झारखंड पुलिस को झटका, बकोरिया मुठभेड़ की होगी सीबीआइ जांच
सतबरवा के बकोरिया गांव में वर्ष 2015 में कथित पुलिस-नक्सली मुठभेड़ की जांच अब सीबीआइ करेगी।
राज्य ब्यूरो, रांची। पलामू जिले के सतबरवा के बकोरिया गांव में वर्ष 2015 में कथित पुलिस-नक्सली मुठभेड़ की जांच अब सीबीआइ करेगी। जस्टिस आर मुखोपाध्याय की अदालत ने सोमवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि इस मामले से जुड़े दस्तावेज देखने से प्रतीत हो रहा है कि जांच एजेंसी पर लोगों का विश्वास डगमगा रहा है। न्याय व्यवस्था पर लोगों की आस्था कायम रहे, इसलिए इस मामले की जांच सीबीआइ को सौंपी जा रही है।
वादी सहित पुलिस के अधिकारी हरीश पाठक ने भी पूरी जांच पर सवाल खड़े किए हैं। इससे प्रतीत हो रहा है कि इस मामले की जांच सही दिशा में नहीं हो रही थी, इसलिए सीबीआइ जांच जरूरी है। गौरतलब है कि आठ जून 2015 को बकोरिया में 12 लोग मारे गए थे। पुलिस का दावा था कि ये मुठभेड़ में मारे गए हैं जबकि लोगों ने मुठभेड़ को फर्जी बताया था।
मृतक के भाई ने दायर की याचिका
मुठभेड़ में मारे गए उदय यादव के रिश्तेदार जवाहर यादव ने हाई कोर्ट में क्रिमिनल याचिका दाखिल की थी। जिस पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने 22 मार्च 2018 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। ठीक छह माह बाद यानि 22 अक्टूबर को हाई कोर्ट ने बहुचर्चित बकोरिया कांड में अपना फैसला सुनाया है।
कोर्ट में वादी की दलील
वादी की ओर से वरीय अधिवक्ता आरएस मजूमदार ने कोर्ट को बताया था कि आठ जून 2015 को सतबरवा में पुलिस ने फर्जी नक्सली मुठभेड़ दिखा कर 12 निर्दोष लोगों की हत्या कर दी थी। जिसमें पांच नाबालिग हैं। सुनवाई के दौरान उनकी ओर से कुल 22 बिंदुओं को कोर्ट के समक्ष रखा।
घर से उठा ले गए
प्रार्थी जवाहर यादव ने क्रिमिनल रिट याचिका दाखिल की है। याचिका में कहा गया है कि मुठभेड़ से पहले की रात को पुलिस उनके रिश्तेदार उदय यादव को उसके घर से अपने साथ ले गई थी। बाद में उदय यादव का शव बरामद किया गया। जिसे पुलिस नक्सली मुठभेड़ बता रही है। इस मुठभेड़ में उदय यादव सहित 12 लोगों की हत्या की गई है।
पुलिस का दावा
पुलिस की मानें तो आठ जून 2015 की देर रात पुलिस सतबरवा के बकोरिया गांव के पास सर्च अभियान चला रही थी। इस दौरान पुलिस पर नक्सलियों ने गोलीबारी प्रारंभ कर दी थी। पुलिस की जवाबी कार्रवाई में 12 नक्सली मारे गये थे। पुलिस ने जानकारी दी थी कि करीब तीन घंटे तक मुठभेड़ चली और घटनास्थल से पुलिस ने एक वाहन, 8 रायफल, 250 कारतूस आदि जब्त किए थे।
मुठभेड़ पर 'सवाल'
1- घटनास्थल पर खून के निशान नहीं मिले थे।
2- घटनास्थल पर एक लाइन में मिले थे शव।
3- जांच में नहीं ली गई सीडीआर (काल डिटेल रिपोर्ट)
4- वाहन पर गोली के निशान, लेकिन उसमें नहीं मिले खून के धब्बे।
5- प्राथमिकी में दर्ज 117 कार्टेज को पुलिस ने नहीं किया सीज।
6- बरामद हथियार किसी काम के नहीं, सात जुलाई को दिखाया सीजर।
7- लोकल पुलिस को मामले की खबर नहीं।
8- कोर्ट के आदेश के बाद इंस्पेक्टर हरीश पाठक का बयान दर्ज।
9- जिसने भी सही जांच शुरू की, उनका हुआ तबादला।
10- बिना सील किए हथियार भेजे गए फॉरेंसिक जांच के लिए।
11- मारे गए लोगों में से 5 नाबालिग।
