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पूर्व विधायक योगेंद्र साव मामले में पहले भी अदालत की हो चुकी है किरकिरी

सुप्रीम कोर्ट ने योगेंद्र साव की जमानत पर हाईकोर्ट के विरोधाभासी आदेश को लेकर जांच करने का निर्देश दिया है।

By Sachin MishraEdited By: Published: Mon, 10 Sep 2018 03:23 PM (IST)Updated: Mon, 10 Sep 2018 03:23 PM (IST)
पूर्व विधायक योगेंद्र साव मामले में पहले भी अदालत की हो चुकी है किरकिरी
पूर्व विधायक योगेंद्र साव मामले में पहले भी अदालत की हो चुकी है किरकिरी

रांची, जेएनएन। पूर्व विधायक योगेंद्र साव के मामले में पहले भी एक बार अदालत की किरकिरी हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट में पिछली बार मामले की सुनवाई के दौरान योगेंद्र साव के वकील ने अदालत को बताया था कि निर्मला देवी और योगेंद्र साव की जमानत अर्जियों पर दो आदेश दिए गए। हाई कोर्ट ने पहले हिस्से में जमानत खारिज करने के पक्ष में तर्क दिया था। दूसरे हिस्से में जज ने जमानत मंजूर करने के पक्ष में तर्क दिए।

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कोर्ट के आदेश के दोनों भाग को पहले वेबसाइट पर अपलोड किया गया और बाद में उसे हटा लिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने योगेंद्र साव की जमानत पर हाईकोर्ट के विरोधाभासी आदेश को लेकर जांच करने का निर्देश दिया है, सुप्रीम कोर्ट ने चार सप्ताह के अंदर बंद लिफाफे में रिपोर्ट सौंपने को कहा है। पीठ ने इसे गंभीर मामला मानते हुए कहा कि इससे न्यायिक प्रशासन की प्रतिष्ठा धूमिल हो सकती है।

लाइन खराब होने पर वाट्सएप से की सुनवाई

हजारीबाग में एडिशनल डिस्टि्रक्ट जज (14) की कोर्ट में 19 अप्रैल 2018 को वाट्सएप के माध्यम से सुनवाई हुई थी। कोर्ट में चार्ज फ्रेम होना था। पूर्व विधायक योगेंद्र साव व निर्मला देवी भोपाल में थे तो वीडियो कांफ्रे¨सग से उनकी पेशी होनी थी लेकिन लाइन में बाधा के कारण ऐसा संभव नहीं हो सका। प्रात:कालीन कोर्ट होने के बावजूद ढाई बजे तक जज बैठे रहे इसके बाद वाट्सएप से सुनवाई करने का निर्णय लिया था। सुनवाई के दौरान भी योगेंद्र साव ने आपत्ति दर्ज कराई थी, बाद में सुप्रीम कोर्ट में अपील की।

वाट्सएप के जरिये मुकदमे को सुप्रीम कोर्ट ने मजाक बताया

क्या आपने आपराधिक मामले में वाट्सएप के जरिये मुकदमा चलाते सुना है? यह विचित्र किंतु सत्य है। अब यह विचित्र मामला उच्चतम न्यायालय में पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर आश्चर्य जताते हुए कहा कि भारत की किसी अदालत में इस तरह के मजाक की कैसे अनुमति दी गई?मामला झारखंड के पूर्व मंत्री और उनकी विधायक पत्नी से संबंधित है। यह वाकया हजारीबाग की एक अदालत में देखने को मिला, जहां न्यायाधीश ने वाट्सएप कॉल के जरिये आरोप तय करने का आदेश देकर इन आरोपितों को मुकदमे का सामना करने को कहा।

झारखंड के पूर्व मंत्री योगेंद्र साव और उनकी पत्नी निर्मला देवी 2016 के दंगा मामले में आरोपित हैं। उन्हें शीर्ष अदालत ने पिछले साल जमानत दी थी। उसने यह शर्त लगाई थी कि वे भोपाल में रहेंगे और अदालती कार्यवाही में हिस्सा लेने के अतिरिक्त झारखंड में प्रवेश नहीं करेंगे।हालांकि, आरोपितों ने अब शीर्ष अदालत से कहा है कि आपत्ति जताने के बावजूद निचली अदालत के न्यायाधीश ने 19 अप्रैल को वाट्सएप कॉल के जरिये उनके खिलाफ आरोप तय किया। इस पर जस्टिस एसए बोबडे और एलएन राव की पीठ ने कहा कि झारखंड में क्या हो रहा है? इस प्रक्रिया की अनुमति नहीं दी जा सकती है और हम न्याय प्रशासन की बदनामी की अनुमति नहीं दे सकते।

पीठ ने झारखंड सरकार की ओर से उपस्थित वकील से कहा कि हम यहां वाट्सएप के जरिये मुकदमा चलाए जाने की राह पर हैं। यह किस तरह का मुकदमा है? क्या यह मजाक है? पीठ ने दोनों आरोपितों की याचिका पर झारखंड सरकार को नोटिस जारी किया और दो सप्ताह के भीतर इसका जवाब देने को कहा। आरोपितों ने अपने मामले को हजारीबाग से नई दिल्ली स्थानांतरित करने की मांग की है।

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