ऊर्जा के घटते स्रोत और बढ़ती खपत ने बढ़ाई सरकार की चिंता
ऊर्जा के घटते स्रोत और बढ़ती खपत से निपटने के लिए राज्य सरकार ने सौर ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत को अपनाया है।
रांची, जेएनएन। दिन प्रतिदिन ऊर्जा के घटते स्रोत और बढ़ती खपत ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है। झारखंड देश का भले ही बड़ा कोयला उत्पादक प्रदेश हो, परंतु जिस रफ्तार से इसका उत्खनन और निर्यात हो रहा है, इसके स्टॉक में बड़ी गिरावट दर्ज की गई है।
माना जा रहा है कि थर्मल पावर की आत्मनिर्भरता कुछ दशकों के बाद समाप्त हो जाएगी। कहने को यहां नदियां भी हैं, परंतु बरसात के तीन-चार महीने को छोड़ दें तो इनमें पानी के दर्शन नहीं होंगे। ऐसे में यहां हाइड्रो पावर की परिकल्पना भी दूर की कौड़ी ही है।
लिहाजा बिजली की मांग और आपूर्ति के बीच की इस खाई को पाटने में वैकल्पिक ऊर्जा ही सहारा बन सकती है। पिछले दिनों कई स्तरों पर कई चरणों में हुई माथापच्ची के बाद सरकार ने नई ऊर्जा नीति का खाका तैयार किया है, जिसमें सौर ऊर्जा पर खासा फोकस है। इधर, ऊर्जा क्षेत्र के विशेषज्ञों ने सौर ऊर्जा के लिए झारखंड की जलवायु को बेहद ही अनुकूल बताया है।
इन तमाम परिस्थितियों का आकलन करने के बाद सरकार ने सौर ऊर्जा को वैकल्पिक स्रोत बनाने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। झारखंड रिन्युअल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (जरेडा) और सोलर एनर्जी कारपोरेशन ऑफ इंडिया (सेकी) को प्रायोगिक तौर पर राज्य के चुनिंदा जलाशयों में सोलर प्लेट लगाने की हरी झंडी दी है।
प्रथम चरण में यह प्रयोग राची के दो जलाशयों गेतलसूद और धुर्वा डैम के एक खास हिस्से पर होगा। दोनों ही जलाशयों पर तैरने वाले सोलर प्लेट लगाए जाएंगे, जहां से 150 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। लगभग साढ़े चार करोड़ रुपये प्रति मेगावाट खर्च का यह प्रोजेक्ट सफल रहा तो सरकार सिमडेगा के तीन तथा गुमला के एक अन्य जलाशय पर यह प्रयोग करेगी।
पीपीपी मोड पर लगाए जाने वाले फ्लोटिंग सोलर पैनल अगले 25 वर्षो तक इस्तेमाल किए जा सकेंगे। बिजली उत्पादन करने वाली कंपनी को यह छूट रहेगी कि सरकार के स्तर पर तय दर के मुताबिक वह बिजली बेच सके। वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोत विकसित करने की दिशा में सरकार की इस सोच की सराहना की जानी चाहिए। माना जा रहा है कि सरकार के इन प्रयासों से बिजली की किल्लत झेल रहे झारखंड को बड़ी राहत मिलेगी।