मधुमिता की प्रतिभा को निखार प्रकाश ने बनाया सितारा
एशियाड में सिल्वर पदक जीतने वाली मधुमिता को उनके कोच प्रकाश ने तराशा और सफलता के मुकाम तक पहुंचाया।
रांची, संजीव रंजन। गीली मिंट्टी को किस तरह गढ़ा जाए और क्या आकार दिया जाए एक कुम्हार से बेहतर कोई नहीं जान सकता। ठीक उसी प्रकार किसी की प्रतिभा को किस जगह और किस रूप में इस्तेमाल किया जाए गुरु से बेहतर कोई नहीं बता सकता। किसे पता था घाटो (रामगढ़) की रहने वाली मधुमिता कुमारी एक दिन भारतीय टीम का ना सिर्फ प्रतिनिधित्व करेगी बल्कि एशियाई खेलों में देश के लिए पदक भी जीतेगी। मधुमिता को तीरंदाजी से लगाव बचपन से ही था। घाटो में टाटा फीडर सेंटर में वह तीरंदाजी सीखने के लिए जाती थी। प्रकाश वहां के प्रशिक्षक थे। मधुमिता के परिश्रम व लगन को देख प्रकाश ने उसकी प्रतिभा को पहचाना और उसे तराशना शुरू कर दिया।
इस बीच, प्रकाश वहां से जमशेदपुर चले गए। कुछ दिन बाद मधुमिता भी पांच मित्रों के साथ अपने गुरु के पास पहुंच गई। वहां प्रकाश ने एक कमरा भाड़े पर लेकर सभी को प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया। 2009 में प्रकाश ने तत्कालीन सिल्ली विधायक सुदेश महतो से तीरंदाजी प्रशिक्षण केंद्र के संबंध में बात की और दो कमरे भाड़े में लेकर मधुमिता व उसके दोस्तों को प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया। इस तरह सिल्ली में बिरसा मुंडा तीरंदाजी प्रशिक्षण सेंटर की शुरुआत हुई। इसके बाद प्रकाश ने मधुमिता को लगातार अभ्यास कराया। शुरू में कुछ प्रतियोगिताओं में जब उसका प्रदर्शन अच्छा नहीं होता तो प्रकाश मेंटर की भूमिका में आ जाते और उसे समझाते।
जब कभी भी वह दबाव में होती सीधे वह गुरु के पास पहुंच जाती। उसकी प्रतिभा को देखते हुए प्रकाश ने मधुमिता को 2013 में कंपाउंड स्पर्धा में ध्यान देने को कहा। गुरु के विश्वास को देखते हुए मधुमिता ने अभ्यास करना शुरू कर दिया। चार साल में उसने ना सिर्फ भारतीय टीम में जगह बनाई बल्कि एशियाई खेल के तीरंदाजी स्पर्धा में रजत पदक जीतने वाली झारखंड की पहली खिलाड़ी बन गई।