साफ परिसर-स्वच्छ शौचालय और खाने में काजू बादाम की खीर, ये है सरकारी स्कूल
श्री मुक्तसर साहिब, पंजाब स्थितढाणी गोबिंद नगरी के सरकारी स्कूल में मिड-डे मील में रोज देसी घी से बना खाना और शनिवार को काजू-बादाम से बनी खीर मिलती है।
मो. तकी, चाईबासा। सोच और इच्छाशक्ति हो तो प्रयास सार्थक साबित होता है। देश के ग्रामीण अंचलों के सरकारी स्कूलों की हकीकत किसी से छिपी नहीं है। लेकिन इन्हीं में से कोई निजी स्कूलों को पीछे छोड़ता हुआ दिखे तो एक उम्मीद बंधती है। झारखंड और पंजाब के ये स्कूल प्रेरक उदाहरण के रूप में सामने हैं। झारखंड के गांवों की ओर रुख करें तो यहां सरकारी स्कूलों की बदतर तस्वीर सामने आती है। ऐसे में नक्सल प्रभावित पश्चिम सिंहभूम जिले के चार कस्तूरबा आवासीय विद्यालय और एक आदर्श मध्य विद्यालय नया अध्याय लिख रहे हैं। इन्हें देख कर कोई भी चकित रह जाएगा।
राज्य के निजी स्कूलों में भी ऐसी व्यवस्था नहीं है। पढ़ाई, स्वच्छता व अनुशासन के मामले में इनके सामने महंगे निजी स्कूल मात खाते नजर आते हैं। इन सरकारी स्कूलों के नाम हैं- सदर चाईबासा कस्तूरबा विद्यालय, खूंटपानी कस्तूरबा विद्यालय, चक्रधरपुर कस्तूरबा विद्यालय, टोंटो कस्तूरबा विद्यालय और आदर्श मध्य विद्यालय बड़ाजामदा। चार कस्तूरबा विद्यालयों में सिर्फ छात्राएं पढ़ती हैं, जबकि आर्दश मध्य विद्यालय में छात्र व छात्राएं दोनों पढ़ते हैं। इन स्कूलों को स्वच्छता के लिए राज्य स्तरीय पुरस्कार से मुख्यमंत्री इसी वर्ष सम्मानित भी कर चुके हैं।
इन सरकारी स्कूलों के चकाचक शौचालय, साफ-सुथरे भवन व हरे-भरे सुंदर बगीचे को देखकर कोई नहीं कह सकता कि ये सरकारी स्कूल हैं। बच्चों के लिए हर सुविधाएं इनमें मौजूद हैं। पेयजल के लिए आरओ मशीन उपलब्ध है। हाथ धोने और अन्य जरूरी कार्य के लिए अलग से दर्जनभर पानी के टैब लगाए गए हैं। साफ-सुथरे शौचालय, साबुन और हैंडवास, इतना ही नहीं शौचालय में प्रवेश के लिए अलग चप्पलें भी रखी गई हैं। भोजन कक्ष में डाइनिंग टेबल की व्यवस्था है। सभी विद्यार्थी एक साथ खाना खाते हैं।
मिड-डे मील में देसी घी और खीर..
श्री मुक्तसर साहिब, पंजाब स्थितढाणी गोबिंद नगरी के सरकारी स्कूल में मिड-डे मील में रोज देसी घी से बना खाना और शनिवार को काजू-बादाम से बनी खीर मिलती है। शिक्षकों के बुलंद हौसले और जनसहयोग के सुमेल ने यह संभव कर दिखाया। खस्ताहाल हो चुकी स्कूल की इमारत में हालांकि अभी एक ही कमरा पढ़ाने लायक है पर इसके भी दिन फिरने की आस है। दूसरा कमरा तैयार हो रहा है। यह सब कुछ गाववासी और अध्यापक खुद आर्थिक मदद देकर करवा रहे हैं।
पहल स्कूल के प्रधानाध्यापक सुरिंदर सिंह ने की थी, जिसे गांववालों का सहयोग मिला। स्कूल में सरकार की ओर से प्रति छात्र चार रुपये 13 पैसे के हिसाब से मिड-डे मील की राशि आती है। बच्चों की अंग्रेजी व गणित बहुत अच्छी है। सुरिंदर सिंह ने खुद अपना कंप्यूटर स्कूल में लगा रखा है, जिसका इस्तेमाल बच्चे करते हैं। स्कूल का परिणाम 98.7 प्रतिशत रहा है, जोकि जिले भर में दूसरे स्थान पर रहा है।
- साथ में श्री मुक्तसर साहिब से सरबजीत सिंह