यहां राजधानियों और मुद्राओं के नाम से लगती है बच्चों की हाजिरी, फिर क्यों न हो याद
इस स्कूल में विभिन्न देशों-राज्यों की राजधानियों और मुद्राओं के नाम से बच्चों की हाजिरी लगती है।
रांची (मनोज कुमार सिंह)। रोल नं. 21, रोल नं. 22, रोल नं. 25, रोल नं. 50 । अपने-अपने स्कूल के दिनों में कक्षाओं में गूंजती शिक्षक की यह आवाज सभी को याद होगी। रोल नंबर कोई भी हो जवाब प्रेजेंट सर या उपस्थित सर ही होता है। उपस्थिति दर्ज करने-कराने के इस परंपरागत तरीके को राजधानी रांची के एक शिक्षक ने ऐसा बदला कि देखते ही देखते छात्रों की जानकारियां बढ़ने लगीं। फार्मूला हिट हुआ तो उनके काम को सराहना भी मिलने लगी और कई स्कूल अब इस फार्मेट को अपनाने में जुट गए हैं।
हाल ही में बरियातू स्थित राजकीय विद्यालय के शिक्षक नसीम अहमद को पढ़ाई के क्षेत्र में इस इनोवेटिव आइडिया के लिए झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने सम्मानित किया है। इस स्कूल में उपस्थिति दर्ज करने के दौरान छात्र रोल नंबर बोलने पर बच्चे किसी फूल, फल या फिर जानवर का नाम लेते हैं। इसी तरह ऊंची कक्षा के बच्चे रोल नंबर बोलने पर राज्य-राजधानी, देश व उनकी करेंसी का नाम बोलते हैं। इससे बच्चों में सीखने की भावना बढ़ रही है। वहीं, उपस्थिति दर्ज कराने के समय का भी बेहतर उपयोग हो जाता है।
यह नायाब आइडिया रांची के बरियातू स्थित राजकीय कृत मध्य विद्यालय के प्राचार्य नसीम अहमद की सोच का नतीजा है। उन्होंने विद्यालय के बच्चों का सामान्य ज्ञान बढ़ाने के लिए खेल-खेल में बच्चों को कई जरूरी जानकारियां देने के मकसद से विद्यालय के अटेंडेंस सेशन को भी रोचक और ज्ञानवधर्क बना दिया।
प्राचार्य नसीम अहमद ने बताया कि सबसे पहले इस विद्यालय में बाल संसद का चुनाव बैलेट पेपर से किया गया। इसमें बच्चों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। इस दौरान बच्चों को मतदान के बारे में सीखने को मिला। इसके बाद विद्यालय में कई नए प्रयोग शुरू किए गए। कक्षा एक व दो के बच्चों को सबसे पहले फूल, फल, नदियों, जानवरों और पक्षियों के नाम उनके रोल नंबर के साथ बताए जाते हैं। जब तक बच्चों को इनके नाम पूरी तरह से याद न हो जाएं तब तक यह क्रम जारी रहता है। राज्यपाल ने इस तरह के नए आइडिया के लिए इस विद्यालय की अंग्रेजी की शिक्षिका कविता को भी सम्मानित किया है।
प्राचार्य नसीम अहमद का मानना है कि शिक्षा केवल किताबों तक नहीं, व्यवहार में भी होनी चाहिए। छोटे बच्चों को देश का लोकतंत्र पढ़ाना मुश्किल है, इसलिए उन्होने स्कूल में ही चुनाव करने का फैसला किया। छात्रों के नामांकन हुए, प्रत्याशियों को चुनाव चिह्न मिले, बाकायदा प्रचार भी हुआ। स्कूल के बच्चों ने मतपत्र द्वारा वोट दिया, वोटों की गिनती हुई और स्कूल के लिए कैबिनेट बनाया गया। अलग-अलग विभागों के मंत्री तय कर उन्हें जिम्मेदारियां सौंपी गईं। इसका बेहतर परिणाम देखने को मिला। बच्चे न केवल निर्वाचन प्रक्रिया और इसके महत्व को समझ सके बल्कि जिम्मेदार नागरिक बनने का दायित्व बोध भी उनमें जागा।