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तन, मन, धन से अपनाएं स्वच्छता : वेंकैया नायडू

उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने देश के सभी नागरिकों को तन, मन और धन से स्वच्छता अभियान में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।

By Edited By: Published: Fri, 28 Sep 2018 08:11 AM (IST)Updated: Fri, 28 Sep 2018 10:41 AM (IST)
तन, मन, धन से अपनाएं स्वच्छता : वेंकैया नायडू
तन, मन, धन से अपनाएं स्वच्छता : वेंकैया नायडू

रांची, राज्य ब्यूरो। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने देश के सभी नागरिकों को तन, मन और धन से स्वच्छता को अपनाने की नसीहत दी है। रांची के नामकुम ब्लॉक में स्वच्छता ही सेवा समारोह में उन्होंने स्वच्छता को जन आंदोलन बनाकर इस उद्देश्य की पूर्ति में तन, मन और धन से जुट जाने की बात कही।

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उन्होंने अपनी बात को तार्किक ढंग से समझाते हुए कहा, तन स्वच्छ होगा तो बीमारी नहीं होगी, मन स्वच्छ होगा तो किसी के प्रति द्वेष नहीं होगा और धन स्वच्छ होगा तो रात में नींद अच्छी आएगी। ऐसा नहीं होने से हमेशा टेंशन रहेगी और काम में अटेंशन नहीं होगा। उन्होंने स्वच्छ भारत, स्वस्थ्य भारत और समर्थ भारत का आह्वान किया।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमने 2019 तक राष्ट्रपिता पूज्य बापू की 150 वीं जयंती तक स्वच्छ भारत के स्वप्न को साकार करने का संकल्प लिया है। यह एक कृतज्ञ राष्ट्र की अपने आदर्श पुरूष के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि भी है। आज हमने उसी गाधी दर्शन को अपने सामुदायिक सार्वजनिक जीवन में अंगीकार करने का संकल्प लिया है। इस जनआदोलन में समाज का हर वर्ग, हर छोटा, बड़ा नागरिक और बच्चे, स्त्री व पुरूष बढ़ चढ़ कर भाग ले रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा कि सामुदायिक स्वच्छता सिर्फ सरकारी प्रोग्राम से नहीं प्राप्त नहीं की जा सकती।

उन्होंने इस कार्य में झारखंड में विशेष तौर पर जुटी महिलाओं का अभिनंदन किया। कहा, उनका आचरण लोगों के लिए प्रेरणा बनेगा। उपराष्ट्रपति ने पिछले चार वर्षो में स्वच्छता के तहत किए गए प्रयासों को भी साझा किया। कहा, 2014 में जब यह अभियान प्रारंभ हुआ था देश के अधिकतर प्रातों में 30 प्रतिशत घरों में ही शौचालय थे। झारखंड जैसे प्रात में तो यह औसत 16 प्रतिशत था। गत चार वषरें में यह औसत बढ़कर 90 प्रतिशत से अधिक पहुंच गया है। झारखंड में यह वृद्धि दुगने से अधिक है।

गत चार वषरें में देश भर में घरों में लगभग 14 करोड़ शौचालय बनाए गए हैं। व‌र्ल्ड रिकार्ड है। ग्रामीण क्षेत्रों में 8 करोड़ घरेलू शौचालय बनवाए गए गए हैं। देश के 60 प्रतिशत गाव ओडीएफ घोषित कर दिए गए हैं। 4.5 लाख गाव और 500 जिले और 21 राज्य ओडीएफ घोषित हो चुके हैं। दो अक्टूबर को झारखंड भी ओडीएफ हो जाएगा।

आयुष्मान भारत गरीब परिवारों को आयुष्मान बनाने का कदम उपराष्ट्रपति ने 23 सितंबर को रांची में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा समर्पित आयुष्मान भारत योजना की भी चर्चा की। कहा, योजना के तहत 10 करोड़ परिवारों को पांच लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा दिया जाएगा। इससे गरीब और वंचित वर्ग को बड़ी राहत मिलेगी। कहा, एक अनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष पांच करोड़ लोग महंगे उपचार के चलते गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं। आयुष्मान भारत इन परिवारों को वस्तुत: आयुष्मान बनाने की दिशा में सफल कदम है। लेकिन रोग के उपचार से बढ़कर रोग का प्रतिकार, स्वास्थ्य की अधिक प्रभावी गारंटी है।

समझाया स्वच्छता का अर्थशास्त्र : उपराष्ट्रपति ने स्वच्छता का अर्थशास्त्र भी समझाया। कहा, यूनीसेफ के अध्ययन के अनुसार स्वच्छता और शुचिता से एक परिवार प्रतिवर्ष उपचार आदि पर होने वाले लाभों पर 50,000 रुपये के खर्च की बचत कर सकता है। भारत में ही प्रतिवर्ष एक लाख बच्चे अस्वच्छता के कारण डायरिया जैसी बीमारी के शिकार हो जाते है। यदि हम अस्वच्छता की सोशल कास्ट के बारे में बात करें तो विश्व बैंक के अध्ययन के अनुसार मलिनता के कारण प्रतिवर्ष 6 प्रतिशत की दर से हमारी विकास दर प्रभावित होती है।

ओडीएफ सर्वेक्षण बार-बार कराएं :  उपराष्ट्रपति ने कहा कि ऐसी शिकायतें मिली हैं कि शौचालय सिर्फ सरकारी कागजों पर ही है वास्तविकता में नहीं। इस संशय को दूर करने के लिए नवनिर्मित शौचालयों की जियो टैगिंग की जा रही है। इस योजना को लाभार्थी के (आधार नंबर) से जोड़ा जा रहा है। कहा, ओडीएफ घोषित करने से पूर्व किसी स्वतंत्र एजेंसी से भी निरीक्षण करवाना श्रेयस्कर होगा। आवश्यक हो तो ओडीएफ सर्वेक्षण बार-बार कराएं, जिससे सुनिश्चित हो सके कि जनता शौचालयों को नियमित व्यवहार में लाया रहा है।

कचरा प्रबंधन के निस्तारण पर दें ध्यान : उपराष्ट्रपति ने कहा कि ठोस और गीले कूड़े के प्रबंधन और निस्तारण पर और ध्यान देना होगा। शहरों में हम सिर्फ 68 प्रतिशत वार्डो में घर-घर जाकर कूड़ा एकत्र कर रहे हैं। एकत्रित कूड़े का सिर्फ 23 प्रतिशत ही प्रोसेस किया जाता है।

सिर पर मैला ढोने की परंपरा बंद होनी चाहिए: उपराष्ट्रपति ने कहा कि मनुष्य द्वारा मल उठाने की अमानवीय प्रथा तत्काल समाप्त होनी चाहिए। कानून होते हुए भी इस प्रथा का जारी रहना हमारे समाज की नैतिकता और कानून के प्रति शासन की प्रतिबद्धता पर प्रश्न खड़े करता है। नाली साफ करने वाले सफाई कर्मियों की मृत्यु, हमारे सभ्य होने पर संशय पैदा करती है। सरकार को इस दिशा में तत्काल अन्य वैज्ञानिक विकल्प खोजना चाहिए, स्थानीय निकाय भी वैकल्पिक वैज्ञानिक उपकरणों का प्रयोग करें। इसके लिए आवश्यक धनराशि उपलब्ध कराई जानी चाहिए। ऐसे सफाईकर्मियों और उसके परिवार को वैकल्पिक रोजगार और आर्थिक सहायता की व्यवस्था की जानी चाहिए।


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