12- तत्कालीन एडीजी सीआइडी एमवी राव ने भी कहा, मामले को लटकाने के लिए डीजीपी ने दिया था दबाव।
जांच में तेजी लाने वाले अफसरों का होता रहा स्थानांतरण
पलामू के बकोरिया में 08 जून 2015 को कथित मुठभेड़ में जिन 12 लोगों को मारने का पुलिस ने दावा किया था, उसकी जांच धीमी गति से चलती रही। जिस किसी भी अफसर ने जांच में तेजी लाने या इस मुठभेड़ पर सवाल उठाने की कोशिश की, उसका स्थानांतरण कर दिया गया। केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से आने के बाद सीआइडी का एडीजी बनने पर एमवी राव ने भी उक्त कांड की तह खंगालने की कोशिश की तो उन्हें पदस्थापन के एक माह के भीतर ही स्थानांतरित कर दिया गया।
स्थानांतरित होने के बाद एमवी राव ने डीजीपी डीके पांडेय पर गंभीर आरोप लगाए था। उन्होंने पत्राचार कर आरोप लगाया था कि जब उन्होंने बकोरिया मामले की जांच तेज की तो डीजीपी डीके पांडेय ने उन्हें जांच की रफ्तार धीमी करने का दबाव बनाया, जिसे उन्होंने इन्कार कर दिया। इसके बाद ही उनका तबादला किया गया है।
इन अधिकारियों को जांच से हटाया गय
- रेजी डुंगडुंग, तत्कालीन एडीजी सीआइडी : आठ जून 2015 को पलामू के बकोरिया में कथित पुलिस मुठभेड़ मामले की जांच का जिम्मा अपराध अनुसंधान विभाग (सीआइडी) को दिया गया। तब सीआइडी के एडीजी रेजी डुंगडुंग थे। जांच में तेजी लाते ही उनका स्थानांतरण 15 जून 2015 को कर दिया गया था।
- सुमन गुप्ता : तत्कालीन आइजी रांची : घटना के वक्त आइजी रांची सुमन गुप्ता थीं। उन्होंने इस मुठभेड़ की सत्यता पर सवाल उठाया था और तत्कालीन पलामू के सदर थानेदार से पूछताछ भी की थी। तब उन्हें भी 15 जून 2015 को ही स्थानांतरित कर दिया गया था।
- हेमंत टोप्पो : तत्कालीन डीआइजी पलामू। घटना के बाद हेमंत टोप्पो ने जब इसकी सच्चाई पर सवाल उठाया तो उन्हें भी जांच से हटा दिया गया। उनका स्थानांतरण शंटिंग पोस्ट माना जाने वाला स्टेट क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एसआइआरबी) में 15 जून 2015 को कर दिया गया था। वे दो माह पूर्व ही सेवानिवृत्त हुए हैं।
- एमवी राव, पूर्व एडीजी सीआइडी : बकोरिया मुठभेड़ के बाद सीआइडी के एडीजी रेजी डुंगडुंग को स्थानांतरित कर अजय कुमार सिंह को सीआइडी का एडीजी बनाया गया था। तब तक बकोरिया मुठभेड़ मामले में जांच शिथिल रही। केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से आने के बाद एमवी राव को नवंबर 2017 में सीआइडी का एडीजी बनाया गया था। राव ने आते ही मामले की जांच में तेजी दिखाई, जिसके बाद एक महीने के भीतर ही यानी 13 दिसंबर 2017 को एडीजी सीआइडी के पद से हटा दिया गया और उनके स्थान पर प्रशांत सिंह को एडीजी सीआइडी बनाया गया। प्रशांत सिंह को भी एडीजी सीआइडी के पद से हटाकर अजय कुमार सिंह को फिर से सीआइडी के एडीजी का प्रभार दिया गया है।
- हरीश पाठक, तत्कालीन सदर थानेदार पलामू : बकोरिया कथित मुठभेड़ के वक्त पलामू के तत्कालीन सदर थानेदार हरीश पाठक थे। बकोरिया सदर थाना क्षेत्र स्थित सतबरवा ओपी में आता है। थानेदार ने मुठभेड़ को फर्जी बताया था। तब वे भी नप गए थे। उन्हें एक पुराने मामले में निलंबित कर दिया गया था।
कथित मुठभेड़ में मारे गए नाबालिग : चरकू तिर्की (12 वर्ष), महेंद्र सिंह (12 वर्ष), प्रकाश तिर्की (14 वर्ष), उमेश सिंह (10 वर्ष) व एक अन्य।