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गजब! संरक्षण केंद्र में एक भी गिद्ध नहीं लेकिन कर्मियों के वेतन पर खर्च हुए 1.44 करोड़

विलुप्त हो रहे गिद्धों को बचाने के लिए ओरमाझी में गिद्ध संरक्षण सह प्रजनन केंद्र खोला गया है।

By Edited By: Published: Mon, 03 Sep 2018 09:53 AM (IST)Updated: Tue, 04 Sep 2018 12:25 PM (IST)
गजब! संरक्षण केंद्र में एक भी गिद्ध नहीं लेकिन कर्मियों के वेतन पर खर्च हुए 1.44 करोड़
गजब! संरक्षण केंद्र में एक भी गिद्ध नहीं लेकिन कर्मियों के वेतन पर खर्च हुए 1.44 करोड़

रांची (ओरमाझी), प्रमोद सिंह। विलुप्त हो रहे गिद्धों को बचाने के लिए ओरमाझी में बनाए गए गिद्ध प्रजनन सह संरक्षण केंद्र में पाच साल से एक भी गिद्ध नहीं है। अलबत्ता कामगारों के वेतन पर हर माह मोटी रकम खर्च की जाती है। पाच साल में वेतन पर ही 1.44 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। केंद्र के रखरखाव का खर्च अलग से है। इस केंद्र में गिद्धों के प्रजनन और संरक्षण के लिए आधारभूत प्राकृतिक संरचना भी उपलब्ध है। इसके साथ ही प्रशिक्षित कामगार भी हैं। कमी है तो सिर्फ गिद्धों की।

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गिद्ध प्रजनन सह संरक्षण केंद्र में गिद्धों को लाने की बात जमाने से हो रही है मगर सिर्फ कागज और फाइलों पर। कुछ समय पूर्व तक यह मगरमच्छ प्रजजन केंद्र भी था लेकिन कुछ माह पूर्व बचे हुए तीन मगरमच्छों को बिरसा जैविक उद्यान भेज दिया गया। पाच वर्ष पूर्व केंद्रीय योजना के तहत इसका निर्माण कराया गया था। यहा पर हजारीबाग गिद्ध संरक्षण केंद्र व हरियाणा के पिंजौर गिद्ध प्रजनन केंद्र से गिद्धों का जोड़ा लाया जाना था। विभागीय कागजी प्रक्त्रिया लंबे समय से चली आ रही है। इस केंद्र में अस्पताल, नर्सरी, लैब, क्त्रिटिकल केयर रूम व इन्क्यूबेटर रूम आदि हैं मगर गिद्ध नहीं। गिद्ध को लुप्तप्राय प्रजाति के अंतर्गत रखा गया है, इसलिए इसे शिड्यूल वन की श्रेणी में रखा गया है।

पिंजौर से लिया गिद्ध पालन का प्रशिक्षण
शुरुआत में हजारीबाग गिद्ध संरक्षण केंद्र से गिद्धों के दस जोड़े यहा लाए जाने थे। इसके लिए हरियाणा के पिंजौर से विशेषज्ञ आने वाले थे। संरक्षण केंद्र से उन्हीं की देखरेख में गिद्धों को पकड़ा जाना था, लेकिन सरकारी प्रक्रिया में व्यवधान का कारण नहीं हो सका। गिद्ध संरक्षण सह प्रजनन केंद्र मुटा के लिए चार कर्मियों को गिद्ध पालन का प्रशिक्षण भी दिलवाया गया है। ये चारों कर्मी कई साल पहले पिंजौर गिद्ध प्रजनन केंद्र से प्रशिक्षण लेकर लौटे हैं। एक लाख रुपये खर्च भी हुए मगर ये कमी वर्तमान में सिर्फ खाली पड़े केंद्र की साफ-सफाई में लगे हैं।

रेंजर के नेतृत्व में कर्मियों की टीम
मुटा गिद्ध संरक्षण सह प्रजनन केंद्र में एक रेंजर, एक फॉरेस्टर, तीन गार्ड व आठ दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी हैं। रेंजर का 80 हजार, फॉरेस्टर का 55 हजार मासिक वेतन है। तीन गाडरें पर मासिक 45 हजार व आठ दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी पर 60 हजार रुपये मासिक खर्च होते हैं। इस प्रकार सरकार वेतन के रूप में 2 लाख 40 हजार यानी सालाना 28. 80 लाख रुपये खर्च करती है। पाच वषरें में 1.44 करोड़ रुपये सिर्फ वेतन पर खर्च किया जा चुका है।

साल में सिर्फ दो अंडे
गिद्ध एक साल में सिर्फ एक बार ही दो अंडे देती है। अंडे को बचाने के लिए केंद्र में प्राकृतिक के साथ वैज्ञानिक तरीके का भी इंतजाम किया गया है। गिद्धों की मौत इंटाक्सिक से : झारखंड में पिछले एक दशक के दौरान गिद्धों की तादाद में अस्सी फीसद तक की कमी आई है। इसका मुख्य कारण है दुधारू जानवरों की दी जाने वाली इंटाक्सिक दवाएं हैं। इनका सेवन करने वाले पशुओं की मौत के बाद जब गिद्ध उनका मास खाते हैं तो उनका लीवर उन्हें हजम नहीं कर पाता। इसे गिद्धों की मौत हो जाती है। इसे ही उनकी संख्या में कमी की बड़ी वजह माना जाता है।

जल्द आएंगे गिद्ध
गिद्ध संरक्षण सह प्रजनन केंद्र मुटा के रेंजर संजय कुमार का कहना है कि गिद्धों का जोड़ा हरियाणा के पिंजौर से आना है। इसके लिए विभाग द्वारा कागजी प्रक्त्रिया चल रही है। वरीय अधिकारी लगे हुए हैं, उन्हीं के स्तर से कार्रवाई होनी है।


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