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जेपीएससी में खेल पर खेल, परिणाम पर तमाशा; पांचवीं जेपीएससी की गड़बड़ियां उजागर..

राज्य के लिए योग्य और बेहतर अफसर चुनने की महती जिम्मेदारी झारखंड लोक सेवा आयोग पर है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 03 Sep 2018 09:32 AM (IST)Updated: Mon, 03 Sep 2018 09:32 AM (IST)
जेपीएससी में खेल पर खेल, परिणाम पर तमाशा; पांचवीं जेपीएससी की गड़बड़ियां उजागर..
जेपीएससी में खेल पर खेल, परिणाम पर तमाशा; पांचवीं जेपीएससी की गड़बड़ियां उजागर..

रांची, आशीष झा। शासन-प्रशासन के लिए योग्य और बेहतर अफसर चुनने की महती जिम्मेदारी उठाने वाली संस्था झारखंड लोक सेवा आयोग खुद ही कठघरे में है। कभी परीक्षा, कभी परिणाम तो कभी अपनी कार्यप्रणाली को लेकर विवादों में घिरे आयोग के लिए वर्तमान में निर्विवाद तरीके से किसी परीक्षा का संचालन बड़ी चुनौती बन गई है। हद तो यह कि जेपीएससी की छठी सिविल सेवा परीक्षा की पीटी का परिणाम अब तक तीन बार संशोधित किया जा चुका है।

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एक तरफ अलग-अलग मामलों में इस संस्था के अध्यक्ष से लेकर सदस्य तक जेल की हवा खा चुके हैं। वहीं दूसरी तरफ अनियमितता के पांच नए मामलों ने एक बार फिर जेपीएससी की विश्वसनीयता को सवालों के घेरे में ला दिया है।

दागदार रहा है आयोग का दामन : जेपीएससी के अध्यक्ष और सदस्यों के खिलाफ किसी आरोप की पुष्टि नहीं होने से अभी उन्हें भले सीधे आरोपित न किया जाए, लेकिन जेपीएससी के दामन को दागदार जरूर कहा जाएगा। चोर चोरी से जाए, हेराफेरी से न जाए की तर्ज पर फर्जी और गलत लोगों की बहाली के पांच नए मामलों में कहीं न कहीं गड़बड़ियां नियोजित और पूर्वाग्रह से प्रेरित लग रही हैं। ये उस स्तर पर की गई हैं जिन्हें नियमों की पूरी जानकारी थी। यह सामान्य चूक नहीं कहा जा सकता है।

पीड़ितों को कभी हाईकोर्ट से न्याय मिला तो कभी सूचना के अधिकार से जानकारी सामने आईं। हैरत की बात है कि अनियमितता साबित होने के बाद लंबे तक समय तक संघर्ष करने वाले पीड़ितों को न्याय तो मिल जाता है लेकिन दोषी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती है जिससे अनियमितता का खेल बेरोकटोक जारी है।

लगातार हो रही गड़बड़ियां : हाल के दिनों में जेपीएससी में बड़े पैमाने पर भले ही मेधा घोटाले की बात सामने नहीं आई हो, छोटे पैमाने पर गडबड़ियां लगातार पकड़ी जा रही हैं। स्थापना के 18 साल में मात्र छह सिविल सेवा परीक्षा आयोजित कर आयोग पहले ही सबके निशाने पर है और अब गलत लोगों की बहाली। मामले सामने आने से इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि आयोग में छोटे पैमाने पर ही सही मेधा घोटाला जारी है।

चार छात्रों के बराबर अंक, दो योग्य अभ्यर्थी दरकिनार : पांचवीं जेपीएससी में चार उम्मीदवारों को एक बराबर अंक मिले और इनमें से जो दो प्रमुख तौर पर योग्य थे उनकी नियुक्ति नहीं होकर नियमों की अनदेखी कर दो अन्य को नियुक्त कर दिया गया। मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा। झारखंड प्रोबेशन सेवा के लिए अनारक्षित कोटि में आशीष रंजन कुमार, संदीप कुमार तिवारी, शांति भूषण और अजितेश कुमार सिंह को एक बराबर अंक मिले। ऐसी परिस्थिति में नियम के अनुसार जिसकी उम्र अधिक होगी उसका चयन होगा। अधिक उम्र होने के बावजूद आशीष रंजन कुमार (जन्म वर्ष 1984) और संदीप तिवारी (जन्म वर्ष 1977) का चयन नहीं हुआ तो वे कोर्ट पहुंचे। कोर्ट ने दोनों के दावे को सही मानते हुए जेपीएससी को इन्हें नियुक्त करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने इसके साथ यह भी निर्देश दिया है कि लगभग दो वर्षो से काम कर रहे शांति भूषण (जन्म वर्ष 1986) और अजितेश कुमार सिंह (जन्म वर्ष 1988) को भी सेवा में रखा जा सकता है बशर्ते जगह उपलब्ध हो। नौकरी चारों की बची और गलती करने वाला भी बचा रह गया। मुकदमे में खर्च हुआ सो अलग।

कम हाइट के बावजूद बने डीएसपी, अब बचने-बचाने की कोशिश : पांचवीं जेपीएससी से चयनित नितिन खंडेलवाल वर्तमान में डीएसपी के रूप में पदस्थापित हैं लेकिन उनकी हाइट को लेकर विवाद हो गया है। सूचना के अधिकार के तहत बताया गया है कि उनकी लंबाई 163 सेमी है। डीएसपी बनने के लिए 165 सेमी हाइट आवश्यक है। ऐसे में सवाल उठता है कि उनका चयन कैसे हुआ? आश्चर्यजनक बात यह कि उन्हें जब हजारीबाग में पुलिस की ट्रेनिंग के लिए भेजा गया तो वहां लंबाई 165 सेमी. दर्ज है। नितिन अपने बैच के सेकेंड टॉपर थे और पुलिस सेवा में नहीं जाते तो प्रशासनिक सेवा में उनकी नौकरी मस्ती से चलती लेकिन अब वे खतरे में हैं। आयोग ने उनके पक्ष में की गई अनुशंसा को वापस लेने के लिए विधि से परामर्श मांगी है।

फिर निकल सकता है सहायक अभियंता के लिए विज्ञापन : राज्य में सहायक अभियंताओं की बहाली के लिए वर्ष 2013-14 में जेपीएससी को पत्र लिखा गया तो अक्टूबर 2015 में 392 रिक्तियों के एवज में विज्ञापन निकला। इस आधार पर हजारों लोगों ने फार्म भरे लेकिन समय पर परीक्षा का आयोजन नहीं हो सका। इसी बीच 2016 में नई अभियंत्रण सेवा नियमावली लागू हो गई। अब समस्या यह है कि सहायक अभियंता की परीक्षा पुरानी नियमावली से हो या नई से? विधि विभाग ने इस मामले में परामर्श दिया है कि जो पहले परीक्षा के लिए आवेदन दे चुके हैं उनको शामिल रखते हुए फिर से नई नियमावली के आधार पर लोगों से आवेदन लिए जाएं। अब जरा सोचिए, इन चार-पांच वर्षो में सहायक अभियंताओं की कमी कैसे दूर हुई? जवाब यह है कि सहायक अभियंताओं को प्रोन्नति नहीं दी जा रही है ताकि निचले स्तर का पद पूरी तरह खाली न रह जाएं।


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