आयुष्मान भारत के जरिए गरीबों को राहत की थैली पकड़ा गए नमो
आयुष्मान भारत के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गरीबों को राहत को थैली पकड़ा गए। तो पार्टी के लिए भी अगले चुनाव की खातिर नई ऊर्जा के लिए संजीवनी दे गए
आशीष झा, रांची
झारखंड की राजधानी रांची से आयुष्मान भारत योजना का शुभारंभ कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बड़ी आवादी को राहत दे गए। गरीबों को राहत की पोटली पकड़ा गए। संदेश भी दिया। सभा में झारखंड और सटे पड़ोसी राज्य बिहार, प. बंगाल, ओडिशा और छत्तीसगढ़ के भी कुछ लोग थे।
सभा में तो 70 फीसद महिलाएं थीं। जिसमें बड़ी संख्या आदिवासियों, गरीबों, घर चलाने वाली आधी आबादी की थी। देश की आधी आबादी की सेहत के इंतजाम का संदेश लोगों तक सीधा पहुंचा।
ऐसे ही लोग थे जो चुनाव के दौरान धूप, ठंड, पानी और भीड़ में कतार लगाकर बूथ पर डटे रहते हैं। आदिवासियों को लेकर अंतद्र्वद्व के बीच मुख्यमंत्री रघुवर दास को भी राहत दे गए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सात बार झारखंड आने का भी अपना मतलब है। यहां की जनता से अपने लगाव का संदेश। माना जा रहा है कि आयुष्मान के हवाले प्रधानमंत्री को पार्टी को अगले चुनाव के लिए नई संजीवनी दे दी है।
झारखंड और उपरोक्त पड़ोसी राज्यों की बड़ी आबादी गरीबी रेखा के नीचे बसर करती है। कभी इन्हीं इलाकों से गरीबी हटाओ के नारे में कांग्रेस ने लोगों के दिलों में जगह बनाई थी लेकिन अपने वादों को निभाने में असफल रही। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन से उन्हीं गरीबों के घरों तक पहुंच बनाने की कोशिश की है।
भीड़ का रिस्पांस देखें तो निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री सफल भी हुए हैं। कई प्रकार की गंभीर बीमारियों से जूझ रहे इस क्षेत्र के लाखों लोगों के नब्ज पर प्रधानमंत्री ने उस वक्त हाथ रख दी जब उन्होंने कहा कि अब बीमारी का इलाज कराने में कोई गरीब अपनी जमा-पूंजी नहीं गंवाएगा, खेत और गहने नहीं बिकेंगे।
ऐसे कार्यक्रमों के राजनीतिक मायने भले न दिखें, निहितार्थ अवश्य होते हैं और प्रधानमंत्री इसमें सफल भी हुए।
झारखंड में 57 लाख परिवार गरीबी रेखा के नीचे बसर करते हैं।
पश्चिम बंगाल में यह संख्या 1.1 करोड़ है, छत्तीसगढ़ में 56 लाख और बिहार तथा ओडिशा को जोड़ दें तो आंकड़ा 3.5 करोड़ बीपीएल परिवारों के इर्द-गिर्द पहुंचता है। बात गरीबों की इसलिए भी मायने रखती है कि इन्हीं के बीच से वह भीड़ निकलती है जो घंटों लाइन में लगकर मतदान करती है।
नेताओं के चुनने से लेकर देश के नेतृत्व देने तक में इनका योगदान है। झारखंड और आसपास के प्रदेश के लोग तमाम बड़ी बीमारियों से जूझ रहे हैं। मलेरिया, डायरिया जैसी बीमारियां जिनका इलाज संभव है भी इन इलाकों में दर्जनों मौतों का कारण बनती है। अन्य घातक बीमारियों की तो पूछिए ही मत।
यही वे इलाके हैं जहां अस्पताल का लाभ तो दूर की कौड़ी है, वहां पहुंचना भी परेशानी का सबब है। दर्जनों लोग इलाज के बगैर मरते हैं और सैकड़ों इलाज कराने में दरिद्र हो जाते हैं। गरीबों से पटे इन प्रदेशों में हजारों ऐसी कहानियां है जिनमें लोग इलाज कराने के क्रम में अपना सर्वस्व गंवा चुके हैं। जमीन, गहने और वर्षो की जमा-पूंजी तक।
ऐसे ही परिवारों के दिलों को प्रधानमंत्री का संबोधन छू गया जब उन्होंने गरीबों के स्वाभिमान की बात की। लोगों को याद दिलाया कि एशियन गेम्स में देश के लिए पदक लाने वाले युवा गरीब परिवारों से ही आते हैं। कुपोषण और अव्यवस्था के बीच पले युवाओं को जब मौका मिला तो ¨हदुस्तान का मान बढ़ाया। कहा, गरीबों को मुफ्त में कुछ देने के बदले उन्हें अवसर दिए जाएं।
रोजगार देकर पांच करोड़ परिवारों को उन्होंने बीपीएल सूची से बाहर करने का दावा भी किया। साथ ही कहा कि इस योजना से अब बीमारी में जमीन, गहने और जमा पूंजी नहीं गंवानी होगी। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारी योजनाओं से गरीबों का सशक्तीकरण होगा और पूर्व की योजनाओं में सरकारी खजानों को लूटा गया।
गरीबों के नाम पर बनी योजनाओं का लाभ किसी और को मिला। जाति और जमात के आधार पर योजनाएं बनीं और मनमाने तरीके से पैसों की निकासी हुई। यह योजना में जाति, जमात और संप्रदाय से दूर सभी के लिए है। ¨हदू, मुसलमान, सिख और इसाई समेत तमाम धर्मावलंबी इसका लाभ ले सकते हैं। प्रधानमंत्री ने इच्छा प्रकट की कि अब देश उन रास्तों पर वापस न लौटे जहां योजनाओं के नाम पर सिर्फ लूट मची है।
झारखंड से प्रधानमंत्री के संबोधन के राजनीतिक मायने और महत्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि उनकी सभा में झारखंड के सीमावर्ती जिलों से सैकड़ों की संख्या में लोग पहुंचे थे और इन लोगों में कइयों के संपर्क-संबंध पड़ोसी राज्यों में हैं और संदेश तो इन्हीं के माध्यम से फैलेगा। पश्चिम बंगाल, ओडिशा समेत तमाम प्रदेशों में चुनाव भी होना है। ऐसे में राजनीति निश्चित रूप से अपना रूप दिखाएगी।
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