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लोकसभा अध्‍यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा- क्या केवल आरक्षण से देश का उद्धार संभव हो सकेगा

रांची में चल रहे लोकमंथन के मंच से लोकसभा अध्‍यक्ष सुमित्रा महाजन ने आरक्षण के गुण-दोष पर चर्चा करने की मांग की है।

By Alok ShahiEdited By: Published: Sun, 30 Sep 2018 06:43 PM (IST)Updated: Mon, 01 Oct 2018 08:30 AM (IST)
लोकसभा अध्‍यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा- क्या केवल आरक्षण से देश का उद्धार संभव हो सकेगा
लोकसभा अध्‍यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा- क्या केवल आरक्षण से देश का उद्धार संभव हो सकेगा

रांची, राज्‍य ब्‍यूरो। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने आरक्षण को लेकर समाज के समक्ष सवाल उठाए हैं। रविवार को यहां खेलगांव में प्रज्ञा प्रवाह के चार दिवसीय लोकमंथन कार्यक्रम का समापन करने आई लोकसभा अध्यक्ष ने यह भी स्पष्ट किया कि वह आरक्षण की विरोधी नहीं हैं लेकिन क्या केवल आरक्षण देने से देश का उद्धार संभव हो सकेगा।

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उनका मानना है कि सामाजिक संरचना की बात करें तो इस विषय पर आत्मचिंतन करें। जिसे आरक्षण मिला या जिसे नहीं मिला, हरेक व्यक्ति यह सोचे। हो सकता है कि मुझे आरक्षण मिला और मैं कुछ बन गया। लेकिन मैंने अपने समाज में उसे कितना बांटा। मैंने कितना क्षण इस आत्मचिंतन में बिताया। समाज का कितना साथ लिया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि मैं आरक्षण विरोधी नहीं हूं। पूर्व में उन्होंने इन बातों को मीडिया द्वारा तोड़-मरोड़कर पेश करने की बात भी बताई और पत्रकारों को नसीहत दी कि वे उनकी बात ध्यान से सुनें-समझें।

सामाजिक स्थिति पर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के पूर्व में दिए गए वक्तव्य का संदर्भ देते हुए उन्होंने आरक्षण पर बात की शुरूआत की। कहा, हमारी सामाजिक स्थिति मजबूत है। यह भी देखना होगा कि कहीं हमारा समाज पिछड़ तो नहीं रहा है। संविधान निर्माता बाबा साहब अंबेडकर आरक्षण केवल दस साल के लिए चाहते थे। उन्होंने सामाजिक संरक्षण की आवश्यकता महसूस की थी लेकिन सामूहिक चिंतन में हम कम पड़े।

पार्लियामेंट में बैठने वाले भी आए। हर दस साल पर दस साल के लिए आरक्षण की सीमा बढ़ा दी। एक बार बीस साल के लिए बढ़ा दी। क्या केवल आरक्षण से देश का उद्धार संभव हो सकेगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए भी समझाया कि अगर सामूहिक भोज में अलग-अलग कोना बना दें और तय कर दें कि यहां ब्राह्मïण बैठेगा, वहां क्षत्रिय और शूद्र बैठेंगे तो भोजन के दौरान सबके दिमाग में सिर्फ यही बात चलेगी और भोजन से ताकत नहीं मिल पाएगी। एक समाज की कल्पना एकरसता है।

केवल सरकार के भरोसे न रहें : लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि केवल सरकार के भरोसे न रहें। सरकार सबकी है, यह सोचना होगा। हम आंदोलन में सबसे पहला पत्थर सरकारी बस की कांच पर मारते हैं। स्ट्रीट लाइट तोड़ते हैं। यह सोचना होगा कि हम टैक्स देते हैं तो सरकार काम करती है। एक बार मतदान हो गया तो सरकार सबकी है। हमें जागरूक होना पड़ेगा। अपने इंग्लैंड दौरे का जिक्र करते हुए कहा कि वहां के म्यूजियम में हमारे रत्न रखे हैं। कोहिनूर भी है। इस अनुभव से दिल जलता है। कोहिनूर देख रही थी तो गार्ड ने टोका कि पीछे से आकर देखिए, दूर से ज्यादा चमकता है। मैंने कहा कि क्या आप जानते हैं, यह हमारा है। उसने कहा कि हां मैं जानता हूं, पर आप इसे रख नहीं सके।

 

नारियों की पूजा करते, सम्मान नहीं करते : लोकसभा अध्यक्ष ने कई मसलों को बड़े हीं सहज तरीके से छुआ और सामाजिक व्यवस्था की असलियत से भी वाकिफ कराया। कहा, हम कहते हैं कि जहां नारी है वहां देता है। नारियों की हम पूजा तो करते हैं लेकिन सम्मान नहीं करते। स्त्री जिंदगी रूपी रथ की सारथी है और पुरुष पराक्रम का प्रतीक। दोनों में समझ होगी तभी रथ चलेगा।

अगर एक घटक पीछे रहा तो समाज आगे नहीं जाएगा। युवाओं को भी उत्साहित किया। बोलीं, लोकमंथन विचारों का महाकुंभ है। युवा सबसे ज्यादा हैं। युवाओं को सोचना होगा कि मेरा देश क्या है? मेरे देश में धार्मिकता की कमी नहीं है लेकिन जाग्र्रत होना पड़ेगा। युवा देश को देखे और समझें। यह भी तय करें कि देश को लेकर उनकी क्या भूमिका होनी चाहिए।


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