियां उतार दी गईं सिर्फ वाहवाही बटोरने और मेडल लेने के लिए। मैैंने डीजीपी से लेकर ऊपर बैठे लोगों तक को सच्चाई से अवगत कराया लेकिन सबने इसे अनसुना कर दिया। वे कहते थे कि मरने वाले कमजोर हैं, पुलिस का क्या कर लेंगे?

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बकोरिया कांड की सीबीआइ जांच के हाई कोर्ट के फरमान के बाद इस जांच से जुड़े रहे लगभग आधा दर्जन वरिष्ठ पुलिस अफसरों में एक की यह फौरी प्रतिक्रिया है। सामने आकर खुलकर नहीं बोलने के पीछे इनका तर्क है कि इससे जांच की प्रक्रिया प्रभावित होगी और विभागीय अनुशासन भी भंग होगा। आवश्यक हुआ तो वे सक्षम प्राधिकार को अपनी बातों से अवगत कराएंगे।

इस सीनियर पुलिस अधिकारी को इस बात का भरोसा है कि सीबीआइ अब निष्पक्ष जांच करेगी। उनके मुताबिक जांच की पूरी दिशा को गलत मोड़ देने की कोशिश की गई। जिस पुलिस अधिकारी ने सच कहना चाहा, उसे साइड कर दिया गया। इससे पुलिस की गलत छवि बनी। सबसे बड़ी बात यह है कि जांच में तमाम मानकों का उल्लंघन किया गया।

वे सवाल भी उठाते हैं-क्या जिसके खिलाफ आरोप है वह मामले की जांच करेगा? डीजीपी के खिलाफ एक पुलिस इंस्पेक्टर क्या जांच कर सकता है? अराजक तरीके से यह मानकर फाइल बंद कर दी गई कि मुठभेड़ सही था। जब पुलिस यह सोचने लगे कि हम कुछ भी कर सकते हैं, हमको कौन बोलने वाला है तो यह अराजकता की पराकाष्ठा है। 

मैं अड़ा रहा, झुका नहीं : बकोरिया कांड की जांच से संबद्ध रहे इस पुलिस अधिकारी को इस बात का संतोष है कि वे कभी झुके नहीं। हमेशा सच्चाई पर अड़े रहे। वही बातें लोगों को बताईं जो सही थीं। वे बताते हैं कि यह मुठभेड़ वीभत्स तरीके से किया गया अपराध था। पुलिस अधिकारी इस पूरे मामले में संवेदनहीन बने रहे। कानून इसकी इजाजत नहीं देता।

जिस मामले की निष्पक्ष जांच करानी चाहिए थी, उसकी जांच की जरूरत पर ही सवाल उठाए गए। अब सारी चीजें पब्लिक डोमेन में है। जांच न्यायपूर्ण होना चाहिए। अपराधियों को हर हाल में सजा मिलनी चाहिए और कानून का पालन कराने वालों को हमेशा इसका ध्यान रखना चाहिए कि वे कानून से ऊपर नहीं हैं। संविधान में सबको समानता का अधिकार है। 


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